HOW LIFE IMITATES CHESS
Garry Kasparov
इंट्रोडक्शन
गैरी कैस्परोव मार्च 2005 में चेस से रिटायर हुए। वो उस वक्त के नंबर वन चेस प्लेयर थे, लेकिन कैस्परोव बिजनेस, पॉलिटिक्स और कम्प्यूटिंग की फील्ड में नए मौकों की तलाश में थे।
कईं लोगों को लगा कि वो इन नए प्रोजेक्ट्स में शायद फेल हो जाएंगे। कैस्परोव एक प्रोफ़ेशनल चेस प्लेयर रह चुके थे और पूरी ज़िंदगी उन्होंने इसके सिवा और कुछ नहीं किया था।
लेकिन हिस्ट्री हमें दिखाती कि ये प्रेडिक्शन गलत निकले थे। कैस्परोव मानते हैं कि चेस ने उन्हें जो कुछ सिखाया था वो असली ज़िंदगी में भी काम आ रहा था। चेस ने उन्हें सिखाया कि प्रेशर में भी स्कसेसफुल डिसिशन लिए जा सकते हैं।
इस समरी में, आप वो की-लेसंस जानेंगे जो कैस्परोव ने चेस के गेम से सीखे हैं। आप डिसिशन लेने की अपनी कमजोरियों को पहचानकार उन्हें दूर करना सीखेंगे।
आप ये भी जानेंगे कि स्ट्रेटेजी , कॉम्पटीशन और सेल्फ-इम्प्रूवमेंट को लेकर कैस्परोव का क्या नज़रिया है।
चेस के गेम से एकदम अलग रियल लाइफ में कोई रूल्स नहीं होते। जीतने और हारने की शर्तें पहले से तय नहीं की जा सकती, लेकिन चेस और रियल लाइफ दोनों में ही हमें सही डिसिशन लेने की ज़रुरत होती है. चाहे वो बिजनेस हो या पॉलिटिक्स, जीत और हार के बीच सिर्फ़ आपके लिए गए डिसिशन से फ़र्क पड़ता है।
ये समरी आपको ऐसे स्किल्स सिखाएगी कि आप राईट टाइम पर राईट डिसिशन ले पाएंगे। इस नॉलेज को यूज़ करके आप अपना स्टेट्स, करियर और ख़ुशी सब कुछ इम्प्रूव कर सकते हैं।
The Lesson
गैरी कैस्परोव ने पहली बार 1984 में वर्ल्ड चेस चैंपियनशिप में मुकाबला किया था। उस वक्त वो सिर्फ़ 21 साल के एक उभरते हुए टैलेंटेड चेस प्लेयर थे। उनका मुकाबला एनाटोली कार्पोव से था जो एक चेस लेजेंड माने जाते थे और दस सालों से वर्ल्ड चैंपियन बने हुए थे।
प्लेयर्स को तब तक खेलना था जब तक कोई एक 6 बार ना जीत जाए। कैस्परोव ने गेम की शुरुआत पूरे जोश और कॉन्फिडेंस के साथ की थी, लेकिन जल्द ही उन्हें बुरी मात का सामना करना पड़ा। कार्पोव ने पहले 9 मैच में से 4 जीत लिए थे।
कैस्परोव को तब एहसास हुआ कि अब उन्हें अपनी अप्रोच चेंज कर लेनी चाहिए। उन्होंने थोड़ा और डिफ़ेंसिव मोड में आकर खेलना स्टार्ट किया, इस् उम्मीद में कि शायद कार्पोव से कोई गलती हो जाए। कैस्परोव अगले 17 मैच तक गेम में टिके रहे। इस् दौरान उन्होंने अपने माइंड और अपने प्लेइंग स्टाइल पर बारिकी से ध्यान दिया।
अपने करियर के उस पॉइंट तक कैस्परोव ने कभी भी खुद को समझने के बारे में नहीं सोचा था। अपने टैलेंट के बूते पर वो हमेशा जीतते रहे थे, लेकिन कार्पोव को हराना उनके लिए एक बहुत बड़ा चैलेंज साबित हुआ। इस मुकाबले ने कैस्परोव को अपनी डिसिशन मेकिंग एबिलिटी को एक्जामिन करने पर मज़बूर कर दिया।
कईं सौ घंटों के खेल के बाद कैस्परोव ने धीरे-धीरे इम्प्रूव करना शुरू किया। हालांकि वो तेज़ी से नहीं सीख रहे थे। कार्पोव ने गेम 27 जीतकर चैंपियनशिप मैच को 5-0 तक पहुंचा दिया था। एक और हार, और कैस्परोव को अगले चांस के लिए तीन साल इंतज़ार करना पड़ता।
लेकिन कैस्परोव ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने 4 और मैच तक गेम को खींच लिया और फ़ाईनली गेम 32 में जीत गए। इस पॉइंट पर आकर मैच तीन महीनों तक चलता रहा। कार्पोव अब थकने लगे थे। पाँच और हफ्तों तक गेम चलता रहा और फिर कैस्परोव ने एक के बाद एक दो गेम जीत लिए - गेम 47 और गेम 48।
इस् पॉइंट पर आकर प्लेयर्स की हेल्थ का ध्यान रखते हुए मैच को कैंसल कर दिया गया। कैस्परोव खुश नहीं थे पर इस गेम में उन्होंने चैंपियनशिप से बढ़कर एक वैल्यूएबल चीज़ सीखी थी। इस मैच ने उन्हें डिसिशन मेकिंग के बारे में बहुत काम का सबक सिखाया था।
कार्पोव जानते थे कैस्परोव एग्रीसिव तरीके से खेलेंगे। वो अटैक के लिए पहले से अपना मूव या response तैयार कर सकते थे। कार्पोव एक अनुभवी खिलाड़ी थे इसलिए वो कैस्परोव के स्टाइल का पूरा फायदा उठा पाए। वो कैस्परोव के स्टाइल को ख़ुद कैस्परोव से बेहतर समझ गए थे।
सेल्फ-अवेयर हुए बिना आप स्क्सेसफुल नहीं हो सकते। डिसिशन लेने के लिए आप जो मेथड यूज़ करोगे, आपको पहले उन्हें एनालाईज़ करना होगा तभी आप अपनी कमियों को ढूंढ पाओगे। इस एहसास के बिना आप अपनी पीक एबिलिटी तक कभी नहीं पहुँच सकते और आपका टैलेंट, ट्रेनिंग और हार्ड वर्क सब बर्बाद हो जाएगा।
Strategy
चेस का गेम हो या लाइफ, हम अपने फायदे के लिए टैक्टिस यानी तरकीब और स्ट्रेटेजी यूज़ करते हैं। स्ट्रेटेजी लॉंग टर्म गोल्स पर बेस्ड होती है और इसे डिफाइन करना मुश्किल है। टैक्टिक्स शॉर्ट टर्म होते हैं जो हम किसी मोमेंट पर बेस्ट solution ढूँढने के तौर पर यूज़ करते हैं।
किसी भी फील्ड में स्कसेस पाने के लिए अच्छे टैक्टिक्स और इंटेलीजेन्ट स्ट्रेटेजी का होना ज़रूरी है। सन त्जू (Sun Tzu) ने एक बार लिखा था “बिना टैक्टिक्स के कोई स्ट्रेटेजी फॉलो करना जीतने का सबसे स्लो तरीका है. ” हालांकि एक प्रॉपर प्लान के बिना अच्छी टैक्टिक भी हार की तरफ ले जा सकती है।
अब ज़रा इस example को ही देख लीजिए: गैरी कैस्परोव ने 2001 कोरस चेस टूर्नामेंट में पार्टीसिपेट किया था। सेकंड राउंड में उनका मुकाबला बेलारुसियन ग्रैंडमास्टर एलेक्सी फेडोरोव (Alexei Fedorov) से हुआ. फेडोरोव ने बेबाक अंदाज़ में कैस्परोव के किंग पर अटैक करते हुए गेम की शुरुवात की।
लेकिन कैस्परोव को एहसास हुआ कि फेडोरोव ने अपने पीस को डेवलप करने के बारे में बिल्कुल भी नहीं सोचा था। उनके माइंड में कोई क्लियर प्लान नहीं था। फेडोरोव के जीतने का सिर्फ़ एक ही तरीका था और वो ये कि कैस्परोव घबराकर कोई गलती कर बैठे इसलिए वो सिर्फ़ 25 मूव में ये गेम हार गए।
फेडोरोव स्ट्रॉंग टैक्टिक्स वाले एक टैलेंटेड प्लेयर थे। उनकी हर चाल सोची-समझी होती थी, लेकिन जीत के लिए उनके माइंड में कोई क्लियर स्ट्रेटेजी नहीं थी। इस गेम से हमें ये लेसन मिलता है कि लॉंग टर्म प्लान का ना होना आपके लिए खतरनाक हो सकता है। इससे आप अपने गोल्स अचीव करने के लिए बिना किसी क्लियर रास्ते के हर नई डेवलपमेंट पर रिएक्ट करेंगे।
जबकि एक क्लियर स्ट्रेटेजी आपको मुश्किल से मुश्किल चैलेंज का सामना करने में मदद करेगी। अब जैसे हम यहाँ 1992 के presidential कैंपेन के दौरान बिल क्लिंटन का example लेते हैं। इस पीरियड में उन्हें बहुत से पॉलिटिकल स्कैन्डल का सामना करना पड़ा था। ऐसे हालात में कोई और कैंडीडेट होता तो शायद हार मानकर बैठ जाता।
क्लिंटन अपनी टीम की स्ट्रेटेजी की वजह से सबसे अलग थे। वो खुद पर लगे हर ईल्ज़ाम के जवाब में अपना कोर कैंपेन मैसेज बोला करते थे। उनके सारे स्कैन्डल उन्हें प्रमोट करने के लिए अपोर्च्यूनिटी की तरह उनके काम आए। उनका “It’s the economy, stupid” टैगलाइन आज भी अमेरिकन पॉलिटिक्स में यूज़ किया जाता है।
तो आप टैक्टिक्स को स्ट्रेटेजी के साथ इफेक्टिवली कैसे जोड़ सकते हैं? टॉप चेस ग्रैन्डमास्टर्स अपने माइंड में पहले ही visualize कर लेते हैं कि 20 मूव में वो चेस बोर्ड पर कैसी पोजीशन देखना चाहते हैं। ये टारगेट कैलकुलेशन पर बेस्ट नहीं होता है बल्कि ये एक “स्ट्रेटेजी” है.
बस इस पॉइंट के बाद से प्लेयर अपने गोल्स की तरफ बढ़ने लग जाता है। हर मूव टैक्टिक्स के बेस पर डिसाइड कर लिया जाता है लेकिन उनका पर्पज़ होता है स्ट्रेटेजी पर खरे उतरना।
अच्छे strategist उनके “क्यों” पूछने की हैबिट के लिए जाने जाते हैं। जैसे example के लिए, हर कोई एक पॉइंट पर आकर बैटर जॉब पाना चाहता है। अब आप नई जॉब ढूँढना शुरू कर देते हो लेकिन एक अच्छा strategist इस बात का पता लगता है कि वो अपना करियर क्यों चेंज करना चाहता है।
बहुत से लोग जॉब स्विच करते वक्त highest सैलरी वाली जॉब को चूज़ करना पसंद करते हैं, लेकिन अगर आप वर्कलोड और स्ट्रेस से बचने के लिए जॉब चेंज करना चाहते हो तो क्या होगा? खुद से “why यानी क्यों” पूछना आपके डिसिशन लेने में मदद करने के लिए एक गोल पैदा करता है। इस पॉइंट के बाद से आप आसानी से अपने लिए सही करियर ढूँढ सकते हो।
जबकि एक tactician (tactics यूज़ करने वाला) फ़ौरन नए ख़तरे और opportunity पर रिएक्ट करता है। कुछ केस में, आपको स्ट्रेटेजी को अनदेखा करते हुए अपने सामने आए हुए मौके का फाय्दाना उठाना चाहिए. विलियम बोईंग मास्टर tactician के ऐसे ही example हैं।
राईट ब्रदर्स ने 1900 के शुरुवाती दशक में ऐरोप्लेन बनाया था। हालांकि वो कमर्शियल एयर ट्रेवल डेवलप नहीं कर पाए थे। 1910 तक भी ये किसी ने नहीं सोचा था कि ऐरोप्लेन दुनिया के ट्रांसपोर्ट सेक्टर में एक रेवोल्यूशन ला सकता था।
लेकिन बोईंग ने ऐरोप्लेन के पॉटेंशियल को भाँप लिया था। उन्होंने ऐरोप्लेन टेक्नोलॉजी में इवनेस्ट करने के लिए एक स्ट्रेटेजी डेवलप की। बोईंग ने एक विंड टनल बनाई और टॉप इंजीनियर्स को अपने प्लेन पर काम करने के लिए हायर कर लिया। उन्हें अपना सबसे बड़ा ब्रेक 1917 में मिला जब अमेरिका वर्ल्ड वॉर 1 ज़्वाईन करने की तैयारी कर रहा था।
बोईंग ने एक ऐसा प्लेन बनाया था जिसे तुरंत खोलकर दोबारा जल्दी से असेम्बल किया जा सकता था। उन्होंने इसे तुरंत ही फ्लोरिडा की यूएस नेवी टेस्टिंग फैसिलिटी में भेज दिया। इस छोटी सी टैक्टिक से बोईंग को इतना सपोर्ट मिला जो उनके बिजनेस के लिए अगले कुछ सालों तक काम आया।
वर्ल्ड वॉर 1 के बाद सेल्स जब गिरने लगी तो बोईंग ख़ुद को उसके अनुसार ढालते रहे। उन्होंने अपनी टैक्टिक्स चेंज की और अपने ऐरोप्लेन की फैक्ट्री में बोट और फर्निचर बनाने लगे। फिर धीरे-धीरे 1920 के दशक में एयर ट्रेवल पॉपुलर होता गया। बोईंग के लिए ये सुनहरा मौका था फिर से एक बार ऐरोप्लेन मार्केट में अपनी पहचान बनाने का।
आपकी स्ट्रेटेजी कितनी इफेक्टिव रहेगी ये इस बात पर डिपेंड करता है कि आप उसे कितने अच्छे से एक्जीक्यूट करते हैं इसलिए आपको अपनी ताकत और कमजोरियों के हिसाब से अपना अप्रोच डेवलप करना होगा। ऐसी कोई स्ट्रेटेजी नहीं है जो सबके लिए बराबर इफेक्टिव साबित हो।
इसे और बेहतर ढंग से समझने के लिए हम दो फॉर्मर वर्ल्ड चेस चैंपियन का केस लेंगे। मिखाइल बोटविनिक (Mikhail Botvinnik ) ने चेस में बेहद लॉजीकल और साइंटीफ़िक अप्रोच अपनाया था। जबकि मिखाइल टैल एक क्रिएटिव जीनियस थे जो अपनी fantasy और इन्स्टिंक्ट के बेसिस पर खेलते थे।
टैल और बोटविनिक दोनों वर्ल्ड चैम्पियन बने। उनकी स्ट्रेटेजी ने उनकी एबिलिटी को अफेक्ट नहीं किया थ। दोनों valid अप्रोच के साथ चेस खेलते थे। ऐसा ही सेम ट्रेंड बिजनेस सेक्टर में देखा जा सकता है। फॉर्चून 500 कंपनियों में conservative सीईओ और रिस्क टेकिंग इनोवेटर्स होते हैं।
अब जैसे 1990 के आखिरी दशक में nokia और IBM का ही example ले लो। nokia अपनी यूनीक स्ट्रेटेजी के चलते टेलीकम्यूनिकेशन दिग्गज के तौर पर उभरकर आया था। इसके CEO जोर्मा ओलीला (Jorma Ollila,) अक्सर अलग-अलग डिपार्टमेंट के मैनेजर्स की पोजिशन को आपस में एक्सचेंज कर देते थे और nokia के इंजीनियर्स और रिसर्चर्स की कस्टमर्स से बात करवाते थे। उनकी ये radical स्ट्रेटेजी एक फास्ट-पेस्ड मोबाईल फोन मार्केट के माहौल के लिए एकदम परफेक्ट थी।
जबकि IBM ब्रैंड कन्सिस्टन्सी और रिलाएबिलिटी का दूसरा नाम माना जाता था. उनकी पहचान बहुत conservative कंपनी के तौर पर थी। लेकिन IBM के बिजनेस क्लाइंट्स उनसे बिल्कुल यही चीज़ चाहते थे। nokia का कॉम्पटीशन उन कंपनियों के साथ था जो हर महीने नए फोन रिलीज़ करते थे। IBM के क्लाइंट्स अक्सर अपने डिवाइस दस साल से भी ज़्यादा तक यूज़ करते थे।
आपकी स्ट्रेटेजी चाहे जो भी हो, आपको उसी पर चलना है। जो स्ट्रेटेजी बार-बार चेंज हो जाए, वो स्ट्रेटेजी नहीं हो सकती। आपको अपने लॉंग टर्म गोल्स तभी स्विच करने चाहिए जब कुछ गलत हो। आपको उन्हें तभी चेंज करना चाहिए जब आउटसाइड फैक्टर्स radically चेंज हो जाएँ।
MTQ: material , टाइम, quality (Material, Time, Quality)
चेस में हर डिसिशन material , टाइम और quality पर बेस्ड होता है। यहाँ तक कि बिगिनर्स भी इन कॉन्सेप्ट के बारे में जानते हैं। लेकिन ये आइडीयाज़ हम रियल लाइफ में भी अप्लाई कर सकते हैं। material का मतलब उन एसेट्स से है जो हमारे पास मौजूद हैं। टाइम का मतलब है कि आपको अपने गोल्स तक पहुँचने में कितना टाइम लगेगा। quality यानि वो वैल्यू जो आप अचीव करना चाहते हो।
material सबसे ईज़ी फैक्टर है जिसे ईवैल्यूएट किया जा सकता है। चेस में आपको सिर्फ़ अपने पीस गिनने होते हैं। आप ईज़िली देख सकते हो कि आपके पास अपने अपोनन्ट से ज़्यादा material है या नहीं। चेस में बिगिनर्स हमेशा material के पीछे भागते हैं। उनकी यही कोशिश रहती है कि सामने वाले के ज़्यादा से ज़्यादा पीस छीन लें।
लाइफ में आप material को कईं तरीकों से डिफाइन कर सकते हो। प्राचीन समय में, इंसान खाना-पानी और घर की तलाश में रहता था, लेकिन आज आप शायद बैंक बैलेंस के हिसाब से जज करोगे कि किसी के पास कितना material है।
बाकि के ऐसेट्स को ईवैल्यूएट करना थोड़ा मुश्किल है। इंसान ईमोशनल होते हैं, इसलिए हम कुछ खास चीज़ों से अटैच्ड हो जाते हैं। हम उन्हें उनकी एक्चुअल वैल्यू से ज़्यादा इंपोर्टेन्स देने लगते हैं।
जैसे-जैसे हम मैच्योर होते जाते हैं, हमें एहसास होता है कि लाइफ में material से ज़्यादा कईं और चीज़े भी इंपोर्टेंट हैं। ये चीज आप चेस के गेम में सीखते हैं जब material एडवांटेज होने के बाद भी आपको चेकमेट मिलता है।
ये हमें सेकंड फैक्टर पर ले जाता है जो है: टाइम। चेस में दो टाइप के टाइम होते हैं। एक है “क्लॉक टाइम” और दूसरा है “बोर्ड टाइम”।
क्लॉक टाइम वो टाइम होता है जब आपको अपनी चाल चलने का मौका मिलता है। अगर आप उस पीरियड के दौरान गेम कम्पलीट नहीं कर पाए तो आप हार जाते हैं।
बोर्ड टाइम का मतलब है कि अपने प्लान को पूरा करने के लिए आप कितने moves यानी चाल चलते हो। लाइफ में इसका मतलब हुआ कि आप किसी मकसद तक पहुँचने के लिए कितने स्टेप्स लेते हो।
किसी भी फील्ड में सक्सेस इस बात पर डिपेंड करती है कि आप इन दोनों टाइप के टाइम को अपने फायदे के लिए कैसे यूज़ करते हो। याद रखें कि short cut लेना या तेज़ी से आगे बढना, समय लेने का इकलौता ज़रिया नहीं हैं. आप टाइम के बदले में material भी एक्सचेंज कर सकते हो। इसका एक सिंपल example होगा जैसे आप क्विक डिलीवरी के लिए एक्स्ट्रा पे करने को भी तैयार हो जाते हो।
मिखाइल टैल, चेस में टाइम के बदले material एक्सचेंज करने में जीनियस माने जाते थे। वो अपने अटैक को फ़ास्ट बनाने के लिए खुशी-खुशी अपने पीस की कुर्बानी दे देते थे। लेकिन टैल हर गेम में ये स्ट्रेटेजी यूज़ नहीं करते थे। उन्हें समझ आ जाता था कि कब material टाइम से ज़्यादा इंपोर्टेंट है।
पोजीशन का नेचर एक तरीका है material और टाइम की वैल्यू को ईवैल्यूएट करने का। ओपन पोजिशन अक्सर अटैकिंग और काउन्टर अटैकिंग के लिए बहुत से मौके देता है। इन मामलों में, टाइम कीमती होता है क्योंकि एक अच्छा अटैक आपको गेम जिता सकता है। क्लोज़्ड पोजीशन में पीस फ्री होकर नहीं चल सकते हैं। इसमें स्पीड इतनी इम्पोर्टेन्ट नहीं है क्योंकि आप डायरेक्ट अटैक नहीं कर सकते।
इस टाइप का डिसिशन बिजनेस में भी लिया जा सकता है। मान लो कि आप एक टेक कंपनी चलाते हो और आपका कॉम्पटीटर एक नया प्रोडक्ट लॉन्च करने जा रहा है। तो क्या आप भी जल्दबाज़ी कर कोई प्रोडक्ट लॉन्च करके सबसे पहले मार्केट में कब्ज़ा करने की सोचोगे? या फिर उससे भी अच्छा प्रोडक्ट डेवलप करने तक थोड़ा वेट करोगे?
ऐसे कॉम्प्लेक्स सिचुएशन को ईवैल्यूएट करने के लिए आपको थर्ड फैक्टर को ध्यान में रखना होगा: जो है quality । अपने पीस और मूव्स को काउंट करके आप हाई लेवल के चेस टूर्नामेंट्स के गेम नहीं जीत सकते। हर चेस पीस को पॉइंट के तौर पर कुछ वैल्यू दी गई है, लेकिन उनकी रियल वैल्यू डिपेंड करती है उनकी पोजिशन पर और वो कितने square कंट्रोल कर पाते हैं।
अब जैसे example के लिए, चेस में bad बिशप का कॉन्सेप्ट है। बिशप एक पावरफुल पीस है जो चेस बोर्ड में diagonally चाहे जितनी भी स्टेप्स चल सकता है, लेकिन अगर कोई पॉन (प्यादा/मोहरा) उस diagonal को ब्लॉक कर दे तो बिशप की पावर कमज़ोर पड़ जाती है। इसे bad बिशप कहते हैं। यानी जब से गेम स्टार्ट हुआ है इस पीस में कोई चेंज नहीं आया है, लेकिन इसके एनवायरनमेंट की वजह से इसकी quality ड्रॉप हो गई है।
चेस में हम bad पीस को ट्रेड करके या उसे इम्प्रूव करके हैंडल कर सकते हैं। सेम लॉजिक बिजनेस में भी अप्लाई किया जा सकता है। अब जैसे जैक वेल्च का example ले लो, जो 1981 में जनरल इलेक्ट्रिक के CEO बने थे. उनका फर्स्ट स्टेप था GE के अंडर performing डिवीज़न की लिस्ट तैयार करना। ये लोग अपनी कंपनी के “bad बिशप” थे।
इसके बाद वेल्च ने इन सभी डिवीज़न के डायरेक्टर्स से contact किया कि अगर वो अपनी परफॉरमेंस को इम्प्रूव नहीं कर पाए तो या तो उन्हें बेच दिया जाएगा या बंद कर दिया जाएगा। इन डिवीजंस को GE के material के तौर पर समझा जा सकता है। वेल्च उनकी quality इम्प्रूव करने की कोशिश कर रहे थे या उन्हें ज़्यादा काम के डिवीज़न के बदले ट्रेड करने की कोशिश कर रहे थे।
material , टाइम और quality का कैलकुलेशन सिर्फ़ बिजनेस तक सीमित नहीं है बल्कि हम हमेशा इन्हें अनजाने में यूज़ करते हैं। जैसे मान लो कि आपको हायर एजुकेशन करनी है तो आप quality के बदले टाइम और material को सैक्रिफ़ाईस कर रहे हो।
material , टाइम और quality लाइफ से कैसे जुड़े हुए हैं इसे कुछ सेंटेंस में एक्सप्रेस किया जा सकता है -
material की वैल्यू तभी होगी जब इसका कोई यूज़ होगा।
टाइम तभी काम आएगा जब आप इसे अपने material को इम्प्रूव करने के लिए यूज़ कर सकें।
काम का material और अच्छे से ख़र्च किया गया टाइम ही आपको लाइफ या चेस में जिता सकता है।
विक्ट्री या जीत का मतलब है आपकी डेली एक्टिविटीज़ में ख़ुशी का होना। आप इसे पैसे से नहीं खरीद सकते, लेकिन अगर आप अपना टाइम और material दोनों अच्छे से यूज़ करेंगे तो अपनी लाइफ की quality को इम्प्रूव कर पाएँगे। और यही चीज़ आगे चलकर आपको ख़ुशी देगी।
The Attacker’s Advantage
एग्रेशन को लेकर सोसाइटी का attitude बड़ा ही अजीब सा है। जैसे कि एक CEO को उसकी एग्रेसिव सेल्स स्ट्रेटेजी के लिए सराहा जाता है, वहीं अगर कोई एवरेज़ employee ये ट्रेट दिखाए तो उसे पसंद नहीं किया जाता। उन्हें ज़्यादा अम्बिशियस ना बनने और ज़्यादा हाई गोल्स ना रखने की सलाह दी जाती है।
चेस के गेम में हमेशा एग्रेसिव प्लेयर्स को पसंद किया जाता है। उनकी अटैकिंग स्ट्रेटेजी की तारीफ होती है। सेम यही चीज़ दूसरे स्पोर्ट्स में भी लागू होती है। अब जैसे क्रिकेट को ही ले लो, ज़्यादा पॉपुलर बैट्समेन सारे एग्रेसिव प्लेयर्स ही हैं। जबकि पॉलिटिक्स में हम शांत और पेशन्स रखने वाले लोग चाहते हैं।
असल में देखा जाए तो एग्रेसिवनेस लाइफ के हर एरिया में चाहिए होती है। अपने एग्रेशन को लिमिट करना आपकी अचीवमेंट और ग्रोथ को भी लिमिट कर देता है। अगर आप एग्रेसिव नहीं होंगे तो आप खुद को और बाकि लोगों को चैलेंज करना छोड़ देंगे। एग्रेसन की कमी होने पर इंसान अक्सर आलसी हो जाता है।
लाइफ में एग्रेसन का मतलब ये नहीं है कि आप बेकार में दौड़-धूप करने लगें या लोगों से लड़ते फिरें। बल्कि इसका मतलब है एक्टिविटी, इनोवेशन, रिस्क, मोटिवेशन और हिम्मत का होना। चेस में इस कॉन्सेप्ट को “ इनिशिएटिव ” कहा जाता है। इनिशिएटिव लेने वाला यानी पहल करने वाला प्लेयर खतरनाक होता है। वो गेम को कंट्रोल करता है जबकि अपोनन्ट सिर्फ़ रिएक्ट कर सकता है।
चेस के गेम में एग्रेसन हमेशा आपके अपोनन्ट को नर्वस कर देता है। चाहे वो कितनी भी सेफ पोजीशन में हो, फिर भी उन्हें अपने material खोने का, अपनी पोजीशन कमज़ोर हो जाने का डर सताता है। यही डर उन्हें अपने खेलने के स्टाइल चेंज करने पर मज़बूर कर देता है। अटैकर के पास इन चेंजेस का फ़ायदा उठाने का मौका आ जाता है।
इनिशिएटिव लेने वाला प्लेयर अपने अपोनन्ट से चार कदम आगे सोच सकता है। अगर वो प्रेशर बनाए रखेगा तो उसका एडवांटेज एक unstoppable अटैक में बदल जाएगा। बिजनेस में इनिशिएटिव लेने से ज़्यादा सेल्स होता है। पॉलिटिक्स में इसका मतलब है ज़्यादा वोट मिलना। ये अटैकर का एडवांटेज होता है।
इसके लिए जंग का example लेते हैं। आज के मॉडर्न वॉर डिफेंस या रक्षा या बचाव का प्रिंसिपल अब मौजूद नहीं है। nuclear हथियार को इसमें count ना करें। आज कईं देशों के पास ऐसे लेज़र गाइडेड मिसाईल हैं जो 100 मीटर अंडरग्राउंड वाले बंकर्स को भी तहस-नहस कर सकते हैं। इसमें आमतौर पर जीतता वही है जो पहले अटैक करता है और ज़्यादा बड़ा अटैक करता है।
इंटरनेट के इस दौर में अटैकर का एडवांटेज़ बिजनेस के फील्ड में clearly देखा जा सकता है। अल्टाविस्टा वर्ल्ड का पहला इंटरनेट ब्राउज़र था लेकिन बहुत जल्द याहू! ने इसे पछाड़ दिया था। जब गूगल आया तब याहू! को एहसास हुआ कि वो इससे मुकाबला नहीं कर सकता। इसलिए उन्होंने इनिशिएटिव लिया और न्यूज़, एंटरटेंमेंट और ईमेल में अपना बिजनेस एक्सपैंड कर लिया।
एप्पल उस कंपनी का बेस्ट example है जो अटैकर होने का फ़ायदा उठाती है। उनका आईपॉड मिनी हिस्ट्री में अब तक का सबसे पॉपुलर इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस रहा है। हालांकि एप्पल ने इससे आगे बढ़ते हुए, किसी कॉम्पटीटर के आने से पहले ही आईपॉड नैनो रिलीज़ कर दिया था।
एग्रेसन, ट्रांजीशन यानी बदलाव के period के दौरान भी ज़रूरी होता है। इसमें एक कॉमन ट्रांसफॉर्मेशन है - एक इमिटेटर से एक इनोवेटर में बदलने का। जैसे example के लिए, एक चेस प्लेयर वर्ल्ड चैंपियनशिप को कॉपी करके ख़ुद को काफ़ी हद तक इम्प्रूव कर सकता है, लेकिन एक ग्रैन्डमास्टर बनने के लिए उसे अपना खुद का स्टाइल बनाना होगा।
बहुत सारे बिजनेस इमिटेटर के तौर पर ही शुरुआत करते हैं। जैसे 20वी सेंचुरी के जैपनीज़ इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियाँ। उन्होंने यूएस और यूरोपियन डिवाइस की सस्ती कॉपी बनाने से अपनी शुरुआत की थी। आखिरकार अमेरिकन मैन्युफैक्चरर पीछे रह गए और उन्हें अपनी कंपनी बंद करनी पड़ी।
जैपनीज़ कंपनियों को हाई-एंड मार्केट में एंट्री करने का मौका मिल गया था। वो नए प्रोडक्ट बनाते रहे और इनोवेट करते रहे, लेकिन फिर कोरिया और ताइवान ने भी लेटेस्ट जैपनीज़ प्रोडक्ट्स की कॉपी बनाना शुरू कर दिया।
इसलिए जैपेन को एक इमिटेटर से इनोवेटर बनने के लिए मज़बूर होना पड़ा। उनकी एग्रेसिवनेस के कारण जैपनीज़ कंपनियाँ टिक पाई।
Question Success
अक्टूबर 2000 में, गैरी कैस्परोव को अपना वर्ल्ड चैंपियनशिप टाइटल बचाना पड़ा। उनका चैलेंजर एक यंग रशियन था जिसका नाम है व्लादिमिर क्रैमनिक (Vladimir Kramnik). कई क्रिटिक्स को ये लगा था कि शायद कैस्परोव हार जाएंगे। 35 की उम्र में वो बाकि के सभी टॉप कॉम्पटीटर से काफ़ी बड़े थे।
लेकिन कैस्परोव ने इस पेरिओस के दौरान खेलने का एक नया लेवल ढूंढ लिया था। 1999 से वो ऑल्मोस्ट सारे मेजर चेस टूर्नामेंट जीतते आ रहे थे। इसके बावजूद, कैस्परोव ये टाइटल क्रैमनिक के हाथों हार गए.
कैस्परोव की हार के पीछे जो कारण थे उनमें से एक था क्रैमनिक का ओपनिंग प्रिपरेशन। उन्होंने कुछ खास ओपनिंग मूव्स स्टडी किए थे जैसे बर्लिन डिफेंस, जिससे गेम धीमी हो जाती थी और इसमें कई दांव-पेच और पैंतरे लगाने पड़ते थे। इससे कैस्परोव के अटैकिंग स्टाइल में रूकावट आ गई थी।
लेकिन सबसे इंपोर्टेंट बात ये थी कि क्रैमनिक ने कैस्परोव को साइकोलॉजिकल तौर पर मात दे दी थी। इस वर्ल्ड चैंपियन का मानना था कि वो हार नहीं सकते। अगर वो स्ट्रगल भी कर रहे होते थे तो भी उन्हें लगता था कि वो बाज़ी पलट देंगे जैसा कि उन्होंने कार्पोव मैच में किया था। हालांकि 2000 का मैच 16 गेम्स तक ही सीमित था। वो दो गेम हार चुके थे और दोबारा खड़े होने में कामयाब नहीं हो पाए।
इस सिनेरियो को ‘ग्रेविटी ऑफ पास्ट स्कसेस’ कहते हैं। जब आप जीत रहे होते हैं तो आपको लगता है सब कुछ ठीक चल रहा है। आप अपनी गलतियां ढूँढने और उन्हें एनालाईज़ करने के बजाए सिर्फ़ पॉजिटिव चीज़ों के बारे में सोचते हैं।
स्कसेस के बाद रिलैक्स करने और सेटिसफ़ाईड होकर बैठ जाने को complacency या आत्म-संतुष्टि कहते हैं। complacency, कॉर्पोरेट सेक्टर में फेलियर की वजह बन सकता है। लेकिन इसके सबसे बुरे परिणाम मिलिट्री में देखे जा सकते हैं। जैसे कि हम वर्ल्ड वॉर 2 के दौरान रशियन आर्मी का example ले सकते हैं।
मार्शल क्लिमेंट वोरोशिलोव (Kliment Voroshilov) 1919 में रशियन सिविल वॉर के दौरान एक मास्टर स्ट्रेटेजिस्ट थे। उन्होंने विद्रोहियों को दबाने के लिए अपनी कैवेलरी (घोड़ों पर सवार सेना) का इस्तेमाल किया था।
1919 में मिली कामयाबी के कारण रशियन जनरल complacent यानी लापरवाह हो गए थे। 1941 में, उन्हें और भी बड़े खतरे का सामना करना पड़ा: जो था जर्मन सेना। सोवियत को लगा कि घुड़सवार सेना के दम पर वो फिर से जंग जीत जाएँगे, लेकिन जब जर्मन टैंक रशिया में घुसे तो उनके घोड़े किसी काम के नहीं रहे।
अगर सामने कोई कॉम्पटीटर हो तो कोई भी अच्छा परफ़ॉर्म कर सकता है। 1990 के शुरुवाती दशक में, कार्पोव उम्र बढ़ने के साथ-साथ कमज़ोर पड़ने लगे थे। अब कैस्परोव को चैलेंज करने के लिए कोई बचा नहीं था। वो भी चेस से डिसट्रेक्ट होकर अब पॉलिटिक्स और बिजनेस में ज़्यादा इनवॉल्व रहने लगे थे।
1998 में, कैस्परोव किसी कंप्युटर से हारने वाले पहले चेस वर्ल्ड चैंपियन बने। इससे उन्हें एहसास हुआ कि वो complacent यानी लापरवाह या संतुष्ट हो गए थे। उन्होंने खुद को यंग जेनरेशन के चेस प्लेयर्स को हराने में लगा दिया। इसलिए 1999 से 2001 में कैस्परोव के करियर के सबसे बेहतरीन गेम देखने को मिले।
अगर आपके सामने कोई कॉम्पटीटर नहीं है तो आपको खुद का स्टैन्डर्ड उठाने का गोल बनाना होगा। इसके लिए आपको हार्ड वर्क के अलावा क्रिएटिविटी और फ्लेक्सिबिलिटी की ज़रूरत पड़ेगी।
थ्री-टाइम ओलिम्पिक गोल्ड मेडलिस्ट कार्ल लुईस 1996 में दोबारा जीतना चाहते थे। 35 की उम्र में वो अपनी बढ़ती उम्र की वजह से कईं नए challenges का सामना कर रहे थे। लुईस ने अपने ट्रेनिंग के तरीके को पूरी तरह बदल दिया और ट्रैक एंड फील्ड में अपना फ़ोर्थ गोल्ड मेडल जीता।
लुईस की स्टोरी दिखाती है कि किसी भी तरह की complacency पर काबू पाने के लिए मोटीवेशन का होना बेहद ज़रूरी है। चेस प्लेयर्स को उनकी स्ट्रेंग्थ यानी ताकत के लिए रेटिंग मिलती है, जो उन्हें इमप्रूव करने की हिम्मत देता है। लाइफ में हमें ऐसी कोई रेटिंग नहीं मिलती लेकिन आप अपने लिए इसे डेवलप कर सकते हैं। कुछ लोग पैसे कमाने का गोल बनाते हैं और कुछ ख़ुशी के जरिए अपनी मोटीवेशन ढूंढते हैं।
लेकिन सबसे इफेक्टिव मोटीवेटर है चैलेंज । जब हमारे सामने कोई रुकावट आती है तो हम बड़ी जल्दी और पूरी मेहनत के साथ इम्प्रूव करते हैं। चेस, प्लेयर्स को ऐसे टफ़ challenges का सामना करने का अनोखा मौका देता है।
आमतौर पर, रेटिंग के हिसाब से स्ट्रॉंग और वीक प्लेयर्स की कैटेगरी होती है, लेकिन आप अपनी रेटिंग से ज़्यादा रेटिंग वाली कैटगरी में खेलने के लिए फ्री होते हैं।
तो ऐसे केस में क्या हर बिगिनर चेस प्लेयर इम्प्रूव करने के लिए मास्टर्स के खिलाफ़ खेलता है? ये एक अच्छी स्ट्रेटेजी है। अपने से बैटर प्लेयर्स के साथ 10 गेम्स खेलकर हारना ज़्यादा अच्छा होता है। अपनी बराबरी के प्लेयर्स के साथ 10 गेम खेलकर आपको ज़्यादा सीखने का मौका नहीं मिलता है.
हालांकि, हारने का सिलसिला आपका कॉन्फिडेंस हिला सकता है। ये आपको निराश और थका हुआ फील कराता है। कोई भी ऐसी हार के बाद ख़ुद को एनालाइज़ और इम्प्रूव नहीं करना चाहेगा। ख़ुद को ऐसी पोजीशन में रखें जहवाँ आप उतना ही हारते हैं जितना आप हैंडल कर सकते हैं. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि आप आसान जीत के पीछे भागते रहें क्योंकि आपको जीतना अच्छा लगता है। आपको बस क्रिटिकल सिचुएशन में ही डिस्ट्रक्टिव loss से ख़ुद को बचाना चाहिए। ग्रोथ के लिए loss और फेलियर दोनों ज़रूरी हैं।
Exchanges and Imbalances
1919 में, गैरी कैस्परोव एक ऑनलाइन चेस प्लेटफॉर्म रिलीज़ करना चाहते थे। इसके फ़ाईनल स्टेज पर आकर वो और उनके डिजाइनर्स टेस्टर्स के साथ काम कर रहे थे। इस साइट को गाईड और menu के साथ डिजाइन किया गया था, लेकिन टेस्टर्स ने सारे इंस्ट्रक्शन्स को अनदेखा करते हुए जो भी पहली चीज़ उन्हें दिखी उस पर क्लिक करना शुरू कर दिया। वो बस फटाफट आगे बढना चाहते थे।
ये इस बात को ज़ाहिर करता है कि हम में से ज़्यादातर लोग डिसिशन कैसे लेते हैं। हम एक अंदाजा लगाते हैं और बिना एनालाईज़ किए आगे बढ़ जाते हैं। हमारा इंस्टिंक्ट आमतौर पर हमारी डेली एक्टिविटीज़ के लिए काफ़ी होते हैं। लेकिन, यही अप्रोच हम बोर्डरूम या दूसरे इंपोर्टेंट सिचुएशन में यूज़ नहीं कर सकते। क्रिटिकल डिसीज़न को ध्यान से ईवैल्यूएट करना ज़रूरी है।
ईवैल्यूएशन का मतलब है एक्सचेंज और imbalance को कंपेयर करना। चेस में imbalance वो डिफरेंस है जो आप और आपके अपोनन्ट की पोजिशन और आपके बीच में है। टॉप ग्रैन्डमास्टर इसे ऐसी सिचुएशन में भी पहचान लेते हैं जहां गेम बराबर लग रहा होता है। सब कुछ सेम हो भी एक प्लेयर को पहल करनी पड़ती है।
आपका हर मूव यानी चाल, एक नया imbalance क्रिएट करता है। कुछ डिसीजन पूरी तरह नेगेटिव या पॉजिटिव होते हैं। आपको नफा और नुकसान के बीच बैलेंस बनाना चाहिए। आमतौर पर, material loss ही पूरी तरह से नुक्सान पहुँचाने वाले सिचुएशन होते हैं।
लेकिन इसके बावजूद ईवैल्यूएशन करना आपको अपने नुक्सान को कम करने में मदद करता है। अब जैसे इंवेस्टिंग का ही example ले लो। बिगिनर्स अक्सर ख़राब स्टॉक्स को इस उम्मीद में रखते हैं कि वो इम्प्रूव हो जाएगा, लेकिन एक्सपिरिएंस्ड इन्वेस्टर्स उन्हें जल्द से जल्द बेच देते हैं। वो ईवैल्यूएट करते हैं कि अभी थोड़ा रिटर्न मिलना लास्ट में कुछ हाथ ना आने से बैटर है।
एक्सचेंज, चेस बोर्ड को ट्रांसफॉर्म करने यानी बदलने के लिए यूज़ किया जाता है। हर अच्छा एक्सचेंज आपकी पोजीशन की quality को इम्प्रूव कर देता है। उन्हें material , टाइम और quality के टर्म्स में ईवैल्यूएट किया जाता है।
आप knइघ्त यानी घोड़े की quality इम्प्रूव करने के लिए दो मूव्स यूज़ सकते हैं। अगर आप पॉन (मोहरा) की कुर्बानी देते हो तो आपके अपोनन्ट को उसे पकड़ने के लिए एक चाल ख़र्च करनी पड़ेगी और यही मौका है जब आप इस टाइम का इस्तेमाल अटैक की शुरुवात करने के लिए कर सकते हो।
ठीक ईसिस तरह, एक कंपनी को भी अपने रिसोर्सेज के बारे में सोचना चाहिए। इसका कैश रिजर्व ही इसका material है। ये पैसा नए प्रोडक्ट बनाने में, स्टाफ या एडवरटाईज़िंग में इन्वेस्ट किया जाना चाहिए. चेस की तरह ही कंपनियों को भी अपने ऑपपोनेंट के material को ध्यान में रखना चाहिए।
अगर आपका अपोनन्ट dominant पोजीशन में है तो भी आपके पास imbalance क्रिएट करने का चांस है। अगर उनकी कोई कमज़ोरी है तो आप इसे यूज़ करके अपने लिए मौका चुरा सकते हैं। अब जैसे यहाँ हम 1990 के दशक में ब्राउज़र वॉर का example ले सकते हैं।
उस समय, नेटस्केप नेविगेटर सबसे पॉपुलर वेब ब्राउज़र था। माइक्रोसॉफ्ट एक्सप्लोरर उनका मेन राइवल था, लेकिन माइक्रोसॉफ्ट का प्रोडक्ट नेवीगेटर की तुलना में बहुत कमज़ोर था। इसके अलावा नेटस्केप का कस्टमर बेस बहुत बड़ा और लॉयल था।
इस केस में ज़रा imbalance पर ध्यान दीजिए। माइक्रोसॉफ्ट के पास इससे भी बुरा प्रोडक्ट, ब्रैंड रेकॉगनाईजेशन और यूजर बेस था, लेकिन उनके बाकि के एरिया में उनके पास पॉजिटिव imbalance था। माइक्रोसॉफ्ट एक बड़ी थी इसलिए उनके पास कैश के रूप में ज़्यादा मटेरियल था. माइक्रोसॉफ्ट के पास उनके अलग प्रोडक्ट के लिए यूज़ बेस भी था: और वो प्रोडक्ट था उनका ऑफिस सॉफ्टवेयर।
माइक्रोसॉफ्ट ने फ्री में इंटरनेट एक्सप्लोरर यूज़ करने की सुविधा देना शुरू कर दिया। उन्होंने अपने material को बड़े पैमाने पर यूजर बेस की quality के बदले में एक्सचेज़ किया। बेहतर ब्राउज़र होने के बावजूद भी नेटस्केप एक फ्री प्रोडक्ट के साथ मुकाबले नहीं कर पाया। अब माइक्रोसॉफ्ट ब्राउज़र मार्केट में 10% की हिस्सेदारी से बढ़कर 80% तक पहुँच चुका था।
imbalance को सिर्फ़ आपके कॉम्पटीटर्स के टर्म्स में मेजर नहीं किया जाना चाहिए। आपको अपनी पोजीशन में भी imbalance को चेक करना होगा। चेस में इस कॉन्सेप्ट को ‘हार्मनी’ कहते हैं। यानी आपकी हर चाल, आपके पीसेज़ के बीच के coordination पर असर डालता है। जैसे, एक मूव अगर आपको material जिता रहा है तो वो आपके पीसेज़ को ब्लॉक करके आपकी पोजीशन को ख़राब कर सकता है।
सेम यही प्रॉब्लम बिजनेस में भी आ सकती है। जैसे, एक डील जो आपको फायदेमंद लग रही है वही आपका नुक्सान भी कर सकती है क्योंकि उसकी वजह से coordination मुश्किल हो जाता है। अब जैसे 2001 के फ़ेमस मर्जर को ही ले लो, जो टाइम वॉर्नर और इंटरनेट जाएंट AOL के बीच हुआ था। ऐसा लग रहा था कि दो दिग्गज मिलकर मीडिया इंडस्ट्री पर राज करने वाले हैं, पर उन्हें अलग होना पड़ा क्योंकि वो आपस में अपने ऑपरेशन का तालमेल नहीं बैठा सके यानी उनमें coordination ही नहीं बन पा रहा था।
एक्सचेंज और imbalance के बारे में फ़ाईनल पॉइंट ये है कि आपको पता होना चाहिए कि उन्हें कब करना है। जब तक आप स्टेबल नहीं हैं तब तक आपको कभी डेवलपमेंट की तरफ नहीं बढ़ना चाहिए। चेस में ऐसी ट्रांसफॉर्मेशन करना जिससे आपकी पोजीशन कमज़ोर पड़ जाए वो ‘ओवरएक्सटेन्डिंग’ कहलाती है।
अब जैसे Pan Am एयरलाइंस का केस ले लो। 1970 के दशक में, ये अमेरिका की सबसे बड़ी एयरलाइन बन गई थी और ट्रेवल इंडस्ट्री में सबसे आगे थी। लेकिन 1973 से कंपनी की पोजीशन कमज़ोर पड़ती गई। फ्लाईट के रूट को लेकर जो इसका लीगल मामला चल रहा था, उसमें इन्हें हार का सामना करना पड़ा और उसी दौरान दुनिया में एनर्जी क्राइसिस की सिचुएशन खड़ी हो गई थी।
Pan Am ने अपनी इसी वीक पोजीशन में एक डोमेस्टिक carrier खरीदा जिसका नाम था नेशनल एयरलाइंस। उन्होंने काफ़ी बड़ा कर्ज़ लिया था जिसे चुकाने के लिए उनके पास प्रॉफ़िट की कोई गारंटी नहीं थी। Pan Am इतनी कमज़ोर हो गई थी कि एक नेगेटिव घटना इसे बर्बाद कर सकता था। 1988 में हुए एक टेररिस्ट अटैक के बाद 1991 में Pan Am का दिवाला निकल गया।
Conclusion
सबसे पहले, आपने जाना कि इम्प्रूवमेंट के लिए सबसे ज़रूरी चीज है सेल्फ-अवेयरनेस। गैरी कैस्परोव एक चैम्पिशिप हारने ही वाले थे क्योंकि उन्होंने खुद को एनालाईज़ नहीं किया था। अपने डिसिशन लेने के स्टाइल को जानना इम्प्रूवमेंट का सबसे पहला स्टेप है।
सेकंड, आपने स्ट्रेटेजी की इंपोर्टेंस के बारे में जाना। एक लॉंग टर्म प्लान आपको डिसीज़न लेने में हेल्प करेगा। अपनी ताकत और कमजोरियों के हिसाब से अपनी स्ट्रेटेजी प्लान करो। अच्छी स्ट्रेटेजी के लिए सबसे ज़रूरी टूल्स हैं टैक्टिक्स। टैक्टिक्स क्विक रिएक्शन होते हैं जो नए ख़तरे और opportunity के बारे में बताते हैं।
थर्ड, आपने material , टाइम और quality का कॉन्सेप्ट अप्लाई करना सीखा। आप material को टाइम से या फिर टाइम को material से एक्सचेंज कर सकते हो। टाइम और material में इन्वेस्ट करके quality को इम्प्रूव किया जा सकता है। कोई भी डिसिशन लेने से पहले ये देख लो कि आप material के पीछे भाग रहे हो या टाइम के। और quality आपके लिए क्या है, ये भी अपने माइंड में क्लियर कर लो।
फ़ोर्थ, आपने अटैकर के एडवांटेज के बारे में जाना। एक वेल-planned एग्रेसन हमेशा आपको एडवांटेज देता है। वॉर, बिजनेस और पॉलिटिक्स हर जगह इनिशिएटिव लेने वाली पार्टी अक्सर जीतती है। अपने स्कसेस के चांस को इम्प्रूव करने के लिए हमेशा फुल एनर्जी, क्रिएटिविटी और हिम्मत के साथ अपने गोल्स के पीछे जाओ।
फिफ्थ, आपने जाना कि कैसे स्कसेस पर सवाल उठाने से आपको ग्रो करने में हेल्प मिलती है। आप गलतियाँ करते हुए भी जीत सकते हो लेकिन ये गलतियाँ फ्यूचर में आपको काफ़ी भारी पड़ सकती हैं। कॉम्पटीशन, चैलेंज और सेल्फ-इम्प्रूवमेंट के पीछे जाने से आप खुद को ईज़ीली satisfied होने से बचा सकते हैं।
सिक्स्थ, आपने एक्सचेंज और imbalance के बारे में जाना। अपनी सिचुएशन को पॉजिटिव रूप से बदलने के लिए एक्सचेंज ज़रूरी है, लेकिन ये तभी होना चाहिए जब आप खुद मज़बूत पोजीशन में हों।
अपने कॉम्पटीटर को पछाड़कर आगे बढ़ने का मौका बनाने के लिए imbalance ज़रूरी है, लेकिन ऐसा imbalance करने से बचें जो आपके पोजीशन की coordination को बिगाड़ दे।
इन प्रिंसिपल्स को फॉलो करने से आपकी डिसिशन लेने की एबिलिटी बढ़ेगी और आप किसी भी तरह की रुकावट को दूर कर पाएंगे। एक चेस मास्टर की तरह आप भी स्ट्रेटेजी बनाकर, सिचुएशन के हिसाब से ढलकर और इनिशिएटिव ले सकते हैं। ग्रोथ पर फोकस करो और खुद को हमेशा चैलेंज करते रहो। लाइफ एक गेम है जो कभी खत्म नहीं होता है और आपका हर डिसिशन आपको अगले विनिंग मूव की तरफ ले जा सकता है।