ATTACHED - The New Science of Adult Attachment and How It Can Help You Find and Keep Love
Amir Levine, M.D. And Rachel Heller, M.A.
इंट्रोडक्शन
क्या कभी ऐसा हुआ कि किसी से बेपनाह प्यार करने के बावजूद भी आपका रिश्ता चल नहीं पाया? क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर उस रिश्ते में कहाँ कमी रह गई थी या क्या गलती हो गई थी?
असल में, बहुत से लोगों के बीच आपसी मतभेद होते हैं कईं बार इन्हें सुलझाना नामुमकिन हो जाता है। कुछ बिहेवियर को बदला नहीं जा सकता है, जिसके चलते लोग अपना रिश्ता ही ख़त्म कर देते हैं, लेकिन ये मतभेद या डिफरेंसेस अटैचमेंट स्टाइल की वजह से आते हैं।
इंसान का अटैचमेंट स्टाइल अलग-अलग तरह का होता है। अटैचमेंट स्टाइल वो तरीका है जिनसे आप इंटीमसी को समझते हैं और उसके प्रति respond करते हैं।
इस समरी में, आप सीखेंगे कि कैसे अटैचमेंट स्टाइल रिलेशनशिप्स में लोगों की ज़रुरत पर असल डालते हैं ये ज़रूरतें इस चीज़ को अफेक्ट करते हैं कि लोग अपने पार्टनर के साथ कैसे बिहेव करते हैं या उन्हें किस तरह का response देते हैं किसी romantic रिलेशनशिप में आप कैसे respond करते हैं इसका आपके बचपन से गहरा ताल्लुक है।
अटैचमेंट स्टाइल 3 टाइप के होते हैं - सिक्योर, anxious और avoidant अटैचमेंट स्टाइल।
सिक्योर लोग, इंटीमसी को लेकर कम्फर्टेबल फ़ील करते हैं ये लोग अच्छे से कम्यूनिकेट कर पाते हैं और warmth यानी अपनेपन या गर्मजोशी के प्रति respond भी करते हैं
anxious लोग इंटिमसी के लिए तरसते हैं वो हमेशा इस टेंशन में रहते हैं कि उनका पार्टनर उन्हें लेकर कैसा फ़ील करते हैं
avoidant लोग इंटिमसी से डरते हैं उन्हें ये डर लगा रहता है कि अगर वो किसी के साथ इंटिमेट या करीब हुए तो उनकी आज़ादी छिन जाएगी, इसलिए वो उस क्लोजनेस को लिमिट करना पसंद करते हैं
अटैचमेंट थ्योरी ईवैल्यूएशन से आती है। लोग क्लोज रिलेशनशिप में रहने के लिए ही पैदा हुए हैं इंसान को ज़िन्दा रहने के लिए दूसरों के साथ बॉन्ड और रिलेशनशिप बनाने की ज़रुरत पड़ती है। बायोलॉजी में इसे “अटैचमेंट सिस्टम” कहते हैं जब आपके अपने आपके पास होते हैं तो अटैचमेंट सिस्टम आपको सेफ़ फ़ील कराता है।
इस समरी में, आप सीखोगे कि आपका अटैचमेंट स्टाइल कैसे आपके रिलेशनशिप पर असर डालता है। इससे आपको ये समझने में मदद मिलेगी कि आप और आपका पार्टनर एक-दूसरे के प्रति बेहतर तरीके से कैसे respond कर सकते हैं
अपने अटैचमेंट स्टाइल को जानने से आपको किसी को डेट करने में भी मदद मिलेगी। यानी आप जान पाएँगे कि सामने वाला आपकी ज़रूरतों को पूरा कर सकता है या नहीं। यही एक ख़ुशहाल, हेल्दी और romantic रिलेशनशिप का सीक्रेट है।
Dependency Is Not a Bad Word
किसी के साथ अटैच्टमेंट हो जाना एक बायोलॉजिकल response है। आपका ब्रेन आपके पार्टनर से कनेक्शन और सपोर्ट चाहता है। ये कनेक्शन और सपोर्ट आपको तब मिलता है जब आप उनके साथ इंटिमसी यानी करीबी रिश्ता बनाते हैं. यही वजह है कि अक्सर आप अपने पार्टनर के साथ फिजिकली और साइकोलॉजिकली क्लोज होना चाहते हैं
आप उन्हें दोनों तरह से जानना चाहते हैं ये इंटिमसी जो आप एक-दूसरे को जानकर बनाते हैं, आपको सिक्योर फ़ील कराता है। आप उस इंटिमसी को तब तक बनाए रखने की कोशिश करते हैं जब तक आप सिक्योर फ़ील नहीं करने लगते।
शायद इस फीलिंग को आप overdependency समझ रहे होंगे। शायद आप कभी ऐसे रिलेशनशिप में रहे होंगे जहां आपको लगा हो कि आपका पार्टनर आप पर बहुत ज़्यादा डिपेंडेंट है।
कईं कल्चर्स में, इंडिपेंडेंट होने पर ज़ोर दिया जाता है। ये सोच कई दशकों से मौजूद रही है, जिसमें चाइल्ड केयर भी शामिल है।
1940 के शुरुवाती दौर में, “coddling” टर्म इंवेंट किया गया था। Coddling का मतलब है जब पेरेंट्स अपने बच्चों की ज़रूरतों का हद से ज़्यादा ख्याल रखते हैं यानी हद से ज़्यादा लाड-प्यार करना. ऐसा माना जाता था कि बहुत ज़्यादा coddling बच्चों को इनसिक्योर बना देती है। ऐसे बच्चे बड़े होकर हेल्दी एडल्ट्स नहीं बन पाते हैं
coddling को कम करने के लिए पेरेंट्स को सलाह दी गई कि जब उनका बच्चा रोए तो वो उन्हें अनदेखा करें या उन पर ध्यान ना दें। कईं बार बच्चे घंटों रोते रहते हैं. ऐसा करने क मकसद था कि बच्चा बिना अपने पेरेंट्स की हेल्प के खुद चुप होना सीखे।
लेकिन फिर कईं सालों बाद रिसर्च से ये पता चला कि coddling का आईडिया ही गलत है। छोटे बच्चों को उनसे लगाव करने वाले शख्स के साथ bond करने की ज़रुरत होती है, जैसे कि उसके पेरेंट्स। बड़े होकर एक नॉर्मल और हेल्दी एडल्ट बनने के लिए ये बेहद ज़रूरी है। तो भला एडल्ट को क्यों लगता है कि एक-दूसरे से अटैचमेंट होना करना गलत है?
आज के स्टैंडर्ड के हिसाब से बात करें तो अपने पार्टनर पर डिपेंडेंट होना बुरा या अनअट्रैक्टिव समझा जाता है, लेकिन दूसरे इंसान के साथ अटैचमेंट फील करना आपकी हेल्थ के लिए अच्छा होता है। ये आपके ब्लड प्रेशर, हार्ट रेट और ब्रीदिंग को नॉर्मल रखने में हेल्प करता है।
इंटिमेट रिलेशनशिप में पार्टनर्स एक-दूसरे की हेल्थ पर असर डालते हैं - ईमोशनली भी और साइकोलॉजिकली भी, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि आपको हर वक्त अपने पार्टनर के साथ रहना चाहिए। बल्कि ये आपके पास किसी का सपोर्ट होने का कॉन्फिडेंस होता है जो आपको सिक्योर और ख़ुश फ़ील कराता है। जब आप सिक्योर और कॉन्फिडेंट फ़ील करते हैं तो आप ज़्यादा इंडिपेंडेंट भी होते हैं. इसे डिपेंडेंसी पैराडॉक्स (“dependency paradox”) कहते हैं.
डिपेंडेंसी पैराडॉक्स को समझने के लिए आइए स्ट्रेंज सिचुएशन एक्सपेरिमेंट के बारे में जानते हैं। सारा की एक साल की बेटी है जिसका नाम है किम्मी। इस एक्सपेरिमेंट के लिए वो एक कमरे में गए जहां बहुत सारे खिलौने रखे थे। किम्मी कमरे में रखे खिलौनों को देखने और explore करने लगी। वो एक-एक खिलौना उठाने लगी और उनसे खेलने लगी। खेलते-खेलते वो बीच-बीच में अपनी माँ की तरफ भी देख रही थी।
थोड़ी देर बाद, रिसर्च असिस्टेंट ने सारा को रूम से बाहर जाने के लिए कहा। अब किम्मी रूम में खिलौनों के साथ अकेली थी। उसे पता नहीं चला था कि उसकी माँ रूम से बाहर चली गई है।
लेकिन जैसे ही उसे पता चला कि उसकी माँ रूम में नहीं है तो किम्मी रोने लगी। वो दरवाजे के पास गई और अपनी माँ को आवाज़ देने लगी। रिसर्च असिस्टेंट ने किम्मी का ध्यान भटकाने की बहुत कोशिश की। उसने किम्मी को कुछ और खिलौने भी दिए, लेकिन किम्मी इससे और ज़्यादा चिडचिडी हो गई और ज़्यादा ज़ोर से रोने लगी।
आखिरकार सारा रूम में वापस आई जिसे देखकर किम्मी को राहत मिली। उसने अपनी माँ से कहा कि उसे गोद में उठा ले। उसकी माँ ने उसे गोद में उठाकर चुप कराया, तब जाकर किम्मी ने रोना बंद किया। आराम महसूस करने के बाद किम्मी दोबारा खिलौनों से खेलने में मगन हो गई।
इस एक्सपेरिमेंट से ज़ाहिर होता है कि एक अटैचमेंट फिगर का होना आपको कॉन्फिडेंस देता है। सारा की मौजूदगी को “सिक्योर बेस” कहते हैं। एक बच्चे के एक्सप्लोर करने, सीखने और ग्रो करने के लिए सिक्योर बेस का होना बेहद ज़रूरी है।
सिक्योर बेस के बिना बड़े होना, आपके romantic रिलेशनशिप को अफेक्ट कर सकता है। जब आपका पार्टनर आपको सेफ फ़ील कराता है तो आप दूसरी चीज़ों पर फोकस कर पाते हो। आप अपने जॉब पर फोकस कर पाते हैं, अपनी हॉबीज़ पर ध्यान दे पाते हैं और दूसरों की केयर कर पाते हैं।
आपके पार्टनर से सिक्योरिटी ना मिलना आपकी एनर्जी को कम कर देता है और आपका सारा फोकस अपने पार्टनर से सिक्योरिटी हासिल करने में लग जाता है। कुछ मामलों में तो ये आपके हेल्थ पर नेगेटिव असर भी डालने लगता है।
टोरंटो यूनिवर्सिटी के एक साइकेट्रिस्ट ब्रायन बेकर ने इस बारे में स्टडी की थी। एक एक्सपेरीमेंट में उन्होंने पाया कि रिलेशनशिप का आपके ब्लड प्रेशर पर गहरा असर पड़ता है.
ब्रायन ने खासतौर पर उन पेशेंट्स को स्टडी किया जिन्हें mild हाई ब्लड प्रेशर था। जो लोग अपनी मैरिड लाइफ में खुश थे और अपने पार्टनर के साथ टाइम बिताते थे, उनका ब्लड प्रेशर कम रहता था। दूसरी तरफ, जो लोग अपनी मैरिड लाइफ में खुश नहीं थे उनका ब्लड प्रेशर हमेशा बढ़ा हुआ रहता था. इसलिए romantic रिलेशनशिप आपके ईमोशनल और फिजिकल हेल्थ दोनों पर असर डालते हैं।
What Is My Attachment Style?
अटैचमेंट थ्योरी को समझना, आपको अपने अटैचमेंट स्टाइल को पहचानने में हेल्प करता है। तीन तरह के अटैचमेंट स्टाइल हैं: anxious , सिक्योर और avoidant।
सबसे पहले, anxious अटैचमेंट स्टाइल की बात करते हैं। अगर आप anxious टाइप के इंसान हैं तो आपको अपने पार्टनर के करीब रहना अच्छा लगता है। उनके साथ इंटिमेट होकर आपको बेहद खुशी होती है, लेकिन आप अपने पार्टनर की फीलिंग्स के बारे में सोचकर डरते भी हैं. आमतौर पर आपके मन में ये डर रहता है कि कहीं आपका पार्टनर भी आपके उतने करीब आना चाहता है या नहीं।
आप अपने रिश्ते के बारे में बहुत ज़्यादा सोचते हैं. आप अपने पार्टनर के बिहेवियर में होने वाले छोटे-मोटे बदलावों के प्रति बहुत सेंसीटिव होते हैं। यानी उसमें रत्ती भर का फ़र्क आ जाए तो आप घबरा जाते हैं और उसे पर्सनली ले लेते हैं. जैसे कि मान लीजिए कि आपका पार्टनर अब पहले की तरह आपके जोक्स सुनकर उतना नहीं हँसता है तो बस इतनी सी बात से आप परेशान हो जाते हैं और ये चीज़ आपके अंदर ऐंगज़ाईटी की फीलिंग को ट्रिगर करने लगती है।
आपको टेंशन होने लगती है कि अब आपका पार्टनर आपसे पहले जैसा प्यार नहीं करता है, इसलिए आप ओवररिएक्ट कर सकते हैं या कुछ ऐसा बोल सकते हैं जिससे आपको बाद में पछतावा होता है।
सेकंड है, सिक्योर अटैचमेंट स्टाइल। ये अटैचमेंट स्टाइल वो है जो लोग अपने रिलेशनशिप में ढूंढते हैं. सिक्योर लोग नैचुरली लविंग और वॉर्म होते हैं. वो अपने पार्टनर के साथ इंटिमेट होना एंजॉय करते हैं. वो अपने रिश्ते के बारे में बहुत ज़्यादा चिंता नहीं करते हैं।
अगर आप सिक्योर हैं तो किसी भी बहस को शांति से हैंडल कर सकते हैं. आप ईज़ीली अपसेट नहीं होते हैं और अपने थॉट्स और फीलिंग्स को इफेक्टिव तरीके से कम्यूनिकेट भी कर पाते हैं. आप अपने पार्टनर का बिहेवियर और सिग्नल पढ़ सकते हैं. इससे आपके लिए उनके साथ कम्यूनिकेट करना और respond करना आसान हो जाता है।
थर्ड टाइप है, avoidant अटैचमेंट स्टाइल। अगर आप avoidant हैं तो आपकी आज़ादी और self-sufficiency यानी आत्म-निर्भरता आपकी प्रायोरिटी होती है। आप अकेले काम करना पसंद करते हैं चाहे आप किसी रिलेशनशिप में ही क्यों ना हों।
जहां एक ओर आप रिलेशनशिप बनाना चाहते हैं, वहीँ बहुत ज़्यादा इंटिमसी से आपको uncomfortable फील होता है, जिसके कारण कईं बार इंसान अपने पार्टनर से दूरी बनाने लगता है। आपके लिए दूसरों के सामने खुलना और अपनी कमजोरियों को दिखाना आसान नहीं होता है।
अटैचमेंट स्टाइल आपके बचपन से ही develop हो जाता है। अटैचमेंट थ्योरी को स्ट्रेंज सिचुएशन एक्सपेरिमेंट में बच्चों को स्टडी करके बनाया गया है।
जिन बच्चों का अटैचमेंट स्टाइल anxious होता है, वो अपनी माँ के आसपास ना होने पर स्ट्रेस फ़ील करने लगते हैं. जैसे कि माँ अगर रूम से चली जाए तो बच्चा रोना शुरू कर देता है और जब वो वापस रूम में आती है तो चुप हो जाता है।
यानी बच्चा खुश तो होता है पर गुस्सा भी हो जाता है। बच्चे को शांत होने में ज़्यादा टाइम भी लग सकता है। बाद में वो फ़िर से गुस्सा हो जाता है। बच्चे को अपनी माँ के साथ अपना टेम्पररी रूप से दूर होना याद आ जाता है।
सिक्योर अटैचमेंट स्टाइल वाले बच्चे भी अपनी माँ के ना होने पर स्ट्रेस में आ जाते हैं, लेकिन जब वो फिर से अपनी माँ को देखते हैं तो खुश हो जाते हैं. अपनी माँ को पास देखकर बच्चे को सुकून और सिक्योरिटी का एहसास होता है। बच्चा कॉन्फिडेंट फ़ील करने लगता है और वापस खिलौनों के साथ खेलने लग जाता है.
avoidant टाइप के बच्चे अपनी माँ के रूम से जाने पर रिएकट नहीं करते हैं और वो जो कर रहे होते हैं उसे करने में लगे रहते हैं। जब उसकी माँ वापस लौटती है तब भी उसका कोई रिएक्शन नहीं होता है। वो अपनी माँ को इग्नोर कर सकते हैं या जो कर रहे होते हैं उसमें लगे रहते हैं.
लेकिन रिसर्च में ये पाया गया कि avoidant बच्चे भी ईमोशनल response देते हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो, बच्चे का हार्ट रेट बढ़ जाता है। ये उतना ही हाई हो सकता है जितना anxious या सिक्योर बच्चे का होता है जब उनकी माँ रूम से चली जाती है। इनमें फ़र्क बस इतना है कि avoidant बच्चे अपना रिएक्शन नहीं दिखाते हैं।
Cracking the Code – What Is My Partner’s Attachment Style?
अपने पार्टनर का अटैचमेंट स्टाइल पहचानना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। किसी नए इंसान को डेट करने में टाइम लगता है, इसलिए उनका अटैचमेंट स्टाइल हमेशा तुरंत समझ नहीं आता। ऐसे में अपने पार्टनर के बिहेवियर को ऑब्जर्व करना और उनकी बातें सुनना बहुत मददगार होता है।
जब आप डेट करते हैं तो शायद आप एक ख़ास तरीके से सोचने के आदी हो जाते हैं. आपको शायद ये सोचने की आदत हो सकती है कि आपका डेट आपको लाइक करता है या नहीं। लेकिन अटैचमेंट थ्योरी के साथ आप अलग तरह से सोचना शुरू कर देते हैं. आप ये तय करने की कोशिश करते हैं कि आपका पार्टनर आपकी ज़रूरतें पूरी कर भी पाएगा या नहीं।
एक हेल्दी और फुलफिलिंग रिलेशनशिप ढूँढने के लिए ये अप्रोच ज़्यादा बेहतर है। हाँ, आपके कुछ bias हो सकते हैं. जब आप किसी के प्रति अट्रैक्ट होते हैं तो कईं बार आपकी एक्साईटमेंट इतनी ज़्यादा होती है कि आप सच्चाई को देख नहीं पाते। यही कारण है कि सामने वाले को ऑब्जर्व करना बेहद ज़रूरी है। अपना दिमाग एकदम क्लियर रखें। ये ध्यान रहे कि आप उस बिहेवियर को अनदेखा ना करें जो रेड फ्लैग हो सकते हैं.
अपने पार्टनर के अटैचमेंट स्टाइल को समझना आपको एक-दूसरे को समझने में हेल्प करेगा। साथ ही आप ये भी समझ पाएंगे कि साथ मिलकर कैसे प्रॉब्लम को सुलझाया जाए. यही चीज़ आपके बीच इंटिमसी भी बढ़ाएगी।
अटैचमेंट स्टाइल को पहचानने के लिए यहाँ 5 फ़ाईव गोल्डन रूल्स बताए गए हैं -
सबसे पहले, तो ये जानें कि आपका पार्टनर इंटिमसी और क्लोजनेस चाहता है या नहीं। ये बात सबसे ज़्यादा ध्यान देने लायक है। अगर आपका पार्टनर इंटिमसी नहीं चाहता है तो शायद वो एक avoidant अटैचमेंट स्टाइल वाला इंसान है।
अगर आपका पार्टनर इंटिमसी चाहता है तो वो anxious या सिक्योर स्टाइल वाला हो सकता है। इस चीज़ को लंबे टाइम तक ऑब्जर्व कीजिए। इसे कुछ खास मोमेंट्स तक सीमित मत रखिए। चेक कीजिए कि क्या उसका बिहेवियर हमेशा ऐसा ही होता है या अलग होता है।
साथ ही ये याद रखना भी ज़रूरी है कि पर्सनेलिटी traits और अटैचमेंट स्टाइल आपस में जुड़े हुए नहीं हैं। आपके पार्टनर की पर्सनेलिटी चाहे जैसी भी हो, तो भी उसका अटैचमेंट स्टाइल avoidant हो सकता है।
जैसे कि हो सकता है कि आपका पार्टनर extrovert हो और बाहर आना-जाना पसंद करता हो लेकिन फिर भी वो आपके साथ इंटिमेट होना पसंद नहीं करता है। ये एक साईन हो सकता है कि शायद वो avoidant अटैचमेंट टाइप का इंसान हो।
जैसे कि मान लीजिए कि आपकी पार्टनर तलाकशुदा है जिसके बच्चे भी हैं. हो सकता है कि वो आपको अपने बच्चों से मिलवाना नहीं चाहती है. उसे चिंता है कि कहीं वो अपने बच्चों को आपसे कुछ ज़्यादा ही जल्दी तो नहीं मिलवा रही है। उसका कहना है कि इससे उसके बच्चे कन्फ्यूज़ हो सकते हैं। बच्चों को एडजस्ट करने के लिए थोड़ा टाइम चाहिए होता है।
उसके इस डिसिजन के पीछे कुछ जायज़ कारण हो सकते हैं. ये भी हो सकता है कि वो avoidant टाइप की लड़की हो। वो शायद अपनी लाइफ का वो हिस्सा शेयर करने से डर रही हो। वो शायद नहीं चाहती कि आप और ज़्यादा पर्सनल लेवल पर उसकी लाइफ में involve हों। अब ये आपके ऊपर है कि आप इस केस में किस नतीजे पर पहुंचते हैं कि वो क्यों ऐसा कर रही है।
मान लीजिए कि आपको डेट करते हुए साल भर से ज़्यादा हो गया है तो भी वो अपने बच्चों को आपसे मिलवाना नहीं चाहती है। हो सकता है कि उसका ये बिहेवियर उसके बाकि रिश्तों पर भी अप्लाई होता हो। हो सकता है कि वो आपको अपनी family और फ्रेंड्स से भी मिलवाना ना चाहे। ये avoidance का साईन हो सकता है। इस रिश्ते को हर पहलू से देखना बहुत इम्पोर्टेन्ट है।
सेकंड, ऑब्जर्व कीजिए कि आपका पार्टनर आपके रिश्ते की कितनी परवाह करता है। ऑब्जर्व कीजिए कि रिजेक्शन को लेकर उनका रिएक्शन कैसा होता है। क्या आप जो कहते हैं उसे लेकर आपका पार्टनर सेंसिटिव है या नहीं? कहीं वो ओवररिएकट तो नहीं करता है? क्या वो अक्सर आप दोनों के फ़्यूचर को लेकर या वफ़ादारी को लेकर चिंता करता है?
अगर आपके पार्टनर को आपको स्पेस और आज़ादी देने में मुश्किल हो रही है तो वो शायद anxious टाइप का है. अब example के लिए मान लीजिए कि आप अपने फ्रेंड्स के साथ girls नाईट आउट का प्लान बना रही हैं पर आपके बॉयफ्रेंड को ये बात अच्छी नहीं लगती और वो नाराज़ हो जाता है।
उसे लगता है कि शायद आप अब उसके साथ और टाइम स्पेन्ड नहीं करना चाहती हैं और ये चीज़ उसे तकलीफ देती है। यानी अगर आप उसके बिना कुछ करना चाहती हैं तो उसे इनसिक्योर फ़ील होता है। ये एक साईन हो सकता है किउसका अटैचमेंट स्टाइल anxious टाइप हो।
थर्ड, अलग-अलग तरह के sign या फैक्टर पर ध्यान दीजिए। दूसरे शब्दों में कहें तो, अपने रिलेशनशिप के हर पहलू पर गौर कीजिए। इंसान की फितरत बहुत कॉम्प्लेक्स होती है। आपको अपने पार्टनर के बिहेवियर और attitude दोनों पर ध्यान देना होगा। किसी भी एक personality trait या एक्शन से किसी का अटैचमेंट स्टाइल decide नहीं किया जा सकता है।
जैसे मान लीजिए कि आपकी पार्टनर नहीं चाहती है कि अभी आप उसके बच्चों से मिलें, लेकिन वो आपके साथ इंटिमेट होना चाहती है। जब आप इस बारे में अपनी फीलिंग्स और थॉट्स को एक्सप्रेस करते हैं तो वो अच्छे से respond करती है। ये दूसरे एक्शन अच्छे साईन हैं. इस केस में, वो avoidant टाइप की नहीं है। शायद वो आपको समझने के लिए थोड़ा और टाइम चाहती है।
फ़ोर्थ, देखिए कि ईफेक्टिव कम्युनिकेशन के प्रति आपके पार्टनर का रिएक्शन कैसा है। किसी भी रिश्ते को निभाने के लिए कम्युनिकेशन एक अहम रोल निभाता है। आपको अपने थॉट्स, फीलिंग्स और जरूरतों को अपने पार्टनर के सामने एक्सप्रेस करने से डरना नहीं चाहिए। आपका पार्टनर आपकी जरूरतों के प्रति कैसे respond करता है, इससे आपको उसके बारे में बहुत कुछ पता चल सकता है।
एक सिक्योर पार्टनर आपकी ज़रूरतों को सुनेगा, उसे समझेगा और उन्हें पूरा करने की पूरी कोशिश भी करेगा। मान लीजिए कि आप उससे कहते हैं कि वो आपको डेली कॉल करके आपका हालचाल पूछेगा तो आपको बहुत अच्छा लगेगा। अब आपका पार्टनर पूरी कोशिश करेगा कि वो डेली ऑफिस time ख़त्म होने पर आपको कॉल करे। इससे ये पक्का हो जाएगा कि आपकी कम्यूनिकेट करने की ज़रुरत पूरी हो सके।
एक anxious पार्टनर भी आपकी ज़रूरतें पूरी करने की कोशिश करेगा। इसके लिए वो कोई दूसरा तरीका भी अपनाने को तैयार हो जाएगा। anxious अटैचमेंट टाइप के लोग हमेशा इंटिमसी बढ़ाने की कोशिश करते हैं.
जबकि अगर आपका पार्टनर avoidant टाइप का है तो उसे इंटिमसी बढ़ाने की आपकी इच्छा पूरी करना अच्छा नहीं लगेगा। इससे बचने के लिए वो तरह-तरह के बहाने बनाएगा। जैसे वो कहेगा कि आप ज़्यादा डिमांडिंग हो रहे हैं या फिर हो सकता है कि वो कुछ समय के लिए आपकी ज़रूरत को पूरी कर दे, लेकिन फिर उसकी दूर रहने की वही पुरानी आदत लौट आएगी। अगर आप बोलेंगे कि आपकी ज़रूरत पूरी नहीं हो रही तो वो नेगेटिवली रिएकट करेगा। बेशक वो सॉरी भी बोल देंगे पर वो सॉरी दिल से नहीं निकलेगी।
अटैचमेंट स्टाइल चेक करने का लास्ट गोल्डन रूल है, सुनना और नॉनवर्बल बिहेवियर को देखना। नॉनवर्बल एक्शन भी कम्युनिकेशन का एक तरीका है। जैसे मान लीजिए कि आप अपनी गर्लफ्रेंड के साथ न्यू ईयर सेलिब्रेट कर रहे हैं.। आप उसे कहते हैं कि आपको उसके साथ हॉलिडे बिताने में कितनी खुशी हो रही है। आप उसके साथ अपना फ्यूचर देख रहे हैं। लेकिन वो बदले में कुछ कहती नहीं हैं बस आपको आपको किस करती है। ये एक रेड फ्लैग हो सकता है, जो आपको ध्यान में रखना होगा। हो सकता है कि उसका अटैचमेंट स्टाइल avoidant टाइप हो।
Effective Communication: Getting the Message Across
किसी रिलेशनशिप को सक्सेसफुल बनाने के लिए अपनी ज़रूरतों, थॉट्स और फीलिंग्स को एक्सप्रेस करना बेहद ज़रूरी है। आपकी ईमानदारी आपको और आपके पार्टनर को ज़्यादा सही डिसिशन लेने में हेल्प करेगी। आप एक-दूसरे की ज़रूरतों को पूरा कर सकते हैं. इससे आपका रिलेशनशिप और भी मज़बूत और गहरा होता है। आप एक-दूसरे के और करीब आ जाते हैं और साथ में ज़्यादा खुश रह सकते हैं.
आपकी ज़रूरतें आपके अटैचमेंट स्टाइल को भी decide करती हैं. जैसे example के लिए, anxious टाइप के लोगों को इंटिमसी की बहुत ज़रुरत होती है। वो बार-बार ये भरोसा चाहते हैं कि उनका पार्टनर उन्हें प्यार करता है और उनके प्रति कमिटेड है।
एक-दूसरे के अटैचमेंट की ज़रूरतों को एक्सप्रेस करना और उन्हें पूरा करना, आपको उन छोटी-मोटी लड़ाईयों से बचा सकता है जो कपल्स के बीच अक्सर हो जाती हैं। इससे आप अपने पार्टनर के साथ ज़्यादा डिफेन्सिव होने से भी बच सकते हैं.
ईफेक्टिव कम्युनिकेशन से दो चीज़ें होती हैं -
सबसे पहले, तो ये आपको सही पार्टनर चुनने में मदद करता है। अपनी ज़रूरतों को एक्सप्रेस करके आप डिसाइड कर पाएंगे कि क्या आपका पार्टनर उन ज़रूरतों को पूरा कर सकता है या नहीं। इसके लिए आपको जो जवाब मिलता है उस पर खासतौर पर ध्यान दें।
जैसे मान लीजिए कि आपका पार्टनर आपकी ज़रूरतों को समझता है। वो खुद से पहले आपकी भलाई का ख्याल रखता है। ये अच्छा साईन है। यानि इस रिश्ते के आगे बढ़ने की गुंजाईश है। दूसरी तरफ, अगर आपको लगे कि आपका पार्टनर समझौता करने से या आपकी ज़रूरते पूरी करने से इंकार कर रहा है तो ये एक रेड फ्लैग है।
अगर आपका पार्टनर ये जताता है कि आप सेल्फिश हैं क्योंकि आप अपनी ज़रूरतों को एक्सप्रेस कर रहे हैं, तो समझ जाइए कि आपकी आपस में नहीं बनने वाली। ये मुमकिन है कि ये इंसान आपकी भलाई के बारे में नहीं सोचता है। ये उस टाइप का पार्टनर नहीं है जिसकी आपको तलाश है।
सेकंड, ईफेक्टिव कम्युनिकेशन इसलिए भी ज़रूरी है ताकि किसी रिलेशनशिप में आपकी ज़रूरते पूरी हो सकें। आसान शब्दों में कहें तो अपनी ज़रूरतें एक्सप्रेस करके आप अपने पार्टनर का काम आसान कर देते हैं क्योंकि फिर उन्हें समझने में परेशानी नहीं होती है कि आप क्या चाहते हैं या आपकी क्या ज़रूरते हैं.
थर्ड, ईफेक्टिव कम्युनिकेशन आपके पार्टनर के लिए एक रोल मॉडल देता है। जब आप ओपन और ईमानदार होते हैं तो आपका पार्टनर भी सेम वही करने के लिए इंस्पायर होता है। आप दोनों मिलकर एक-दूसरे का ख्याल रखने की जिम्मेदारी ले सकते हैं।
तो आप इस टूल को कैसे अप्लाई करेंगे? ईफेक्टिव कम्युनिकेशन के लिए यहाँ 5 प्रिंसिपल बताए गए हैं -
सबसे पहले, अपने दिल की बात खुलकर कहना सीखें। यानि दूसरे शब्दों में, अपने रिश्ते में पूरी ईमानदारी बरतें। ये आपको थोड़ा मुश्किल और डरावना लग सकता है, लेकिन vulnerable यानी कमज़ोर होने के बारे में बहादुर बनने की कोशिश करें.
सेकंड, अपनी ज़रूरतों पर फोकस करें। अपनी ज़रूरतों को एक्सप्रेस करना सेल्फिश होना नहीं होता है, लेकिन जब आप ऐसा करें तो अपने पार्टनर की भलाई का भी उतना ही ध्यान रखें। आपका पार्टनर और आप equal हैं, कोई एक दूसरे से बड़ा या छोटा नहीं है।
अपनी ज़रूरतें पूरी करने के लिए दूसरों को हर्ट ना करें। आपको एक साथ मिलकर काम करना होगा। अपनी ज़रूरतों को एक्सप्रेस करने के कुछ अच्छे तरीके हैं inclusive टर्म्स को यूज करना।
जैसे example के लिए, बात करते वक्त ज़रुरत, महसूस और चाहत (need, feel and want) जैसे verbs यूज करें। जैसे मान लीजिए कि आपका अटैचमेंट स्टाइल anxious टाइप है। आप और आपका पार्टनर जब औरों के साथ होते हैं तो आप सिक्योर फ़ील करना चाहते हैं। इसे एक्सप्रेस करने के लिए आप कह सकते हैं: “मुझे इस रिलेशनशिप में कॉन्फिडेंट फ़ील करना है। जब तुम उस लड़की से फ्लर्ट कर रहे थे तो मुझे ऐसा लगा जैसे तुम मुझे लेकर सीरियस नहीं हो.”
थर्ड, स्पेशिफ़िक बनें। आपको क्लियरली समझना होगा कि क्या चीज़ आपको परेशान कर रही है। अपने पार्टनर से ये उम्मीद ना करें कि वो आपकी परेशानी खुद समझ जाएंगे। अगर आप चाहते हैं कि आपका पार्टनर हर रोज़ आपसे कम्यूनिकेट करे तो उन्हें ये बात बताएं।
फ़ोर्थ, दूसरे को दोष ना दें। अपने पार्टनर को मतलबी या निकम्मा महसूस ना कराएँ। आप दोनों के बीच कम्युनिकेशन ऐसा नहीं होना चाहिए कि सामने वाले को बुरा लगे। आपको उनकी कमियाँ नहीं गिनानी हैं. उनसे बहस नहीं करना है बल्कि डिस्कस करना है।
और लास्ट में, अपनी बात को मज़बूती से या ज़ोर देकर कहें और किसी भी तरह शर्मिंदा फील ना करें। याद रखें कि किसी रिलेशनशिप में आपकी ज़रूरतें बिल्कुल valid या जायज़ हैं, चाहे कुछ भी हो ये सच हमेशा रहेगा। अपनी ज़रूरतों को एक्सप्रेस करने से ना डरें। आपकी ख़ुशी के लिए आपकी ज़रूरतों का पूरा होना ज़रूरी है।
ईफेक्टिव कम्युनिकेशन इस बात की गारंटी नहीं देता है कि आपकी अपने पार्टनर से कभी लड़ाई नहीं होगी। इसका मतलब ये भी नहीं है कि आपकी सारी प्रॉब्लम सॉल्व हो जाएगी क्योंकि आपका पार्टनर कैसे respond करता है ये भी बहुत इम्पोर्टेन्ट है। ये तय करेगा कि आप दोनों उस रिश्ते को निभा पाएँगे या नहीं।
Conclusion
इस समरी में, आपने अटैचमेंट थ्योरी और तीन तरह के अटैचमेंट स्टाइल के बारे में जाना।
सबसे पहले, आपने समझा कि अटैचमेंट थ्योरी कैसे काम करती है। अटैचमेंट थ्योरी बचपन में ही डेवलप हो जाती है। बच्चों की तरह सिक्योर फ़ील करने की हमारी एबिलिटी बड़े होकर हमें अपने romantic पार्टनर के साथ इंटिमेट होने की हमारी एबिलिटी पर असर डालती है।
सेकंड, आपने तीन तरह के अटैचमेंट स्टाइल के बारे में जाना, जो हैं - anxious, सिक्योर और avoidant।
आपने ये भी जाना कि अपने और अपने पार्टनर के अटैचमेंट स्टाइल को कैसे पहचानें। अलग-अलग अटैचमेंट स्टाइल का मतलब है कि लोगों की अलग-अलग ज़रूरतें होती हैं. किसी रिलेशनशिप का कामयाब होना इस बात पर डिपेंड करता है कि पार्टनर्स एक-दूसरे की ज़रूरतों को पूरा कर सकते हैं या नहीं।
और लास्ट में आपने जाना कि इफेक्टिव कम्युनिकेशन आपके रिलेशनशिप के लिए एक टूल की तरह होता है। अपनी ज़रूरतों को एक्सप्रेस करना ज़रूरी है ताकि आपका पार्टनर उन्हें पूरा कर सके। क्या आपका पार्टनर इन ज़रूरतों को पूरा कर सकता है, यह इस बात का इशारा होगा कि वो रिश्ता टिकेगा या नहीं रिश्ते में संभावना है या नहीं।
आपको अपनी ज़रूरतों के बारे में बताने से शर्माना नहीं चाहिए। अल्टीमेटली, आपकी ज़रूरतें आपकी ख़ुशी के लिए ज़रूरी हैं.
किसी भी रिलेशनशिप को सक्सेसफुल बनाने के लिए एक दूसरे के अटैचमेंट स्टाइल को समझना और इफेक्टिव कम्युनिकेशन यूज करना आपके बेस्ट टूल्स हैं. प्रैक्टिस और पेशेंस के साथ आप अपने लिए सही पार्टनर ढूंढने में ज़रूर कामयाब रहेंगे। अगर आप किसी रिलेशनशिप में हैं तो इन टूल्स के साथ इफेक्टिव तरीके से अपनी प्रॉब्लम सॉल्व कर सकते हैं और एक दूसरे से इंटिमसी बना सकते हैं.
रिलेशनशिप का मतलब है एक-दूसरे की ज़रूरतें पूरी करना। इसके लिए त्याग और समर्पण की ज़रूरत होती है। ये करना आसान तो नहीं होगा लेकिन अपने रिश्ते को निभाने के लिए ऐसा करना नामुमकिन भी नहीं है. एक-दूसरे के अटैचमेंट स्टाइल को समझकर आप ना सिर्फ़ एक बेहतर पार्टनर साबित होंगे बल्कि एक बेहतर इंसान भी बनेंगे।