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365 DAYS WITH SELF-DISCIPLINE - 365 Life-Altering Thoughts on Self-Control, Mental Resilience, and Success in Hindi




365 DAYS WITH SELF-DISCIPLINE- 365 Life-Altering Thoughts on Self-Control, Mental Resilience, and Success

Martin Meadows

इंट्रोडक्शन

 
जरा इमेजिन करो कि सुबह उठते ही सूरज की नर्म धूप आपके चेहरे को सहलाते हुए आपका  एक नए दिन की खुशनुमा शुरुवात करने  के लिए तैयार है। ओज़ूक रोज़  इसी तरह अपने दिन की शुरुवात करता है। 

 ओज़ूक  की दुनिया में हर दिन एक नई चुनौती लेकर आता है, रात में कीड़ों के काटने से लेकर खाने की तलाश में भटकने तक, लेकिन इन  सबके बावजूद वो डटा रहता है और सेल्फ- डिसिप्लिन बनाए रखने   की एक्स्ट्राऑर्डिनरी पावर का सबूत देता है। 

 ओज़ूक  हमारे पूर्वजों  के अनमोल ज्ञान और समझदारी का सिम्बल है। उनके सामने भी कईं मुश्किलें आई थी और अपने मज़बूत इरादों के दम पर उन्होंने हर मुश्किल को पार किया था। वो जिंदा रहने और खाने के लिए लड़े थे और अब हमें भी इसी तरह सारे डिस्ट्रैक्शन को दूर करके फिर से अपना फोकस अचीव करना होगा। 

 हमारी मॉडर्न लाइफ बहुत  ईज़ी हो गई है तो इसका मतलब ये  हरगिज़  नहीं है  कि हमें अब  डिसिप्लिन  की ज़रूरत  नहीं  रही। 

अगर आप भी हमेशा अपना काम टालते रहते हैं और मेहनत करने के बजाय पहले अपने कम्फर्ट का ध्यान रखते हैं तो ये समरी  आपके लिए ही है। ये आपको याद दिलाएगी  कि ग्रोथ तभी होती है जब आप अपनी लिमिट को  पुश करते हैं, अपने कम्फर्ट ज़ोन  से बाहर निकलते हैं और अपने लॉंग टर्म गोल्स पर फोकस करते  हैं। 

ये समरी  आपको सेल्फ- डिसिप्लिन  डेवलप करने के लिए डेली इनसाइट्स और inspiration  देगी। ये इनसाइट  सिर्फ़ थ्योरी  नहीं  हैं बल्कि प्रैक्टिकल नॉलेज है जो अलग-अलग फील्ड के लोगों से लिए गए हैं  जैसे इंटरप्रेन्योर, एथलीट्स, ऑथर और थिंकर्स से. ये वो लोग हैं जो अपनी लाइफ में सेल्फ-मास्टरी अचीव कर चुके हैं।

  
इसलिए अगर आप पर्सनल ग्रोथ की जर्नी स्टार्ट करने के लिए रेडी हैं तो आइए और हमारे साथ सेल्फ- डिसिप्लिन के एसेंस  को एक्सप्लोर कीजिए। 

Week 1


डिसिप्लिन मेन्टेन करना  डेली का  स्ट्रगल है। पहले  वीक में, आप सेल्फ- डिसिप्लिन  और पर्सनल ग्रोथ की तरफ बढ़ने के लिए लाइफ changing 7 day जर्नी को फॉलो करेंगे। 

डे 1, आपको सेल्फ- डिसिप्लिन  को अपनाकर  मुश्किलों का सामना करने के लिए  तैयार रहना होगा। इसकी शुरुवात आपको करनी होगी इंस्टेंट gratification यानी तुरंत satisfaction पाने की इच्छा  को रेसिस्ट  करके, तब भी जब आपको आराम करना ज़्यादा आसान लग रहा हो। एक ऐसे इंसान के बारे में इमेजिन करो  जो challenges से बचते हुए हमेशा आसान रास्ता चुनता है। उसकी लाइफ भले ही आसान लग सकती है  लेकिन उसके अंदर असली  प्रॉब्लम्स को फेस करने की  ताकत और फ्लेक्सिबिलिटी  की कमी होती है। 

जबकि जो  लोग लाइफ में challenges का सामना करके उसे  मुश्किल बनाते हैं, वही आगे ग्रो कर पाते  हैं। वो unexpected  मुश्किलों के लिए खुद को तैयार रखते हैं और उन्हें बेहतर तरीके से हैंडल करना सीखते हैं। 

इस लेसन को अप्लाई करने के लिए खुद को रेगुलरली चैलेंज  करते रहो। आसान रास्ता चुनने के बजाय  वो टास्क चुनो  जो आपको अपनी लिमिट पुश करने पर मजबूर कर दे। जैसे मान लो कि  आप नॉर्मली वर्कआउट करना  स्किप करते हो  तो क्यों ना एक महीने  के लिए कोई challenging  एक्सरसाईज़ रूटीन choose किया जाए। इससे आपके अंदर हिम्मत और फ्लेक्सिबिलिटी बढ़ेगी और आप लाइफ में इससे भी मुश्किल चैलेंज का सामना करने के लिए तैयार होंगे। 

डे 2, अपनी चॉइस के लास्टिंग इम्पैक्ट पर ज़ोर देता है। आज आप जो छोटा या डिसीज़न लेते हो वो  आपके फ्यूचर को शेप करने में बहुत बड़ा रोल निभा सकता है। जैसे,  हेल्दी सैलेड या बटर से भरे हुए  हैमबर्गर में से एक choose करना पड़े तो आप क्या choose  करेंगे? 

लगातार अनहेल्दी चॉइस करते रहने से एक पैटर्न बन जाता  है जो आपके  लॉंग टर्म हेल्थ पर बुरा असर डाल सकता है.  इसलिए ऐसी चॉइस को प्रायोरिटी दें जो आपके लॉंग टर्म गोल्स के साथ मैच करते हों। 

आप डेली conscious यानी सोच-समझकर  चॉइस लेकर इस लेसन को अप्लाई कर सकते हैं। जैसे मान लो कि  अगर आपको टाइम मैनेजमेंट करने में दिक्कत होती है तो उन टास्क को प्रायोरिटी दो  जो आपके गोल्स अचीव करने में contribute कर सकते हैं नाकि उन कामों को जो आपको टेम्पररी satisfaction  देते हैं। फिर टाइम के साथ आपकी सही चॉइसेज़ आपको अपने गोल्स के और पास ले जाएगी। 

डे 3, आपको विलपावर  की इंपोर्टेन्स के बारे में सिखाएगा। जानवर एकदम इमपल्स में आकर बिहेव  करते हैं, लेकिन हम इंसानों में  अपने लॉंग टर्म फायदे  के लिए ऐसे  टेम्प्टेशन को अनदेखा करने की एबिलिटी होती है। आपका  स्ट्रॉंग विलपावर  आपको रेशनल यानी लॉजिकल और सही  डिसीज़न लेने में मदद करेगा। 

इस लेसन को अप्लाई  करने के लिए अपने  विलपावर  को स्ट्रॉंग करने की प्रैक्टिस करें। जैसे कि अगर आप एक हेल्दी लाइफस्टाइल फॉलो करने की कोशिश कर रहे हैं तो अनहेल्दी स्नैक्स खाने की टेम्पटेशन यानी इच्छा  से बचकर रहें। चाहे आपको जितनी भी क्रेविंग हो तो भी हेल्दी मील्स ही खाएं।  जब आप बार-बार राईट चॉइस लेते रहेंगे तो धीरे-धीरे ये आपकी हैबिट बन जाएगी। ये लगातार सही चॉइस लेने की आपकी एबिलिटी को भी strong करता है.    

डे 4 में सेल्फ- डिसिप्लिन  को सपोर्ट करने के लिए सिस्टम बनाने  का कॉन्सेप्ट  बताया गया है। हालांकि विलपावर का होना  बेहद ज़रूरी है लेकिन  सिर्फ़ इसके भरोसे बैठना challenging  हो सकता है। इसके बजाय, ऐसे सिस्टम सेट कीजिए जिससे आपको  डिसिप्लिन  में रहना ईज़ी लगे। जैसे, खाने का example ले सकते हैं। अपने घर से सारी अनहेल्दी चीज़े हटा दीजिए ताकि आपको उसे खाने की इच्छा  ही ना हो या फिर आप एक प्रोडक्टिव  सुबह  की शुरुवात के लिए सुबह जल्दी उठने की आदत डाल सकते हैं। 

इसे अप्लाई करने के लिए उन एरियाज़ को पहचानें  जहां आपको सेल्फ-कंट्रोल के लिए  स्ट्रगल करना पड़ता है। उसके बाद,  अपने  डिसिप्लिन  को सपोर्ट करने के लिए सिस्टम बनाएँ। अगर आपको काम पर फोकस करना मुश्किल लग रहा  है तो apps की मदद से अपने working  hours  के दौरान आपका ध्यान भटकाने वाले  वेबसाईट को ब्लॉक  कर दें। ये सिस्टम लगातार  विलपावर  की ज़रूरत को कम करेंगे जिससे आपके लिए ट्रैक  पर बने रहना ईज़ी हो जाएगा। 

डे 5 हमें याद दिलाता है कि सेल्फ- डिसिप्लिन हमारे अंदर से  शुरू होता है। अपने अंदर  डिसिप्लिन  की कमी के लिए एक्सटर्नल यानी बाहरी  फ़ैक्टर्स को ब्लेम करना हमारी प्रोडक्टिविटी को और कम कर देता है। जबकि अपनी चॉइसेज़ की ज़िम्मेदारी  लेने से हम इस  लायक बन पाते हैं  कि challenges को पार कर सकें। सेल्फ-कंट्रोल के मास्टर बनकर हम इन बाहरी  इंफ्लुएंस  के खिलाफ़ इंडिपेंडेंस और फ्लेक्सिबिलिटी  हासिल कर सकते हैं। 

डे 5 में सेल्फ-अवेयरनेस को प्रैक्टिस करना है। उन एरियाज़ के बारे में सोचो  जहां आप एक्सटर्नल  फैक्टर्स को ब्लेम करने लगते हो। बहाने बनाने के बजाय  ये सोचो कि कौन से एक्शन लिए जाएँ ताकि  आप अपने डिसप्लिन के  लेवल को इम्प्रूव कर सकें। जैसे कि मान लो कि  अगर आप एक्सरसाइज़ ना करने के पीछे  टाइम की कमी का रोना रोते हो तो अपने कैलेंडर में स्पेशिफ़िक वर्कआउट सेशन पहले से मार्क कर लो। 

डे 6 हमें बताता है कि  सुपर ह्यूमन जैसी कोई चीज़  नहीं होती  है और सिर्फ़ एफर्ट्स और सेल्फ-डिसप्लिन से ही आपको सक्सेस मिल सकती है। कोई भी नैचुरली इतना स्ट्रॉंग  नहीं  होता है। सक्सेसफुल लोगों को भी आम लोगों की तरह challenges का सामना करना पड़ता है। अपने imperfection को एक्सेप्ट करके और पर्सनल ग्रोथ पर फोकस करके आप लंबे समय तक टिकने वाला  सक्सेस पा सकते हैं। 

रीयलिस्टिक  गोल्स सेट करके इसे अप्लाई कीजिए और लगातार इम्प्रूवमेंट करने पर फोकस कीजिए। example के लिए, मान लो कि आप कोई नया  स्किल सीख रहे हो तो इस बात को मानो कि इस प्रोसेस में आपसे गलतियां होंगी. इन challenges को अपने  रास्ते की रूकावट समझने के बजाय उन्हें ग्रो करने के मौके की तरह देखो। 

डे 7 आपको सेल्फ़-डिसिप्लिन पर  फ़ाईनेंशियल स्ट्रेस के असर के बारे में बताता है। पैसों की प्रॉब्लम आपके डिसिशन  लेने की एबिलिटी पर बुरा असर डाल सकता है। लेकिन अगर आपको अपने फाइनेंस को  सही तरीके से हैंडल करना आता है और आप फ़ाईनेंशियल स्टेबिलिटी को प्रायोरिटी देते हैं तो ये आपके स्ट्रेस को कम करता है और आपके सेल्फ़-डिसिप्लिन को इम्प्रूव करता है। 

इस लेसन को अप्लाई करने के लिए एक फ़ाईनेंशियल प्लान बनाएँ जिसमें emergency  के लिए पैसा  सेव करना और debt यानी लोन  को कम करना शामिल है। बेहतर डिसिशन लेने और लॉंग-टर्म प्लानिंग के लिए आपका माइन्ड एकदम शांत होना चाहिए जिसके लिए आपको अपनी फ़ाईनेंशियल प्रॉबल्म्स को जल्द से जल्द सॉल्व कर लेना चाहिए। 

कुल मिलाकर, फर्स्ट वीक में आपने challenges को एक्सेप्ट करना, सोच-समझकर चॉइस लेने, विलपावर को मज़बूत करने, सपोर्टिव सिस्टम बनाने, ज़िम्मेदारी लेने, अपने imperfection को एक्सेप्ट करने और फ़ाईनेंशियल स्ट्रेस को दूर करने का इम्पोर्टेंस सीखा। 

याद रहे, सेल्फ-डिसप्लिन एक जर्नी है और लगातार एफर्ट करने से आपको मीनिंगफुल रिजल्ट मिलेगा, इसलिए इन लेसंस को डेली अप्लाई करने का पक्का इरादा कर लीजिए और खुद को एक डिसप्लिन्ड और rewarding  लाइफ जीने के लिए strong बनाइए। 

 

Week 2


सेल्फ-डिसप्लिन की इस जर्नी के सेकंड वीक में आपका स्वागत है। 

डे 8, इसमें  आपको लक्जरी चाहिए या आपको  अपनी जरूरतें पूरी करनी है, इसका फ़र्क खुद करना होगा। मान लो कोई इंसान है जिसे लगता है कि अगर वो एक नई कार रेंट पर  ले लेगा  तो खुश रह सकता है,  लेकिन ये आदमी अपनी बेसिक  जरूरतों को पूरा करने के बारे में सोचे बिना पैसा कैसे सेव कर सकता है? 

इसके लिए, ये इंसान अपनी लिमिट को  टेस्ट करने से इसकी  शुरुवात कर सकता है। पहले, वो एक महीने तक  बिना कार रेंट पर लिए रहने की कोशिश कर सकता है। इससे उसे बाकि के  ऑप्शन को  एक्सप्लोर करने का मौका मिलेगा  जैसे की बस से या पैदल travel  करना। 

सेकंड, इस आदमी  को खुद तय करना होगा की उसे वाकईं में कार की  ज़रुरत है या  नहीं। फाईनली,  उसे समझ आ जाएगा की कार की तरह ही वो बाकि और लक्जरीज के बिना भी रह सकता है। 

ये एक्सरसाइज़ सेल्फ-कॉन्फिडेंस को बढ़ाती है। आप जितना बेकार की चीज़े अपनी  लाइफ से कम करेंगे  उतना ही  ज़्यादा फोकस आप  ज़रूरी चीज़ों पर कर पाएँगे। 

डे 9, आपको अपने फ्यूचर सेल्फ के साथ हमदर्दी रखना सिखाता है। स्टडीज़ बताती हैं कि जब लोग टेक्नोलॉजी  के इस्तेमाल से अपने फ्यूचर सेल्फ को क्लियरली देखने की कोशिश करते हैं तो वो ऐसे डिसिशन  लेते हैं जो उनके लॉंग-टर्म वेल-बीईन्ग को फायदा पहुंचा सकता है  जैसे कि अपने रिटायरमेंट  के लिए पैसे सेव करना। इससे ज़ाहिर होता है कि आपको  अपने फ्यूचर की चिंता है और ये चीज़ आपके आज के सेल्फ-डिसप्लिन में अहम रोल निभाता है. 

अपने फ्यूचर सेल्फ के बारे में सोचने से शुरुवात कीजिए। इमेजिन करो की आज से दस, बीस या तीस साल बाद आप खुद को कहाँ देखना चाहोगे। आप आज जो डिसिशन ले रहे हो उन पर गौर करो और खुद से पूछो की क्या ये आपके फ्यूचर सेल्फ की वेल-बीईन्ग के साथ मैच करते हैं। क्या आपके ये डिसिशन  आपको एक ब्राईटर फ्यूचर की तरफ लेकर जाएँगे या फिर  सिर्फ़ टेम्परेरी सेटिसफेक्शन तक ही सीमित हैं? 

अपने फ्यूचर सेल्फ से हमदर्दी  रखकर आप एक ऐसा माइन्डसेट डेवलप कर पाएंगे जो शॉर्ट-टर्म प्लेजर से  ज़्यादा लॉंग-टर्म फ़ायदों  पर  ज़्यादा ध्यान देता है। Example  के लिए,  अपनी फ्यूचर फाईनेंशियल सिक्योरिटी के लिए सेविंग अकाउंट में पैसे इन्वेस्ट करना। आज सोच-समझकर लिए गए डिसिशन  आपके फ्यूचर को और भी  ज़्यादा सिक्योर करने  में मदद करेंगे। 

डे 10,  सेल्फ-डिसप्लिन को नॉवल लिखने से compare करता है। हर सक्सेसफुल ऑथर  की शुरुवात बिल्कुल एक डिसप्लिन्ड इंसान की तरह  काफ़ी हंबल तरीके से होती है। 

सेल्फ-डिसप्लिन develop करना बिल्कुल  एक नॉवल लिखने जैसा है। दोनों में पक्के इरादे, प्रैक्टिस और लगातार प्रोग्रेस की  ज़रुरत पड़ती है। उन बेस्ट सेलिंग नॉवल्स के ऑथर्स को देखो जो सालों से अपनी राईटिंग स्किल्स पर काम करते आ रहे हैं। उन्होंने शुरुआत में ही कोई मास्टरपीस  नहीं  लिखा था बल्कि अपना काम  सिम्पल वर्ड्स, सेंटेन्स और पैराग्राफ़ से शुरू किया था। एक शानदार मास्टरपीस लिखने से पहले उन्होंने ना जाने कितनी बार अपने काम को revise भी किया होगा। 

ठीक उसी तरह, सेल्फ-डिसप्लिन रातों-रात develop नहीं हो जाएगी। ये भी एक छोटे चेंज से शुरू होती है जैसे सुबह थोड़ा जल्दी उठना या डेली एक्सरसाइज़ करना। 

अगर आपके गोल्स आपको निराश  करने लगे  या आप पर हावी होने लगे तो याद रखना, हर सक्सेसफुल इंसान को ऐसे challenges का सामना करना पड़ा है,  लेकिन उन्होंने इस  प्रोसेस को एक्सेप्ट किया, कन्सिस्टन्ट इम्प्रूवमेंट पर फोकस किया और अपनी छोटी से छोटी जीत को भी सेलिब्रेट किया। 

डे 11,  इस बात को ज़ोर देते हुए कहता है की टैलेंट  के ऊपर सेल्फ-डिसप्लिन भारी पड़ जाता है। अगर आप हाईली सक्सेसफुल लोगों का example देखेंगे  तो ये सोचने लगेंगे  की वो अपने टैलेंट  के साथ ही पैदा हुए हैं,  लेकिन सच तो ये है  उन्हें  सक्सेस  सिर्फ़ अपने टैलेंट  के दम पर  नहीं  मिली है। 

इसलिए अपने अंदर टैलेंट  की कमी का रोना रोने के बजाए, ये याद रखें की सेल्फ-डिसप्लिन आपके टैलेंट  की हर कमी को पूरा कर सकता  है। challenges  एक्सेप्ट करते रहो, कन्सिस्टन्टली काम  करते रहो और फिर देखो,  आप कैसे  अपने ट्रांसफॉर्मेशन और अचीवमेंट के गवाह खुद बनते हो। 

डे 12,  सेल्फ-डिसप्लिन पर मन की शांति  की ताकत को दिखाता है। आज की इस तेज़-रफ़्तार वाली  ज़िंदगी में जहां इंसान आसानी से distract  हो जाता है, वहाँ अपने अंदर शांति बनाए रखना बेहद मुश्किल है, पर अगर आप कोशिश करेंगे  तो ये नामुमकिन भी  नहीं  है। 

अपने रूटीन में मेडीटेशन को शामिल करके सेल्फ-कंट्रोल और पेशेंस  को बढ़ाया जा सकता है. ये आपको स्ट्रेस कम करके खुशहाल ज़िंदगी जीने में भी मदद करेगा। इसके लिए,  आप अपने रूटीन लाइफ में कुछ एक्टिविटीज़ शामिल कर सकते हैं, जैसे योगा, रॉक क्लाइमिंग, या फिर सिम्पल टास्क जैसे गार्डनिंग या डांसिंग। जब आप दिमागी सुकून हासिल कर लेंगे तो आपका मन भी शांत रहेगा, जिससे आपका   सेल्फ-कंट्रोल भी बेहतर होगा। 

डे 13,  इन्स्टेन्ट ग्रेटीफिकेशन और लॉंग-टर्म गोल्स के बीच के स्ट्रगल के बारे में बताता है। जब  आप किसी  डाईट को  फॉलो करते हुए चॉकलेट खा लेते हो  तो यानि आप लॉंग-टर्म गोल्स के बजाए तुरंत  प्लेजर को एन्जॉय करना चाहते हो। आपका एक गलत चॉइस का शायद अभी कोई इम्पैक्ट नहीं पड़ेगा लेकिन ये एक पैटर्न जरूर बना देगा  जो आपके  प्रोग्रेस को धीरे-धीरे नुकसान पहुंचाने लगेगा। 


365 DAYS WITH SELF-DISCIPLINE- 365 Life-Altering Thoughts on Self-Control, Mental Resilience, and Success
Martin Meadows
हर वो चॉइस जो इन्स्टेन्ट ग्रेटिफिकेशन पर फोकस करती है, वो  आपके अंदर मोटिवेशन की कमी को दिखाता है। अपने लॉंग-टर्म गोल्स के साथ ट्रैक  पर बने रहने के लिए, हमेशा ये ध्यान रखें की जो खुशी आपको अपने लॉंग-टर्म्स गोल्स अचीव करके मिलेगी वो इन्स्टेन्ट ग्रेटिफेक्शन से कहीं बढ़कर होगी। 

डे 14, इस बात पर फोकस करता है कि सक्सेस अचीव करने के लिए लॉंग-टर्म फोकस की क्या इंपोर्टेन्स है।  तुरंत सक्सेस पाने पर  ध्यान देने के बजाए ऐसी हैबिट और स्ट्रेटेज़ीज़ बनाने पर फोकस करो जो लंबे समय तक टिकने वाले प्रोग्रेस को सपोर्ट करे। 

अपने गोल्स और approach को  एनालाईज़ करके  आप उन एरियाज़ को पहचान  सकते हैं जहां शॉर्ट-टर्म थींकिंग आपके प्रोग्रेस को स्लो कर रही  है। लॉंग-टर्म फोकस को मेंटेन करने  के लिए सेल्फ-डिसप्लिन डेवलप करना  ज़रूरी है ताकि  आप लाइफ के अलग-अलग एरिया में मीनिंगफुल और सस्टेनेबल अचीवमेंट्स के लिए खुद को तैयार कर पाएँ। 

वीक 2 में आपने जो लेसन सीखें हैं,  उन्हें  अप्लाई करके आप अपनी लाइफ में फ्लेक्सिबिलिटी  डेवलप कर सकते हैं, माइन्डफुल चॉइसेज़ ले सकते हैं और अपनी लाइफ के हर एरिया में लंबे समय तक टिकने वाला  सक्सेस पाने के नए रास्ते खोल सकते हैं।  
 

Week 3


डे 15, आपको याद दिलाएगा की सेल्फ-डिसप्लिन के लिए आपको लगातार इम्प्रूवमेंट करने की  ज़रुरत है। जैसे आप नॉलेज़ को मेंटेन करते हैं वैसे ही सेल्फ-डिसप्लिन भी आपसे लगातार चैलेंज डिमांड करता है। अपने सेल्फ-डिसप्लिन को आप एक मंज़िल  के  ज़्यादा एक जर्नी मान सकते हैं। बेशक आप इसके एक एरिया में एक्सपर्ट बन गए होंगे तो भी नए-नए चेलेंजेस आपके सामने आते रहेंगे। 

उन एरियाज को पहचानें जहां आपमें डिसप्लिन की कमी है. जैसे कि अगर आपको लग रहा है की लोगों से डील करते वक्त आप अपना पेशेंस खो बैठते हैं तो आपको लगातार इस चीज़ को इम्प्रूव करना होगा। खुद को चैलेंज करते रहो। टेम्पररी रिजल्ट  से खुश होने के बजाए फ्यूचर के बड़े फ़ायदों के बारे में सोचने से आप अपने  सेल्फ-कंट्रोल को मेंटेन कर सकते हैं, उसे बढ़ा सकते हैं। 

डे 16,  सेल्फ-रिलायंस यानी इंडिपेंडेंट होना या ख़ुद पर डिपेंडेंट होना सिखाता है। जहां सपोर्ट का होना एक  ज़रूरी चीज़ हैं, वही मोटिवेशन की अगर बात करें तो ये आपके अंदर से आनी चाहिए। हमारे एक्शन पूरी तरह से एक्सटर्नल फैक्टर्स से इंफ्लुएंस होते हैं. जैसे example  के लिए,  अपने दोस्त को एक्सरसाइज़ करते देख आप भी एक्सरसाइज़ करने लगते हो, या किसी को इंप्रेस करने के लिए डाईट करना शुरू कर देते हो या फिर अपने बॉस के डर से काम में ध्यान देना शुरू कर देते हो। ऐसे में,  जब वो एक्सटर्नल फैक्टर्स चेंज हो जाते हैं  या गायब हो जाते हैं  तो आपकी सेल्फ-डिसप्लिन फिर से फेल हो जाती है। 

जो सेल्फ-डिसप्लिन आपके अंदर से डेवलप होता है  वही आपको असल  में इंस्पायर करता है। ये आपको अपने गोल्स के लिए कमिटेड बने रहने में मदद करता है,  फिर चाहे बाहर के हालात कैसे भी हों। 

डे 17,  फेल होने के बावजूद फ्लेक्सिबल बने रहने के लिए एनकरेज करता है। यहाँ तक कि सबसे  ज़्यादा disciplined  लोगों को भी अपनी इस जर्नी में फेलियर या रुकावटों  का सामना करना पड़ता है। चाहे वो अनहेल्दी फूड खाना हो, वर्कआउट स्किप करना हो या फिर अपने अलग-अलग  प्रोजेक्ट में फेलियर एक्सपीरियंस करना हो, आप कभी ना कभी ठोकर तो खाओगे ही। हालांकि इन failures  को टाइम या एनर्जी  waste के तौर पर  नहीं  देखा जाना चाहिए। 

ये एक्सेप्ट कर लेना कि fail होना  प्रोग्रेस का एक नैचुरल पार्ट है, उन्हें दूर करना आसान बना देता है। फेलियर  का रोना रोने के बजाए,  उन्हें  अपोर्च्यूनीटीज़ की तरह देखो जो आपको ग्रोथ और सीखने,  दोनों का मौका देते हैं। 

डे 18,  हमें एक्सप्लेन करता है कि हमारे लिए हाई स्टैन्डर्ड सेट करना कितना इंपोर्टेंट है। आपका   स्टैंडर्ड आपका प्राइमरी कन्सर्न होना चाहिए। majority लोगों का स्टैण्डर्ड फॉलो करने से  के करने से हम खुद को अनफिट, अनहेल्दी बना लेट हैं,  अपने काम से नाखुश रहते हैं और  हमारे पास अपने परिवार वालों के लिए भी  वक्त नहीं  होता है। 

हो सकता है कि लोग आपके गोल्स पर सवाल उठाएँ लेकिन आपका खुद अपने स्टैंडर्ड पर खरा उतरना  ज़रूरी है। लो स्टैंडर्ड,  एक्सीलेंस तक पहुँचने के रास्ते का रोड़ा बन सकता है। सेल्फ-कंट्रोल बनाए रखना और  टेम्पटेशन से बचना, हाई स्टैंडर्ड को  मेंटेन करने  और mediocrity को दूर करने में हेल्प करता है। 

डे 19, perseverance यानी डटे रहने यानी पक्के इरादे के वैल्यू को हाईलाईट करता है। सेल्फ-डिसप्लिन में मास्टरी करने के लिए ग्रेड्स या सर्टिफिकेट की ज़रुरत नहीं है। इसका इकलौता मकसद है खुद के टेम्पटेशन, कमजोरियो और खुद के प्रति  हार्मफुल बिहेवियर को कंट्रोल करना। 

आपको ये समझना होगा की  सिर्फ़ अपने गोल्स अचीव करना ही आपका मकसद  नहीं  है बल्कि ये एक प्रोसेस है जो आपको उस तरफ ले जाता है जिसकी सबसे  ज़्यादा वैल्यू है। आपके स्ट्रगल के  वो पल जब आपने टूटने की कगार पर पहुँचने के बावजूद हार  नहीं  मानी थी, आपके character  को डिफाइन करते हैं  और आपकी ज़िंदगी में ढेर सारे फायदे लेकर आते हैं। 

तो ये सोचकर frustrate होने के बजाए की अभी आपको कितनी दूर और जाना है, अपने स्ट्रगल को गले लगाइए। 

डे 20,  सेल्फ-डिसप्लिन बनाने के लिए छोटी  शुरुवात करने पर फोकस करता है। सेल्फ-डिसप्लिन develop करना  एक स्लो प्रोसेस है जो छोटे स्टेप्स  के साथ शुरू होता है। 

इसे सिंपल प्रैक्टिस से ट्राइ करें जैसे की ड्राइविंग करते वक्त अपने गुस्से पर काबू रखना, जितनी भूख हो उससे कम खाना, या जितना सोचा था उससे थोड़ी देर और काम करना। इस तरह के छोटे-छोटे चैलेंज  लेते रहने से आपका सेल्फ-कंट्रोल इतना  ज़्यादा बढ़ जाएगा कि आप किसी भी बड़े चैलेंज  से घबराएंगे  नहीं । याद रहे, रोम एक दिन में  नहीं  बना था और आपका सेल्फ-डिसप्लिन भी रातों-रात डेवलप  नहीं  होने वाला। 

डे 21,   हैबिट के पावर  के बारे में बताता है। हैबिट,  सुपरपावर की तरह होते हैं। एक बार आपको कोई आदत लग गई तो फिर आपको  उसे   मेंटेंन रखने के लिए कम से कम  सेल्फ-डिसप्लिन की  ज़रुरत पड़ेगी। हालांकि कोई नई आदत डेवेलप करना challenging हो सकता है। हैबिट develop करने  में एवरेज 66 दिन का टाइम लगता है और इसके शुरुआती दिन काफ़ी मुश्किल हो सकते हैं।

 
लंबे समय तक टिकने वाले  सक्सेस के लिए शॉर्ट-टर्म फिक्स के बजाए एक लाइफ लॉन्ग  रूटीन बनाने पर फोकस करें। जैसे example के लिए,  अपनी डाइट और वर्कआउट प्रोग्राम के बीच बार-बार स्विच करने से आपको लॉंग लास्टिंग रिजल्ट नहीं  मिल पाएंगे। 

अपने गोल्स को ईवैल्यूएट करते रहो ताकि आप जान सको की क्या आपके प्लान्स लॉंग टाइम सक्सेस के लिए हैबिट develop करने  पर ज़ोर देते हैं  या वो टेम्पररी सेल्फ-कंट्रोल के तरीकों  पर डिपेंडेंट  हैं। आपके लाइफस्टाइल और बिहेवियर में आने वाले  चेंजेस को लॉंग टाइम तक मेंटेन रखने का सीक्रेट सिर्फ़ आपकी हैबिट्स ही हैं। 


Week 4


सेल्फ डिसप्लिन restriction यानी पाबंदी लगाने के नहीं बल्कि  आज़ाद करने के बारे में है। 
डे 22,  हमें याद दिलाता है की हमारी आज़ादी के लिए सेल्फ-डिसप्लिन का होना बहुत  ज़रूरी है। इसका  मतलब ये  नहीं है  की आप खुद पर रोक-टोक लगा रहे हो बल्कि इसका मतलब है अपने थॉट्स और एक्शन को अपने कंट्रोल में रखना। 

डे 23,  disciplined एजुकेशन के बारे में बात करता है। आप जितना  इनफॉर्मेशन लेते है, उसका आपके सेल्फ-डिसप्लिन पर गहरा इम्पैक्ट पड़ता है। एक ही नज़रिए  से देखना या बगैर सोचे-समझे किसी एक इनफॉर्मेशन सोर्स पर आँख मूँदकर भरोसा करना आपके  मेंटल आलस का कारण बन सकता है। 

बिना कोई सवाल उठाए चुपचाप किसी इनफार्मेशन पर यकीन करने से,  सिचुएशन को एनालाईज़ करने की आपकी  एबिलिटी लिमिटेड  हो जाती है जिससे आप सही डिसिशन  नहीं  ले पाते हैं। अपने सेल्फ-डिसप्लिन को मज़बूत करने के लिए अलग-अलग व्यूपॉइंट्स से ख़ुद को expose करो और इंडिपेंडेंट तरीके से सोचो। जो नॉलेज आपके पास आती है, उसकी वेलिडीटी और उसका क्या मतलब है उस पर सवाल उठाकर अपने अंदर क्रिटिकल थिंकिंग डेवलप करो। 

ठीक उसी तरह, ईज़ी एंटरटेनमेंट चूज करना या challenging टॉपिक्स को अवॉइड करना आपके मेंटल स्किल्स को इम्पैक्ट कर सकता है। जहां एक तरफ़ कुछ हल्का –फुल्का पढ़ना आपको अच्छा लगता है, दूसरी तरफ कॉम्प्लेक्स और सोचने पर मजबूर कर देने वाला कंटेन्ट पढ़ने का चैलेंज लेना आपके लिए और भी अच्छा होगा। 

डे 24 पर आप सीखेंगे की सेल्फ-डिसप्लिन हमें ख़ुशी  की तरफ ले जाता है। लॉंग-टर्म गोल्स के लिए अपने शॉर्ट-टर्म प्लेजर्स को सैक्रिफाइस करके आप अपनी लाइफ में खुशहाली ला सकते हैं। 

शुरू में ख़ुशी की खातिर प्लेज़र की कुर्बानी देने का आईडिया थोड़ा उल्टा लग सकता है, खासकर तब जब आपको टेम्पटेशन का सामना करना पड़ता है,  लेकिन अगर आप सेल्फ-डिसप्लिन के लिए कमिटेड रहेंगे  तो फ्यूचर में आप ज़्यादा खुशहाल ज़िंदगी जी पाएंगे। 

सबसे पहली बात, challenges को एक्सेप्ट करना और एक हार्ड लाइफ जीना आपके अंदर फ्लेक्सिबिलिटी develop करेगा। 

दूसरा, कुछ खास चीज़े जो आपको प्लेजर देती हैं,  उन्हें  अगर आपने छोड़ दिया जैसे की अनहेल्दी फूड या एक्सेसिव स्क्रीन टाइम, तो ये चीज़ आपके ओवरऑल वेलबीईन्ग को काफ़ी हद तक इम्प्रूव कर सकती है। 

इसके अलावा, अपने पैसे ख़र्च करने की  हैबिट पर कंट्रोल करके आप फाईनेंशियल डिसप्लिन प्रैक्टिस  कर सकते हैं, ये  आपको फ्यूचर के फ़ाईनेंशियल तंगी  से बचा सकता है। 

और लास्ट में,  सेल्फ-डिसप्लिन आपके ऊँचें गोल्स और वैल्यूज़ को दिखाता है। ये एक conscious चॉइस को दिखाता है की हमें बेसिक instinct से ऊपर उठते हुए मीनिंगफुल्स गोल्स पर फोकस करना चाहिए। 
डे 25,  आपको आज से स्टार्ट करने के लिए एनकरेज करता है। अपने  प्रोग्रेस को डीले करने के बजाए अभी छोटे मगर एक्शनेबल स्टेप्स लो। 

अगर आपका गोल पैसे सेव करना है तो अपने वॉलेट से एक डॉलर लो और उसे अपने  सेविंग जार में डालो। इसे डेली या वीकली रिपीट  करते हुए सेविंग का  रूटीन बना लो। कुछ ही वक्त बाद,  ये छोटे-छोटे कॉन्ट्रिब्यूशन  एक बड़े अमाउन्ट में तब्दील होते चले जाएंगे। 

डे 26,  आपको सिखाता है की आपकी चॉइस का  लॉंग-टर्म इफ़ेक्ट हो सकता है। अपने फ्यूचर सेल्फ को इमेजिन करो ताकि आप ऐसे डिसिशन ले सकें जो आपके गोल्स से मैच करते हों।

 
मान लो कि  आपके सामने दो चॉइस हैं, एक है एक ऐसा लक्जरी फर्निचर का पीस खरीदना जो उतना भी  ज़रूरी  नहीं  है और दूसरी तरफ है अपने रिटायरमेंट के लिए पैसा बचाना। अब दस साल बाद खुद को इमेजिन करो, एक तरफ़ आप हो एक फर्निचर के बेकार पड़े पीस के साथ जो धूल खा रहा है और दूसरी तरफ आपके पास ढेर सारा पैसा है जो आपने अपने फ्यूचर के लिए सेव करके रखा था। आप किस सिनेरियों में  ज़्यादा खुश रहेंगे?  जब आप इन रिजल्ट्स को  इमेजिन करेंगे तो आप समझ जाएंगे की आपके चॉइस का कैसा  लॉंग-टर्म असर हो सकता है। 

डे 27, सही रास्ता  फॉलो करने के बारे में बताता है। ऐसे गोल्स सेट करो जो आपको एनर्जी के साथ आगे बढ़ने के लिए इंसपायर करें नाकि आपकी हिम्मत ही तोड़ दें। अगर आपका गोल आपकी ओवरआल वैलबीईन्ग के लिए अच्छा  नहीं  है तो उसे बदलकर  ऐसा गोल सेट करें जो कम फ्रस्ट्रैटिंग लेकिन मज़ेदार हो। 

और लास्ट में डे 28 की बात करते हैं जो offensive मोड में रहने की इंपोर्टेन्स बताता है। इस समरी को पढ़ना ये प्रूव करता है की आप गरीब  नहीं  हैं। आपके पास इन्टरनेट, एक फोन या PC है। यानि आप प्रिविलिज्ड हैं और थोड़ा सा  रिस्क लेना अफोर्ड कर सकते हैं। 

उन डिसिशन  के बारे में सोचो जो आपने कुछ वक्त पहले ही लिए थे और ये सोचो कि  क्या वो आपने डर की वजह से  लिए थे या प्रोग्रेस और ग्रोथ की वजह से लिए थे। अपने ज्यादातार डिसिशन में  समझदारी से रिस्क लेने और आगे बढ़ने को प्रायोरिटी देने का गोल रखें।  ये माइन्डसेट आपके  डर को पीछे धकलेते हूए बड़े से बड़ी सक्सेस की तरफ ले जा सकता है। 


Week 5


डे 29, इसमें  आप सीखेंगे कि सेल्फ-डिसप्लिन बनाने के लिए फिजिकल एक्सरसाइज़ की भी अपनी इंपोर्टेन्स है। अपने रूटीन में फिजिकल एक्टिविटीज़ को ज़रूर शामिल कीजिए चाहे थोड़ा-बहुत ही सही तभी आप अपने  एफर्ट और चैलेंज के फायदे को एक्सपीरियंस कर पाएंगे। ये बहुत सिंपल एक्टिविटीज़ भी हो सकती हैं जैसे डेली वॉक करना, स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज़ करना या कोई भी ऐसी एक्टिविटी जो आपकी बॉडी को मूवमेंट दे। 

डे 30, इस बात पर ज़ोर देता है कि कभी-कभी बेवकूफ होना भी कितना ज़रूरी है। फेलियर हमारी सक्सेस की जर्नी में एक इंपोर्टेंट पार्ट निभाता है। insult के डर से पीछे हटने के बजाए खुद ऐसे मौके ढूंढो जहां आपको फेल होने या रिजेक्शन का सामना करना पड़ सकता है। 

जैसे example के लिए, अगर आप पब्लिक स्पीकिंग से डरते हैं तो प्रेजेंटेशन देना शुरू कीजिए, चाहे आप कितना भी नर्व फ़ील करें या आपको लगे कि आप परफेक्ट नहीं बोल पाएंगे तो भी कोशिश कीजिए। ये याद रखिए की स्पीच के दौरान कोई गलती होना या कुछ भूल जाना मामूली चीज़ है जो आपको वैल्यूएबल लर्निंग एक्सपीरियंस  दे सकता है।  

रेगुलर बेसिस पर ऐसी सिचुएशन का सामना करें जहां आपको फेलियर के बावजूद अपनी फ्लेक्सिबिलिटी और सेल्फ-डिसप्लिन डेवलप करने के मौके मिल सकें। 

डे 31, “नॉर्मल” बनने के कान्सेप्ट को चैलेंज करता है। सेल्फ-डिसप्लिन अक्सर हमें बाकि दुनिया से अलग खड़ा कर देती है। सोसाईटी के एवरेज नॉर्म्स पर चलने के बजाए थोड़ा अलग मगर एक्सीलेंट बनने का आईडिया ज़्यादा अच्छा है, जो आपको अपनाना चाहिए। लेकिन इसके साथ ही इस बात के लिए भी तैयार रहिए कि सोसाईटी आपको क्रिटिसाइज़ करेगी या आपको अपने सेल्फ-कंट्रोल और पर्सनल ग्रोथ पर फोकस करने की वजह से गलत भी समझा जा सकता है। 

जैसे मान लो कि अगर आप  ज़्यादा टीवी देखना या अनहेल्दी खाने की हैबिट जैसे टेम्पटेशन से बचने के लिए  अपने सेल्फ-डिसप्लिन पर काम कर रहे हैं तो खुद को ये याद दिलाना भी  ज़रूरी है कि आपकी यही कोशिशें आपको एक्सीलेंट बनने में मदद करेंगी। भले ही दूसरों को आपकी चॉइस अजीब लगे या वो आपके डेडीकेशन को क्रिटिसाइज़ करें,  उन्हें  करने दो, आप बस अपनी पर्सनल एक्सीलेंस अचीव करने के रास्ते पर चलते रहो। 
अपने जैसी सोच रखने वाले लोगों के साथ रहो जो आपकी तरह सेल्फ-डिसप्लिन और पर्सनल ग्रोथ को प्रायोरिटी देते हैं ताकि आपको challenging टाइम के दौरान भी हर तरह से मोटीवेशन मिलती रहे। 

डे 32, सेल्फ-डिसप्लिन को एक प्लांट यानी पौधे की तरह देखभाल करने से compare करता है। जैसे एक छोटे से पौधे का ध्यान रखना पड़ता है, उसे धूप, हवा और पानी की ज़रुरत होती है, उसी तरह सेल्फ-डिसप्लिन के लिए लगातार एफर्ट करने की ज़रुरत होती है। 

आप सेल्फ-डिसप्लिन को कैसे अप्रोच करते हैं उसके बारे में सोचो और खुद से पूछो की आप उसे कैसे बनाते आए हैं। अपने सेल्फ-कंट्रोल को मजबूत करने और इन्स्टेन्ट ग्रेटिफिकेशन के बजाए लॉंग-टर्म गोल्स को प्रायोरिटी देने के लिए आप अब तक किस तरह के एक्शन लेते रहे हैं। 

जैसे example के लिए, अगर आप टाइम मैनेजमेंट से जुड़े सेल्फ-डिसप्लिन को इम्प्रूव करने पर काम कर रहे  हैं तो इस बात पर गौर कीजिए कि क्या आप कन्सिस्टन्टली एक शेड्यूल को  फॉलो करते हैं, क्या आपने रियलस्टिक गोल्स सेट किए हैं और अपनी प्रायोरिटीज़ पर फोकस बनाए रखा है? 

जैसे कोई मेहनती और पौधों की देखभाल करने वाला माली रोज़ाना अपने पौधों को पानी देता है, उसकी देखभाल करता है, उसी तरह ये सोचो की आपने अपने सेल्फ-डिसप्लिन को नर्चर करने के लिए क्या-क्या एफर्ट्स किए हैं।  

डे 33,  पेशेंस यानी सब्र रखने की quality के बारे में बताता है। कुछ गोल्स, जैसे कि किसी स्किल को  मास्टर करने के लिए टाइम और पक्के इरादे की  ज़रुरत पड़ती है। 

अपनी लाइफ के उन एरियाज़ को पहचानो जहां आपको अपने गोल्स अचीव करने के लिए पेशेंस रखने की बहुत  ज़रुरत है। ये मानकर चलो कि कुछ चेंजेस जल्दबाज़ी में  नहीं  किए  जाते हैं,  उनमें वक्त लगता है। तुंरत रिजल्ट अचीव करने के बजाए लगातार अपने एफर्ट और प्रोग्रेस पर फोकस करो। 

जैसे कि मान लो आपने फिजिकल फिटनेस का गोल सेट किया है तो पहले ये समझना  ज़रूरी है कि आपकी बॉडी मसल लॉस का रिस्क लिए बिना एक नैचुरल लिमिट तक ही फैट बर्न कर सकती है। ऐसे में,  अगर आप एक्सट्रीम मेथड जैसे कि भूखे रहकर तेज़ी से वेट लॉस करने की कोशिश करेंगे तो ये चीज़ आपके  हेल्थ पर बुरा असर डाल सकती है। 

डे 34,  इन्स्टेन्ट एनलाईटमेंट बस एक ग़लतफहमी है, जिसे आपको तोड़ना है। सेल्फ-डिसप्लिन उस प्रैक्टिस  का नाम है जो लगातार किया जाता है, आप इसे अचानक से अचीव  नहीं  कर सकते। 

अपना टारगेट वेट अचीव करने के लिए अगर आज आप एक चॉकलेट बार छोड़ रहे हैं तो ये समझने की  ज़रुरत है कि आज़ से एक साल बाद भी अपने प्रोग्रेस को  मेंटेन करने के लिए आपकी यही चॉइस होनी चाहिए। 

इसका सीक्रेट छुपा है अपने विलपावर पर लगातार काम करने और अपने गोल्स के लिए कमिटेड रहने में। ये मत सोचिए कि  अचानक से बदलाव हो जाएगा बल्कि सेल्फ़-डिसिप्लिन को अपने लाइफ की एक हैबिट बनाइए। 

डे 35, डिफिकल्टी यानी कोई काम कितना मुश्किल है, उसके वैल्यू को हाईलाईट करता है। जो सफलता आसानी से मिल जाए, वो कुछ वक्त तक तो अच्छी लगती है लेकिन challenges को पार करने के बाद जो सक्सेस आपको मिलेगी, उसका satisfaction लंबे समय तक टिका रहेगा। 

ईज़ी सक्सेस और challenging गोल्स के बीच बैलेंस बनाने की कोशिश करें। मेंटल टफ़नेस, पर्सनल ग्रोथ और अचीवमेंट को बढ़ाने के लिए कम से कम एक एम्बिशस और डिमांडिंग गोल सेट करो। 


Week 6

ये वीक आपको सिखाएगा कि डिसप्लिन प्रोग्रस के बारे में होता है,  पर्फेक्शन के बारे में नहीं। अपनी लिमिट को  पुश करो, सिचुएशन के हिस्साब से ढल जाओ और खु को  इम्प्रूव करो ताकि आप अपने गोल्स को  अचीव कर सको। 

डे 36, आपको धीरे-धीरे अपनी लिमिट को  पुश करना सिखाता है। आपको एक दिन में ही ज़ीरो से हीरो बनने की कोशिश  नहीं  करनी है। 

छोटे और अचीवेबल challenges  सेट करके आप अपने सेल्फ-डिसप्लिन की जर्नी स्टार्ट कर सकते हैं। जैसे example के लिए,  अपने एक्सरसाइज़ प्लान में डेली 5 मिनट का  वॉक शामिल कीजिए या अपनी डाइट में से रोज़ एक अनहेल्दी फूड को हटाना शुरू कीजिए। अपना कॉंफीडेन्स और मोमेन्टम बनाते  हुए अपने  प्रोग्रेस को  ईवैल्यूएट करते जाइए और धीरे-धीरे और  ज़्यादा मुश्किल चैलेंज  लेने की आदत डालिए। 

डे 37, में आप शुरू के रेजिस्टेंस को पार करना सीखेंगे। आलस से बचने के लिए और प्रोडक्टिविटी बढ़ाने के लिए, “ज़ीरो-सेकंड रूल” को अप्लाई  कीजिए जिसमें एक चीज़ शामिल है: अनप्रोडक्टिव कामों को एकदम अवॉइड करो और तुरंत अपने काम पर लग जाओ। 

जैसे example के लिए,  कोई प्रॉब्लम  आते ही तुरंत उससे डील करते हुए अपने डेली रूटीन  में ज़ीरो-सेकंड रूल को अप्लाई कीजिए। जैसे,  अगर आप खाना बनाने के बाद बर्तन धोने का काम बाद के लिए छोड़ देते हो तो इस आदत को बदलो और खाने के बाद बर्तन तुरंत हाथों-हाथ धो डालो। 

आपके पास काम का ढेर ना लग जाए इसके लिए तुरंत एक-एक कर काम निपटाने की आदत डालो.  इससे आप खुद को काम टालने की आदत से बचा सकते हैं। ये प्रैक्टिस  आपकी प्रोडक्टिविटी को  बढ़ाते हुए और स्ट्रेस कम करते हुए आपको   ज़्यादा ऑर्गेनाईज़्ड और ईफेक्टिव वर्कफ़्लो को डेवलप करने का मौका देगी। 

डे 38, एक फायदेमंद अप्रोच के तौर पर मॉडरेशन पर ज़ोर दो। शुरुवात के लिए ईज़ी हैबिट्स और रूटीन सेट करो जो आप लंबे समय  तक फॉलो कर सको। अपने  प्रोग्रेस को लगातार मॉनिटर करते रहो और अपने अचीवेबल रिजल्ट  के हिसाब से अपने गोल्स को  एडजस्ट करते रहो। 

हालांकि डे 39 हमें आगाह करता है कि हम मॉडरेशन  को mediocrity ना समझे। हमारी ग्रोथ के लिए हमें हर हाल में अपनी लिमिट को  पुश करना होगा। इसे अप्लाई करने के लिए आप रेगुलर बेसिस पर अपने  प्रोग्रेस को  ईवैल्यूएट कर सकते हो  और उसी हिसाब से अपने एफर्ट को  एडजस्ट कर सकते हो। जैसे कि अगर आपको लगे कि कोई  टास्क कुछ  ज़्यादा ही सिंपल है तो खुद को चैलेंज करो कि आप इससे भी मुश्किल चैलेंज ले सकते हो। 

डे 40 कहता है कि वर्ड्स से  ज़्यादा एक्शन पावरफुल होता है। सेल्फ-इम्प्रूवमेंट के लिए अपने प्लान के बारे में सबको बताने की  ज़रुरत  नहीं  है, ताकि आप क्रिटिसिज़्म और झूठी तस्सली का शिकार होने से बचे रहें  और आपके अंदर मोटीवेशन की कमी ना हो। 

इसके बजाए,  अपने गोल्स  सिर्फ़ उन लोगों के साथ शेयर करो जो भरोसेमंद हों. एकाउंटेबिलिटी बनाने पर फोकस करो और सबको बताकर दूसरों से validation पाने की इच्छा मत रखो।

जैसे की मान लो, आपको  कोई नया फिटनेस रूटीन स्टार्ट करना है, तो अपना प्लान अपने क्लोज फ्रेंड्स और फेमिली वालों से शेयर करो जो हमेशा आपको सपोर्ट करते हैं। 

सबको अपने गोल्स बढ़ा-चढ़ाकर बताने के बजाए, किसी भरोसेमंद इंसान से कहो  कि वो आपके  प्रोग्रेस को   रेगुलरी चेक करे और मुश्किल समय में आपको मोटिवेट करता रहे। इस अप्रोच के साथ आप निराशा  और बेकार के क्रिटिसिज़्म से बचे रहेंगे और एकाउंटेबिलिटी और  सपोर्ट के साथ आगे बढ़ पाएंगे।  

डे 41 सेल्फ-डिसप्लिन में ह्यूमिलिटी का क्या रोल होता है, इस बारे में डिस्कस करता है। सेल्फ-डिसप्लिन को कभी हल्के में  मत लो या ये मत सोचो कि आप औरों से बेहतर  हो क्योंकि आप अपनी इच्छाओं को  कंट्रोल कर सकते हो। लंबे समय  तक सेल्फ-कंट्रोल बनाए रखने के लिए आपको हंबल बने रहना होगा। 

और लास्ट में डे 42, प्रैक्टिस करने  की इंपोर्टेन्स पर बात करता है। सेल्फ-डिसप्लिन पर ढेर सारी बुक्स पढ़ने से आपके  सेल्फ-कंट्रोल में  रातों-रात को कोई मैजिक  नहीं  हो जाएगा। 

जैसे example  के लिए,  इस बुक का गोल है  आपको एक्शनेबल नॉलेज देना, जिसे आप ईज़ीली अप्लाई कर सकें। जहां एक तरफ बुक्स हेल्पफूल साबित होती हैं, वही दूसरी तरफ ढेर सारी इन्फॉर्मैशन जमा करने के बजाए छोटे-छोटे एक्शन लेना  ज़्यादा अच्छे रिजल्ट देता है। 


Week 7


डे 43 आपको लगातार एफर्ट करने के पावर के बारे में याद दिलाता है। रॉक क्लाइमिंग अक्सर हमें पक्के इरादे  के बारे में वैल्यूएबल लेसन सिखाता है। जब क्लाइमर्स बहुत ज़्यादा थकान महसूस करते हैं तो उनके माइन्ड में पोटेंशियल  सक्सेस के मुकाबले पहला ख्याल यही आता है कि क्यों ना कुछ देर रेस्ट कर लिया जाए,  लेकिन कईं बार थोड़ा सा और कोशिश करते ही बड़ी कामयाबी मिल जाती है। 

ठीक उसी  तरह,  जब सेल्फ-डिसप्लिन फेल हो जाता है और हमें लगता है कि हमें हार मान लेना चाहिए, उसी वक्त हमारा एक एक्स्ट्रा स्टेप हमें अपनी मंजिल के और पास ला सकता है। तो अगली बार जब भी आपको हार मानने  का मन हो तो खुद को चैलेंज करो कि आप थोड़ी और देर तक टिके रहेंगे। ये शायद आपके गोल्स अचीव करने की चाबी बन सकता है। 

डे 44,  ऑप्टिमिज़्म यानी आशावादी होने या पॉजिटिव सोचने पर फोकस करता है। सेल्फ-डिसप्लिन डेवलप करने के लिए पॉजिटिव सोच रखना  बेहद  ज़रूरी है। बिना ऑप्टिमिज़्म के gratification यानी तुरंत संतुष्टि पाने की इच्छा होना,  को डीले करने के लॉंग-टर्म फायदे को  देखना challenging हो सकता है। 

और भी  ज़्यादा पॉजिटिव  माइन्डसेट develop  करने के लिए इन 3  स्टेप्स को ध्यान में रखना  ज़रूरी है - 

 फर्स्ट, ग्रैटिटूड की प्रैक्टिस करें: आपके पास जो कुछ है वो आपको खुशी और सेटिसफेक्शन देता है और यही आपके लिए सबसे बड़ी बात होनी चाहिए। 

सेकंड,  नेगेटिव एक्सपीरियंस  को उस  मौके की तरह देखो जो आपको ग्रो करने का मौका देता है और अपने फेलियर  को वैल्यूएबल लेसन्स की तरह देखने के लिए अपना नज़रिया  चेंज करो।

 
थर्ड, जो चीज़ आपको इंस्पायर करी है ऐसा कंटेन्ट पढ़ने से और ऑप्टिमिस्टिक लोगों के साथ टाइम बिताने  से लाइफ के प्रति आपका जो नज़रिया है, उसे चेंज करने में मदद मिलती है। 

डे 45, ईमानदारी पर ज़ोर देता है। सच्चाई और ईमानदारी, ये कईं लोगों के लिए  चैलेंज बन जाता है, जब वो सेल्फ-डिसप्लिन डेवलप करने की कोशिश करते हैं। डेली लाइफ में कईं ऐसे मौके आते  हैं जब  हम झूठ बोलने पर मजबूर हो जाते हैं। चाहे छोटे-मोटे झूठ हो या बढ़ा-चढ़ाकर की गई बातें,  हम कईं बार अपने resume  या ऑनलाइन प्रोफ़ाईल में लिख देते हैं। 

हालांकि ईमानदारी  सिर्फ़ एक मॉरल प्रिंसिपल  नहीं  है बल्कि character बनाने  के लिए बेहद  ज़रूरी चीज़ है। हमेशा सच बोलने की कसम खाना और challenging सिचुएशन का सामना करके आप अपने सेल्फ-डिसप्लिन को मज़बूत कर सकते है और अपने रिश्तों को भरोसेमंद बना सकते हैं।

 
डे 46 की तरफ बढ़ते हुए आप डर का सामना करने के बारे में सीखेंगे। अपनी इच्छाओं  को काबू में करके और अपने डर का सीधा मुकाबला करके आप खुद को इतना काबिल बना सकते हैं की फ्यूचर में  उन्हें  ईज़ीली resist कर सकें। हर सक्सेसफुल एनकाउंटर आपका कॉंफीडेन्स बढ़ाएगा जिससे आपको अपना नेक्स्ट चैलेंज  मैनेज करना और भी आसान लगेगा। 

लेकिन ये पूरी तरह से निडर होने की गारंटी  नहीं  देता है बल्कि आपको फ्यूचर की रुकावटों को हैंडल करने के लिए  अपने  हर सक्सेस को एक लेसन की तरह और सोर्स ऑफ मोटिवेशन की तरह लेना चाहिए। 

डे 47 आपको warn करता है कि आप अपने सेल्फ-डिसप्लिन को सिरियसली लेना शुरू करें। सेल्फ-डिसप्लिन की जर्नी बहुत लंबी और unrewarding  है। इसमें  कईं बार आपको आलस भी आ सकता है या कोई अनहेल्दी हैबिट आपको लग सकती है। शॉर्ट-कट या टेम्परेरी प्लेजर चाहे कितने भी टेम्पटिंग क्यों ना लगे, अपने लॉंग टर्म गोल्स के प्रति कमिटेड रहिए। 

डे 48 डिस्कस करता है आत्मा के मर जाने  के बारे में । ज्यादातर लोग पर्सनल ग्रोथ और डेवलपमेंट के बजाए अपने बाहरी रंग-रूप पर  ज़्यादा फोकस करना पसंद करते हैं। 

अपने कॉस्मेटिक्स या कपड़ों पर  ज़्यादा खर्च करने के बजाए कुछ फंड्स बचाकर रखो जो आपके बुक्स खरीदने या कोई कोर्स करने या फिर ऐसी एक्टिविटीज़ करने के काम आ सके  जो आपके  मेंटल और ईमोशनल हेल्थ  के लिए अच्छे हों। उन एक्टिविटीज़ को प्रायोरिटी दो जो पर्सनल ग्रोथ को प्रायोरिटी देते हैं  और  सिर्फ़ बाहरी रंग-रूप पर फोकस करने के बजाए आपकी अंदरूनी खूबियों को बढ़ाओ। 

और लास्ट में डे 49 लस्ट के बारे में डिस्कस करता है। टेम्पटेशन को रीज़िस्ट करना और सेल्फ-डिसप्लिन की प्रैक्टिस  करना इंसान के लिए बहुत  ज़रूरी है ताकि वो अपनी लाइफ में असली  फ़्रीडम और मास्टरी अचीव कर सके। टेम्पटेशन्स को रुकावट  मानकर चलो जो आपके  फ़्रीडम के रास्ते में आता है। instant gratification को तुरंत ना बोल दो। लॉंग-टर्म सेटिसफेक्शन शॉर्ट-टर्म के मुकाबले कहीं  ज़्यादा बेहतर होता  है इसलिए आपको उस पर फोकस करना चाहिए। 
 

Week 8


डे 50, आपको अपने गोल्स अचीव करने के बाद रेस्ट ना करने के लिए एनकरेज करता है। बेशक अपनी सक्सेस को सेलिब्रेट कीजिए पर उसके बाद नेक्स्ट चैलेंज की तरफ बढ़ना  ज़रूरी है। जैसे कि मान लो, अगर आपने अपना वेट कम किया है तो अब आपका नेक्स्ट टारगेट होना चाहिए मसल बनाना या अपने nutrition को इम्प्रूव करना। 

डे51, पोटेंशियल क्रिटिसिज़्म के बावजूद एक्शन लेने के बारे में बताता है। जजमेंट के डर से कुछ नया करने से मत डरो। जैसे कि आप कोई नया वेंचर स्टार्ट करना चाहते हैं या आपने फिटनेस का गोल सेट किया है। उन लोगों की बिल्कुल भी परवाह मत करो जो आपको नीचे गिराने की कोशिश करते हैं। आपको  सिर्फ़ और  सिर्फ़ अपने प्रोग्रेस पर ध्यान देना है। 

डे52, खुद के बारे में सोचने पर ज़ोर देता है। बिना सोचे-समझे सोसाईटी के नॉर्म्स को  फॉलो करने की  ज़रुरत  नहीं  है। खुद के  जजमेंट पर भरोसा रखो फिर भले ही इसका मतलब औरों से अलग होना क्यों ना हो। जैसे example के लिए, लोग चाहे कुछ भी कहें, आपके हेल्थ को जो suit करे वो ईटिंग प्लान फॉलो करो। 
डे 53, आपके अंदर एक बर्निंग”yes” होना चाहिए। लॉंग-टर्म कमिटमेंट और अपने गोल्स अचीव करने के लिए अनकम्फर्टेबल चॉइसेज़ लेने के लिए आपके अंदर स्ट्रॉंग मोटिवेशन होना चाहिए। 

अपने उन गहरे मोटीवेशन और ड्रीम्स को पहचानो जो आपको आगे बढ़ने के लिए ड्राइव करते हैं। क्लियरली डिफाइन करो  कि आप क्या अचीव करना चाहते हैं और ये आपके लिए क्यों इतना  ज़रूरी है। इस पावरफुल  मोटिवेशन को डिसिशन  लेने के लिए एक गाईडिंग फोर्स की तरह यूज करो और उन  एक्शन को प्रायोरिटी दो जो आपके गोल्स से मैच करते हों। 

Example के लिए, अगर आप अपने बच्चे के एजुकेशन के लिए पैसा  सेव कर रहे हैं तो वो स्ट्रॉंग ”yes” आपको फालतू के खर्चे करने से रोकेगा और लॉंग-टर्म फाईनेंशियल गोल्स पर फोकस बनाए रखने में मदद करेगा। ऐसा  पावरफुल  मोटिवेशन हमारे लिए उन डिस्ट्रैक्शन्स या शॉर्ट-टर्म प्लेजर्स को “नो” बोलना आसान कर देता  है जो हमारी प्रोग्रेस में रूकावट डालते हैं। 

डे 54, लॉंग-टर्म अप्रोच को अंडरएस्टिमेट करने के बारे में डिस्कस करता है। चाहे पर्सनल डेवलपमेंट हो या बिजनेस, कुछ खास गोल्स अचीव करने के लिए लॉंग-टर्म कमिटमेंट और डेडीकेशन की  ज़रुरत होती है। शॉर्ट-टर्म एक्सपेक्टेशन्स कईं बार हमें नाउम्मीद कर देती हैं और हम समय से पहले ही हार मान लेते हैं। 

एक बड़ा और सक्सेसफुल बिजनेस खड़ा करने के लिए, फिट बॉडी पाने के लिए, किसी नए  स्किल को  मास्टर करने के लिए या सेल्फ-डिसप्लिन डेवलप करने के लिए, लगातार मेहनत करनी पड़ती है। जैसे example  के लिए,  बेस्ट सेलर  ऑथर बनने की मार्टिन मेड़ोज़ की इस जर्नी में दस साल की प्रैक्टिस की  ज़रुरत पड़ी जहां  उन्हें  लगातार लिखना पड़ा तब जाकर वो इतनी बड़ी सक्सेस अचीव कर पाए। 

डे 55 एड्वाइज़ देता है कि डटकर हर मुसीबत का सामना करो। अपने  सेल्फ-डिसप्लिन को मज़बूत बनाने और टेस्ट करने के लिए मुश्किल से मुश्किल चैलेंज लो। सेल्फ-डिसप्लिन का मतलब ये  नहीं  है कि  जो ईज़ी और कन्वीन्यन्ट हो, वही करो। सेल्फ-डिसप्लिन आपको किसी भी तरह के  सिचुएशन में सर्वाइव करना सिखाता है फिर चाहे वो कितना भी मुश्किल या बुरा एक्सपीरियंस क्यों ना हो। 

जैसे कि, अगर हम मोटिवेटेड हैं तो हमारे लिए काम करना आसान हो जाता है लेकिन असली  सेल्फ-डिसप्लिन का मतलब है डीमोटीवेशन में भी उतनी ही मेहनत से काम करना। 

और लास्ट में डे 56, बिलीफ के पावर को हाईलाईट करता है। पॉजिटिव  सोचो और अपनी काबिलियत पर भरोसा रखो कि आप challenges  को पार  कर सकते हैं। जैसे example के लिए, अपने टास्क को कॉंफिडेन्टली अप्रोच करो क्योंकि आप जानते हो कि आपका माइन्डसेट ही आपकी सक्सेस को सबसे  ज़्यादा इंफ्लुएंस करता है। 

Conclusion
पर्सनल ग्रोथ, फ़ाईनेंशियल स्टेबिलिटी और ओवरऑल सक्सेस के लिए इंसान में  सेल्फ-डिसप्लिन का होना बेहद  ज़रूरी है। इस समरी में, आपने लाइफ के अलग-अलग पहलुओं के ज़रिए सेल्फ-डिसप्लिन डेवलप करने के लिए वैल्यूएबल बातें सीखीं।

इस समरी में, सेल्फ-डिसप्लिन के साथ 365 दिनों के पहले दो महीनों के बारे में डिस्कस किया गया। 
पहले वीक में,  आपने नए challenges को सेट करते हुए  सक्सेस को सेलिब्रेट करने की इंपोर्टेन्स के बारे में जाना। इसमें,  पक्के इरादों और ऐम्बिशन के साथ आगे बढ़ना होता है। 

सेकंड वीक में,  आपने जाना कि क्रिटिसिज़्म का सामना कैसे करना है और जज किए जाने के डर को अपनी प्रोग्रेस को लिमिट ना करने देने के बारे में भी सीखा। इसमें शामिल है उन नेगेटिव आवाजों को इग्नोर करना जो आपको रोकती हैं और अपनी ग्रोथ और अचीवमेंट पर फोकस करना। 

थर्ड वीक में,  आपने जाना कि आंखे मूँदकर सोसाईटी के नॉर्म्स को फॉलो करने के बजाय  इंडिपेंडेंटली सोचना आपकी ग्रोथ के लिए कितना  ज़रूरी है। अपने जजमेंट पर भरोसा करना सीखो और ऐसे डिसिशन  लो जो आपकी वैल्यूज़ और गोल्स से मैच करते हों। 

फ़ोर्थ वीक में, आपने लगातार कमिटमेंट और uncomfortable चॉइस लेने के लिए strong मोटिवेशन  के रूप में अंदर से गहरी "हाँ" कहने की पावर को discover किया। अपनी सबसे गहरे मोटिवेशन  को पहचानें और उन्हें डिसिशन लेने में एक गाइडिंग force के रूप में यूज़ करें।

फिफ्थ वीक में, आपने इस बात को गहराई से समझा कि लाइफ में बड़े और इम्पोर्टेन्ट  गोल्स अचीव करने के लिए आपको लॉंग टर्म अप्रोच रखनी चाहिए। इसमें ये जानना  शामिल है कि मीनिंगफुल प्रोग्रेस के लिए डेडिकेशन, कंसिस्टेंसी और पेशेंस रखने की  ज़रुरत होती है। 

सिक्स्थ वीक में,  आपने फेलियर  को सही तरीके से हैंडल करने और अपने सेल्फ-डिसप्लिन को मज़बूत करने के लिए challenges  लेने की इंपोर्टेन्स के बारे में जाना,  जिसमें शामिल है हर मुश्किल में खुद को संभाले रखना और लॉंग-टर्म गोल्स पर अपना फोकस बनाए रखना। 

सेवन्थ वीक में,  आपने बिलिफ़ के पावर और पॉजिटिव माइन्डसेट मेंटेन करने के बारे में जाना। पूरे कॉंफीडेन्स के साथ ऑप्टिमिस्टिक सोच के साथ आगे बढ़ते हुए अगर आप अपने टास्क पर ध्यान देंगे तो ये आपकी सक्सेस को काफ़ी हद तक इन्फ़लुएंस कर सकता है। 

लास्ट  वीक में,  आपने सीखा कि अच्छा  माइन्डसेट मेंटेन करना कितना  ज़रूरी है। क्रिटिसिज़्म के बावजूद आपको एक्शन लेना  चाहिए और खुद पर भरोसा रखना चाहिए। ये लेसन, एक पर्पस के साथ  और डिसप्लिन्ड लाइफ जीने के core प्रिंसिपल हैं। 

इस समरी से आपने जो  लेसन सीखें हैं उनके बारे में सोचिए और अपने सेल्फ-डिसप्लिन को मज़बूत करने के लिए आपको कौन से ज़रूरी एक्शन लेने चाहिए उन्हें पहचानिए। चाहे आप क्लियर फ़ाईनेंशियल गोल्स सेट करना चाहते हों, लॉंग-टर्म प्रोजेक्ट्स के लिए कमिटेड रहना चाहते हों  या फिर अपनी वर्क हैबिट्स को  इम्प्रूव करना चाहते हों, पर्सनल ग्रोथ और सक्सेस के लिए एक्टिव होकर स्टेप्स लीजिए। 

याद रखिए, कंसिस्टेंट एफर्ट और डेडिकेशन ही आपके लिए लंबे समय तक टिकने वाला सेल्फ-इम्प्रूवमेंट और satisfaction का रास्ता बना सकते हैं।

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