SAME AS EVER - A Guide to What Never Changes
Morgan Housel
इंट्रोडक्शन
2009 में, जॉन नाम का लड़का वॉरेन बफ़ेट के साथ नेब्रास्का में ट्रैवल कर रहा था। ये वो दौर था, जब पूरी दुनिया की इकॉनमी बहुत ख़राब चल रही थी। कई बिज़नस और बैंक बंद हो गए थे।
जॉन ने वॉरेन बफ़ेट से पूछा कि क्या इकॉनमी कभी रिकवर कर पाएगी। हाँ या ना कहने के बजाए वॉरेन बफ़ेट ने पूछा कि 1960 की बेस्ट सेलिंग कैंडी बार कौन सी थी। जॉन ने कहा कि उसे नहीं पता।
वॉरेन बफ़ेट ने कहा, “Snickers”। उन्होंने फ़िर पूछा “क्या तुम्हें पता है कि आज की बेस्ट सेलिंग कैंडी बार कौन सी है?” एक बार फिर से जॉन ने कहा कि उसे नहीं पता। वॉरेन बफ़ेट ने जवाब दिया, “Snickers”।
हमारे टेक्नोलॉजी, हेल्थ और लाइफ की quality में बहुत कुछ बदल गया है। फिर भी, कुछ ऐसे प्रिंसिपल्स हैं, जो अभी तक पहले जैसे ही हैं और वो पास्ट और present दोनों में अप्लाई होते हैं। वो फ्यूचर में भी, हमें ऐसे ही रास्ता दिखाते रहेंगे।
इस समरी में, आप हिस्ट्री के सबसे पावरफुल लेसन के बारे में जानेंगे। आप ये भी जानेंगे कि लाइफ की अनसर्टेनिटी यानी उतार-चढ़ाव से कैसे डील करना है। इस समरी की मदद से, आप और ज़्यादा strong और समझदार बनेंगे।
Risks Is What You Don’t See
NASA के एस्ट्रोनॉट स्पेस में जाने से पहले ऊँचें altitude पर हॉट-एयर बलून में प्रैक्टिस करते हैं। 4 मई, 1961 में, एस्ट्रोनॉट विक्टर प्रैथर एक हॉट-एयर बलून में 113,700 फीट की उंचाई पर पहुँच गए और स्पेस को बस छूने ही वाले थे। इस मिशन का मकसद था NASA के नए स्पेस सूट को test करना।
ये मिशन सक्सेसफुल रहा। नया सूट बहुत अच्छी quality का होने के साथ-साथ बेहद असरदार भी था। लेकिन, जैसे ही हॉट-एयर बलून नीचे उतरा तो विक्टर ने अपने हेलमेट का फेसप्लेट खोल दिया। वो खुद से सांस लेकर ताज़ी हवा लेना चाहते थे।
विक्टर सही तरीके से समुद्र में लैंड कर गए। जब हेलिकॉप्टर उन्हें लेने आया तो विक्टर ने रेस्क्यू लाइन को ख़ुद से कनेक्ट करने के लिए अपना हाथ बढ़ाया, लेकिन वो फिसलकर समुद्र में गिर गए।
इससे कुछ ख़ास फर्क नहीं पड़ना चाहिए था क्योंकि स्पेस सूट को 100% कसकर सील किया गया था जिस कारण विक्टर safely पानी के ऊपर ही तैरते रहते, लेकिन उनके हेलमेट का फेसप्लेट खुला हुआ था जिस कारण पानी तुरंत उनके सूट में घुस गया और वो डूब गए।
NASA, शायद एक ऐसी organization है, तो बहुत सोच-समझकर प्लानिंग और रिस्क पर काम करती है। वो हर छोटी से छोटी डिटेल और क्या-क्या हो सकता है, के लिए तैयारी करते हैं। उनके पास हर एक चीज़ के लिए, प्लान A, प्लान B और प्लान C होता है, लेकिन एक्सीडेंट और फेलियर फिर भी होते हैं।
ज़िंदगी में, हम हर मुमकिन तैयारी करने की कोशिश करते हैं, लेकिन ऐसे इवेंट्स फिर भी होते हैं जिनके बारे में हमने कभी सोचा भी नहीं होता है। इसे ही रिस्क कहते हैं। सभी चीज़ों को लेकर हमारी प्लानिंग के बाद, जो बच जाता है, वही रिस्क है और जिसे हम नज़रंदाज़ नहीं कर सकते।
COVID-19 महामारी, 9/11 टेररिस्ट अटैक और द ग्रेट डिप्रेशन जैसी घटनाओं के बारे में सोचिए। ये इतने बड़े इवेंट्स थे, जिनका पूरी दुनिया पर गहरा असर पड़ा था। लेकिन, सबसे इम्पोर्टेन्ट बात ये है कि ये अचानक से होते हैं और इनके बारे में पहले से पता होना नामुमकिन है। किसी ने भी इनके होने की कल्पना भी नहीं की होगी।
इंवेस्टिंग में एक कहावत है, “बूम के बाद बस्ट आता है” मतलब उछाल के बाद मंदी आती है. यानी कि ये बबल्स यानी बुलबुले हमेशा फूट जाते हैं। इसके बाव्जोद, कोई भी शेयर मार्केट में आई गिरावट को प्रेडिक्ट नहीं कर पाया, जिसने इकॉनमी को पूरी तरफ ख़त्म कर दिया और लाखों लोगों की ज़िंदगी को बर्बाद कर दिया।
इसके कुछ example हैं, 1920 के दशक का बूम, 1990 के आखिर में हुआ डॉट-com बबल और 2000 के शुरुआती साल में आया हुआ इकॉनोमिक क्राइसिस। एक रूल ये भी कहता है कि जितना बड़ा बूम होगा, बस्ट उतना ही ज़्यादा दर्दनाक होगा। इसके बावजूद, कोई भी द ग्रेट डिप्रेशन जैसी घटना होने की कल्पना नहीं कर पाया।
1920 के दशक के बूम में, कुछ एक्सपर्ट्स का कहना था कि स्टॉक मार्केट ओवर प्राईस्ड था यानी कीमत बहुत ज़्यादा थी, लेकिन कोई ये नहीं बता पाया कि जल्दी ही दस साल का लंबा डिप्रेशन आने वाला है।
आज, हम शायद ये सोच सकते हैं कि लोगों को मालूम होना चाहिए था कि मंदी आने वाली है और द ग्रेट डिप्रेशन को होने से कोई नहीं रोक सकता था। लेकिन, शायद उस वक़्त के लोगों ने फ्यूचर से जुड़ी उम्मीदों या फिर पुराने ख़राब एक्सपीरियंस के कारण इस पर ध्यान नहीं दिया होगा।
द इकॉनमिस्ट मैगज़ीन, हर जनवरी में एनुअल फोरकास्ट पब्लिश करती है। उसके जनवरी 2020 के इशू में, COVID-19 महामारी के बारे में कोई प्रेडिक्शन नहीं था। इसके अलावा, जनवरी 2022 के इशू में भी ऐसी कोई भविष्यवाणी नहीं थी कि russia यूक्रेन पर हमला करेगा।
इसलिए, सबसे बड़ा रिस्क, सबसे बड़ी न्यूज़ और सभी पर गहरा असर डालने वाली घटनाएँ वो होती हैं, जिनके बारे में हम पहले से जान नहीं पाते हैं। आप शायद ये शर्त लगा सकते हैं कि आज से दस साल बाद कोई ना कोई बड़ी दुर्घटना ज़रूर होगी, लेकिन आप ये बता नहीं पाएँगे कि वो घटना क्या होगी और कैसे घटेगी।
तो, इन रिस्क्स और unexpected दुर्घटनाओं से हम खुद को और अपनों को कैसे बचा सकते हैं?
सबसे पहले तो आपको इसके लिए तैयार रहना होगा। जैसे, कैलिफ़ोर्निया शहर हमेशा बड़े भूकंप का सामना करने के लिए तैयार रहता है।
इमरजेंसी में respond करने वालों को ये पता नहीं होता है कि भूकंप कहाँ, कब और कितना पावरफुल तरीके से आएगा। फिर भी, जो भी होता है वो इस चीज़ के लिए trained होते हैं और तैयार भी रहते हैं। कैलिफ़ोर्निया में बिल्डिंग को भी, उन भूकंपों को सहन करने के हिसाब से डिज़ाइन किया गया है, जो अगले 100 साल में आ सकते हैं।
रिस्क तब खतरनाक हो जाते हैं जब आप तैयारी करने से पहले किसी स्पेसिफिक फोरकास्ट या प्रेडिक्शन पर भरोसा कर बैठते हैं। इसके बजाय, आपको ये सोचकर चलना चाहिए कि रिस्क कभी भी और कहीं भी हो सकता है।
दूसरा, आपको ऐसे रिस्क के लिए भी तैयारी करनी चाहिए जिनके बारे में आप बारे में सोचा नहीं था या फिर आपको लगता है कि वो आपके साथ कभी नहीं होंगे। जैसे, आपको ज़रुरत के हिसाब से अच्छा-खासा पैसा सेव करना चाहिए। इसकी ज़रुरत पड़ने पर, पैसे ना होने से, ये कहीं बेहतर होता है।
इसलिए, आपको ऐसी सिचुएशन के लिए तैयार रहना चाहिए जो आपको लगता है कि कभी नहीं आएंगी। अपनी तैयारी करके रखिए और कोई चांस मत लीजिए। अगर आप ऐसा करेंगे, तो आप एक ऐसी चीज़ से कभी बर्बाद नहीं होंगे जिसकी आपने कभी उम्मीद ही नहीं की थी।
हैरी हुडूनी, एक स्टंट परफ़ॉर्मर और एक बिगिनर बॉक्सर थे। एक बार, उन्होंने किसी को भी स्टेज पर आकर उनके पेट में पंच मारने का चैलेंज दिया था। उन्हें पंच मारने के लिए कुछ लोग आए, लेकिन हैरी को कोई फर्क नहीं पड़ा था। ऐसा लगता था कि कोई भी उन्हें चोट नहीं पहुंचा सकता।
1926 में, हैरी ने स्टूडेंट्स के एक ग्रुप को स्टेज के पीछे मिलने के लिए बुलाया। उनमें से एक, गॉर्डोन वाइटहेड ने हैरी को बिना वॉरनिंग दिए अचानक से उन्हें पंच मार दिया। गॉर्डोन का मकसद हैरी को नुक्सान पहुंचाना नहीं था। उसने सोचा था कि वो तो बस उसी चैलेंज को कर रहा है जो हैरी ने स्टेज पर दिया था।
लेकिन, हैरी ने सोचा नहीं था कि ऐसा कुछ होगा। उस वक़्त वो अपने पेट में इतने ज़ोरदार पंच को लेने के लिए तैयार नहीं थे। वो ना तो अपना बैलेंस बना पाए थे, ना अपनी साँस को रोककर रख पाए या अपने पेट की नसों यानी सोलर प्लेक्सस को टाइट भी नहीं कर पाए थे।
गॉर्डोन ने पूरी ताकत से उन्हें पंच मारा था और इससे हैरी को एक धक्का लगा। अगले दिन जब हैरी उठे तो उन्हें पेट में बहुत दर्द हो रहा था। चेक करने पर डॉक्टर ने बताया कि गॉर्डोन के पंच के कारण उनका अपेंडिक्स फट गया था। इसके कुछ दिन बाद, हैरी हुडूनी की मौत हो गई।
हैरी ने मिट्टी में ज़िन्दा दफ़न होने या फिर जंजीरों में जकड़े पानी में फ़ेंके जाने जैसे ख़तरनाक स्टंट को बखूबी निभा चुके थे क्योंकि वो हमेशा अपने स्टंट और मैजिक ट्रिक्स के लिए पहले से तैयार रहते थे लेकिन, हैरी ने एक स्टूडेंट से स्टेज के पीछे इतने ज़ोरदार पंच की उम्मीद नहीं की थी। वो इसलिए बच नहीं पाए क्योंकि उन्होंने इसके होने की उम्मीद नहीं थी।
Expectations and Reality
ख़ुशी उम्मीदों पर डिपेंड करती है। उम्मीद कम रखने का मतलब है ज़्यादा ख़ुशी होना। अगर आप सिंपल चीज़ों से खुश हो जाते हैं तो आपको लगेगा कि आपके पास सब कुछ है और आप संतुष्ट रहेंगे। लेकिन ऐसा बहुत कम होता है कि हमारी उम्मीदें एक जैसी रहती हैं।
जैसे-जैसे हमारी टेक्नोलॉजी, पैसा और medicine इम्प्रूव होती हैं, उसके साथ-साथ हमारी लाइफ की quality भी बढ़ती जाती है। लेकिन, हमारी लाइफ की quality पुरानी जनरेशन से काफी अच्छी होने के बाद भी हम दुखी रहते हैं। ये तब और भी बध्तर हो जाता है जब हम अपनी ज़िंदगी को दूसरों से compare करने लगते हैं।
Billionaire आंत्रप्रेंयूर, जॉन डी. रॉकफ़ेलर 1839 से 1937 तक जिंदा रहे। उनके पास पेनकिलर्स, पेनिसिलिन या सनस्क्रीन नहीं था। कम पैसा कमाने वाले अमेरिकंस आज इन इन्वेंशंस को आसानी से इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन वो इन्हें नज़रंदाज़ करते हैं।
रॉकफ़ेलर के वक़्त के लोगों के लिए पेनिसिलिन एक लक्ज़री आइटम मानी जाती थी। लेकिन आज आप इसे किसी भी दवाई की दुकान से खरीद सकते हैं और लोग इन्फेक्शन से इतनी आसानी से नहीं मरते। इस बात से हमें ख़ुशी होना चाहिए, लेकिन हम हमेशा अपनी ज़िंदगी को अपने दोस्तों की ज़िंदगी से compare करते रहते हैं और दुखी रहते हैं।
जनवरी 1953 में, लाइफ मैगज़ीन ने पुलिश किया था कि पिछला साल अमेरिका के लिए आज तक का सबसे अच्छा साल रहा था। इसमें सबसे ज़्यादा एम्प्लॉयमेंट रेट था और वर्कर्स को अच्छा पैसा भी दिया गया था। ऑफिस में उनकी हेल्थ कंडीशन भी बहुत अच्छी थी।
लाइफ मैगज़ीन ने जब एक टैक्सी ड्राईवर का इंटरव्यू लिया तो उसने बताया कि 1930 के दशक में वो हमेशा इसी बात की फ़िक्र करते रहते थे कि उन्हें अगले वक़्त का खाना मिल पाएगा या नहीं। दूसरी तरफ, 1950 के दशक में, उस टैक्सी ड्राईवर की फ़िक्र की वजह ये थी कि वो अपनी गाड़ी कहाँ पार्क करे क्योंकि अब कई लोगों ने गाड़ी ख़रीद ली थी।
1950 के दशक को US के मिडिल क्लास लोगों के लिए गोल्डन ऐज माना जाता है। 1950 से 1960 तक, एक एवरेज अमेरिकन फैमिली सिर्फ एक कमाने वाले मेंबर के भरोसे भी अच्छी ज़िंदगी जी सकती थी।
इसमें, हस्बैंड फैक्ट्री में काम करता और वाइफ घर पर तीन बच्चों का ख़याल रखती। उनके पास एक सिंपल सा घर, एक लेटेस्ट मॉडल की और एक पुरानी कार हुआ करती थी। ये फैमिली, वेकेशन के लिए भी जाती थी और पैसा सेव करने के लिए बैंक में जमा भी करती थी।
आज, लोग शायद ये कहेंगे कि 1950 के दशक की जिंदगी अभी से कहीं बेहतर थी। लेकिन, इस बात को बहुत ही आसानी से गलत साबित किया जा सकता है। 1955 में, एवरेज फैमिली इनकम थी 29,000 डॉलर। ये रेट, 1965 में 42,000 और 2021 में, 70,784 हो गया था।
आज हमारी इनकम, ज़्यादा घंटे काम करने या फिर औरतों के काम करने की वजह से 50% नहीं बढ़ी है। ऐसा सिर्फ, इन्फ्लेशन की वजह से हुआ है। सच कहें तो, पैसों को लेकर आज की हमारी प्रॉब्लम, 1950 के दशक की एक एवरेज फैमिली को कंफ्यूज़ कर देती।
1950 के दशक में, US में अपना ख़ुद का घर होने का रेट 12% से भी कम था। तब परिवार में ज़्यादा मेंबर होने के बावजूद एक एवरेज घर 30% छोटा होता था। 1950 के दशक के मुकाबले, आज खाना सस्ता है और आसानी से मिल जाता है। ऑफिस में होने वाली मौतें भी आज तीन गुना कम हो गई हैं।
जैसे, बेन फ़ेरेन्ज़ जब छोटे थे, तो वो और उनकी फैमिली US आकर बस गए थे। वो न्यू यॉर्क के एक ऐसे एरिया में रहते थे जहाँ Italian गैंगस्टर्स का कब्ज़ा था। वहां चारों तरफ क्राइम और वायलेंस फ़ैला हुआ था। बेन के पिता इंग्लिश नहीं जानते थे, इसलिए छोटे-मोटे काम किया करते थे।
इसके बावजूद, बेन को लगता है कि उसकी फैमिली बहुत लकी है क्योंकि उनके अपने देश रोमानिया में तो उनके हालात और भी बदतर थे। उनकी फैमिली वहां से बचकर US इसलिए भाग आई थी क्योंकि वहाँ jews को मारा जा रहा था। बेन और उनके पेरेंट्स, सर्दियों में US जाने वाले एक ओपन-डेक शिप पर चढ़ गए थे, जहाँ कंपकंपाती ठंड के कारण वो मरते-मरते बचे थे।
कई सालों बाद, बेन वकील बन गए और उन्होंने नाज़ी के क्रिमिनल्स पर मुकदमा चलाया। बेन उन चंद ख़ुश लोगों में से एक थे, जिनसे इस बुक के ऑथर मिले थे। रोमानिया में बेन का एक्सपीरियंस इतना बुरा रहा था कि न्यूयॉर्क में Italian गैंगस्टर्स होने के बावजूद वो संतुष्ट महसूस कर रहे थे और उन्हें किसी भी चीज़ की कमी महसूस नहीं होती थी।
एक और एग्ज़ाम्पल है गैरी क्रेमेन का, जो Match.com नाम की ऑनलाइन डेटिंग वेबसाइट के फाउंडर हैं। 43 की उम्र में, जब न्यू यॉर्क टाइम्स ने 2007 में उनका इंटरव्यू लिया था तो उस वक़्त उनकी नेट वर्थ 10 मिलियन डॉलर थी। 10 मिलियन डॉलर के साथ, गैरी US या फिर शायद दुनिया के टॉप 1% अमीर लोगों में गिने जाते थे।
लेकिन, गैरी कहते हैं कि वो सिलिकॉन वैली के एक आम इंसान हैं। सिलिकॉन वैली के सभी फाउंडर्स, CEOs और टॉप executives के पास 10 मिलियन डॉलर या इससे ज़्यादा पैसा है, इसलिए गैरी स्पेशल या अलग नहीं थे। वो पैसा कमाने के लिए हफ्ते में 60 से 80 घंटे काम करते थे।
इसलिए, दौलत से हमें फर्क पड़ता है। हम कहीं न कहीं, खुद को दूसरों से compare करते हैं और उनसे जलते हैं। आपके पास जो भी है, उसमें खुश और संतुष्ट रहने के लिए आपको कोशिश करनी होगी।
1950 का दशक, US इकॉनमी के लिए गोल्डन टाइम था क्योंकि नेशनल वॉर लेबर बोर्ड ने मज़दूरों की कम और ज़्यादा इनकम को एक जैसा कर दिया था। ये 1942 से 1945 तक, सेकंड वर्ल्ड वॉर के बाद हुआ था। इस वजह से, लो और मिडिल क्लास के बीच का फर्क कम हो गया था।
लेकिन ये फर्क, 1980 के दशक शुरुआत में जाकर बढ़ गया। लोगों को एहसास होने लगा कि कुछ लोगों का लाइफस्टाइल बाकी लोगों से ज़्यादा अच्छा अच्छा था। रॉकफ़ेलर, सनस्क्रीन इस्तेमाल नहीं करना चाहते थे क्योंकि उन्हें ये पता ही नहीं था कि ऐसा कुछ होता भी है। आज सबसे बसी प्रॉब्लम ये है कि सोशल मीडिया हमें दूसरों की फेक, एडिटेड और फिल्टर्ड लाइफ दिखाता है।
आप खुद को उन लोगों से compare करते हैं, जो अपने कंटेंट में चुनकर वही information पोस्ट करते हैं जिसमें वो खुश, अमीर और सक्सेसफुल दिखते हैं। आप दूसरों की डेली लाइफ में चल रही प्रॉब्लम और reality को देख नहीं पाते हैं इसलिए आपको खुद के लिए दुःख होता है।
अगर आप खुद को 1950 के दशक के लोगों से compare करेंगे तो आपको पता चलेगा कि आज हमारे पास ज़्यादा बड़े घर हैं, ज़्यादा सैलरी वाली है, बेहतर टेक्नोलॉजी और हेल्थ है। फिर भी, हम इन ब्लैसिंग्स को appreciate नहीं करते क्योंकि हमें सोशल मीडिया की आदत लग चुकी है और हम लोगों की लाइफ से जलने लगे हैं।
हमारी लाइफ की quality के साथ-साथ हमारी उम्मीदें भी बढ़ती जाती हैं, लेकिन ख़ुश रहने का सीक्रेट है रीयलिस्टिक उम्मीदें रखना। ऐसा करने से, अच्छे या बुरे रिज़ल्ट को एक्सेप्ट करना आपके लिए आसान हो जाएगा। हमारे पास जो कुछ है उसके लिए हमें शुक्रगुज़ार होना चाहिए और खुद को दूसरों से compare नहीं करना चाहिए।
Overnight Tragedies and Long-Term Miracles
23 सितम्बर, 1955 को US के फॉर्मर प्रेसिडेंट, ड्वाईट आइज़नहावर ने लंच में एक बर्गर खाया। कुछ घंटों बाद, उन्हें चेस्ट में तेज़ दर्द हुआ जिससे वो घबरा गए। आइज़नहावर को लगा कि प्याज़ से उनके सीने में जलन हो रही थी, लेकिन असल में उन्हें हार्ट अटैक आ रहा था।
आइज़नहावर की उस रात मौत तो नहीं हुई लेकिन उन्हें कई घंटों में सीने में दर्द होता रहा, लेकिन उन्हें फिर आराम हो गया। वो उन 7000 अमेरिकंस में से एक नहीं थे जिनकी उस साल दिल की बीमारी से मौत हो गई थी।
1950 के दशक से, दिल की बीमारी से मरने वाले अमेरिकंस की संख्या, 70% कम हो गई है। इस बीमारी का ट्रीटमेंट पहले से इतना बेहतर हो गया है कि पिछले 70 सालों में 25 मिलियन अमेरिकंस की जान बच गई है।
अगर दवाई के फील्ड में प्रोग्रेस नहीं हुआ होता तो हर साल दिल की बीमारी से पांच लाख लोग मारे जाते। ये नंबर बहुत बड़ा है, है ना? हम इस बात को एक ब्लैसिंग मानकर इसका जश्न क्यों नहीं मना रहे हैं? ऐसा इसलिए क्योंकि ये प्रोग्रेस इतने धीरे हुई है कि हमने इसे नोटिस ही नहीं किया।
1950 से 2014 तक, दिल की बीमारी से मरने वालों में एवरेज गिरावट, 1.5% है। क्या आपको लगता है कि आप इस 1.5% बदलाव को देख पाते? क्या आपको लगता है कि न्यूज़पेपर इस बारे में कुछ भी लिखते?
ऐसा नहीं होगा। लेकिन, ये इंसान के नेचर में है। नई टेक्नोलॉजी को लोगों की नज़र में आने में कई साल लग जाते हैं और उसे अपनाने और यूज़ करने में कई और साल लग जाते हैं। कोई भी नया गैजेट या इनोवेशन नहीं है जिसे आम आदमी तुरंत इस्तेमाल करने लगता है।
Medicine के फील्ड में, जर्म्स की खोज करने और इस बात को मानने के बीच कि जर्म्स से बीमारियाँ होती हैं, दो सौ साल का समय लगा। इसके 60 साल बाद जाकर, पेनिसिलिन का इस्तेमाल शुरू हुआ।
ऐसा ही कुछ, इकॉनोमिक ग्रोथ के साथ हुआ। पिच्च्ली सेंचुरी में, US का GDP आठ गुना बढ़ गया था, जो बहुत बड़ी प्रोग्रेस है। लेकिन, लोगों ने इस बात को नोटिस नहीं किया क्योंकि GDP हर साल 3% के रेट से बढ़ा था।
लोगों का नज़रिया सिर्फ उन चीज़ों से बनता है जो उनके जनरेशन के दौरान होता है, इसलिए वो लॉन्ग-टर्म में होने वाले चमत्कार को देख नहीं पाते हैं और उनकी कद्र नहीं करते हैं। ऐसा ही बिज़नस, रिलेशनशिप, करियर और सोसाइटी में भी होता है। प्रोग्रेस करने में वक़्त लगता है और इस बात का एहसास हमें बहुत कम होता है।
दूसरी तरफ, बुरे इवेंट्स पलक झपकते ही हो जाते हैं और हम अक्सर इनके लिए तैयार नहीं होते। COVID-19 महामारी, 11 सितम्बर का टेररिस्ट अटैक और 2008 का इकॉनोमिक रिसेशन, इसके कुछ एग्ज़ाम्पल हैं। लेहमन ब्रदर्स नाम का बैंक, 2008 में, 158 साल पुराना हो चुका था। फिर भी, उस साल अपने highest लेवल पर पहुँचने के बाद भी बैंक का दिवाला निकल गया।
जो चीज़ें सालों से सक्सेसफुल रही हैं, कुछ ही मिनटों में बर्बाद हो सकती हैं। इसे ओवरनाईट यानी रातोंरात होने वाली ट्रेजेडी और लॉन्ग-टर्म मिरेकल यानी चमत्कार कहते हैं।
इसका कारण ये है कि ग्रोथ को टॉप पर पहुँचने के लिए कई चैलेंजेज़ से होकर गुज़रना पड़ता है। नए आइडियाज़ पर बहस की जाती है, ऊंची बिल्डिंग्स को ग्रैविटी के ख़िलाफ़ जाना पड़ता है और नए बिज़नस मॉडल को पुराने बिज़नस मॉडल के सामने रिजेक्ट कर दिया जाता है।
दूसरी तरफ, डिक्लाइन यानी गिरावट, पलक झपकते ही हो जाती है। लोग नीचे की तरफ का रास्ता खाली कर देते हैं और रास्ते से हट जाते हैं। इसलिए, ग्रोथ लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचता है। दूसरी तरफ, डिक्लाइन में किसी का इन्ट्रेस्ट ही नहीं होता है।
जब करोड़ों फैक्टर्स सही जगह इकट्ठे हुए होंगे तब जाकर इंसान बना होगा। पांच हफ़्तों के ह्यूमन एम्ब्र्यो में, दिल, ब्रेन, लीवर, पैंक्रियास और गॉलब्लैडर होता है। जब ये पैदा होता है तो एक बच्चे के 11 ऑर्गन सिस्टम होते हैं, 100 billion neurons और एक personality भी होती है।
एक बच्चे का जन्म लेना बहुत कॉम्प्लेक्स प्रोसेस होता है और मौत बहुत सिंपल होती है। दिल की बीमारी, स्ट्रोक, कैंसर, इन्फेक्शन और ड्रग ओवरडोज़ जैसे मौत के कारण, ऑक्सीजन और खून की कमी के कारण होते हैं। ये अलग-अलग बीमारी हो सकते हैं, लेकिन आखिर में ऐसा तभी होता है जब ज़रूरी जगह तक पूरा ऑक्सीजन या खून नहीं पहुँचता है।
प्रोग्रेस धीरे-धीरे होती है और इसे नोटिस नहीं किया जाता, जबकि डिक्लाइन तुरंत होता है और साफ-साफ़ दिखाई देता है। दुनिया ऐसे ही काम करती है। कुछ और चीज़ें भी हैं, जो हमें याद रखनी चाहिए। प्रोग्रेस ऐसी चीज़ों की होती है, जो कभी हुई ही नहीं हैं और डिक्लाइन ऐसे चीज़ों का होता है, जो हुई हैं।
जैसे, अच्छी खबर आपको हमेशा ऐसी बीमारियों की ही मिलती है जो आपको कभी हुई ही नहीं, या फिर ऐसी ट्रेजेडी के बारे में जो टल गईं, ऐसी लड़ाइयों के बारे में जो कभी लड़ी नहीं गई और ऐसी मौत के बारे में जो हुई ही नहीं।
दूसरी तरफ, बुरी खबर हमेशा ज़्यादा साफ़ दिखाई देती है और शॉकिंग होती है। जैसे, लड़ाईयां, टेररिस्ट अटैक, स्टॉक मार्केट क्रैश और कार एक्सीडेंट, जो हुए हैं।
हमारे लिए एक और सबक ये है कि प्रोग्रेस को अंडरएस्टीमेट करना बहुत आसान होता है। जैसे, अगर आपको कोई कहे कि एक एवरेज अमेरिकन अगले 50 साल में आज की तुलना में दो गुना ज़्यादा अमीर होगा तो आप इस बात को नहीं मानेंगे क्योंकि ये नंबर कुछ ज़्यादा ही बड़ा है।
लेकिन, सोचिए कि अगर आपको कोई कहे कि अमेरिकंस अगले 50 साल में 1.4% annual ग्रोथ अचीव कर सकता है तो? आप शायद सोचेंगे कि ऐसा हो सकता है। आप शायद इस बात को मान जाएंगे और कहेंगे कि ये रेट इससे ज़्यादा भी हो सकता है।
50 साल में दो गुना ज़्यादा अमीर होना और अगले 50 साल में 1.4% annual ग्रोथ रेट, एक ही बात है। लेकिन, आपको इस बात पर यकीन करने में मुश्किल होगी। इसलिए, आपको लॉन्ग-टर्म मिरेकल्स के बारे में ज़्यादा पता होना चाहिए और ओवरनाईट ट्रेजेडीज़ के लिए तैयार रहना चाहिए।
Tiny and Magnificent
ज़्यादातर लोग मानते हैं कि बड़े देश, बड़ी कंपनियां और बड़े इनोवेशन ही बड़े खतरे और बड़ी opportunities लेकर आते हैं, लेकिन ऐसा मानना आमतौर पर गलत होता है।
जैसे, 2015 में येल यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने पाया कि मोटापे का असली कारण बड़े मील खाना नहीं है बल्कि इसका सही जवाब ये है कि लोग पूरे दिन में कई बार छोटे-छोटे स्नैक्स खाते हैं।
इसलिए, छोटे-छोटे रिस्क को नज़रंदाज़ करना आसान होता है। लेकिन, वो वक़्त के साथ बढ़ते रहते हैं और बड़े रिस्क बन जाते हैं। ऐसा ही उन छोटे-छोटे और कंसिस्टेंट एफर्ट्स के साथ भी होता है जिनकी वजह से कुछ वक़्त के बाद आपको एक्स्ट्राऑर्डिनरी रिजल्ट मिलता है।
एक बार, Russians ने ऐसा bomb बनाया था जो उस न्यूकलियर bomb से 1500 गुना ज़्यादा पावरफुल था जिसने हिरोशिमा को तहस-नहस कर किया था। इस bomb का नाम “Tsar Bomba” था, जिसका मतलब है bomb का राजा। इसे russia में टेस्ट किया गया था और इसके आग के गोले को 600 मील दूर तक देखा गया था। इसका मशरुम का बादल, आसमान में 42 मील तक फ़ैल गया था।
सबसे पहला न्यूकलियर bomb, सेकंड वोर्ल्स वॉर को ख़त्म करने के लिए बनाया गया था। उस दौरान, हमारे पास इतने न्यूकलियर bomb थे कि हम पूरी दुनिया को नष्ट कर सकते थे। लेकिन, सभी देश इसे बहुत सोच समझकर इस्तेमाल करते थे क्योंकि उन्हें इस बात का डर था कि बदला लेने के लिए दुश्मन उन पर भी वैसा ही हमला करेगा।
1960 तक, कई देश की गवर्नमेंट ने इसके हल के बारे में सोचा। उन्होंने छोटे और कमज़ोर न्यूकलियर bomb बनाने का ऑर्डर दिया। ‘डेवी क्रोकेट’ नाम का bomb, हिरोशिमा पर गिराए गए bomb से 650 गुना कमज़ोर था। इसे एक जीप के पीछे से आसानी से छुपकर फायर किया जा सकता था।
कुछ न्यूकलियर bomb जूते के डिब्बे जितने छोटे थे या एक बैकपैक में फिट हो सकते थे। गवर्नमेंट को लगा था कि ये छोटे bomb कम खतरनाक थे, लेकिन इनका इस्तेमाल बड़े bomb से ज़्यादा किया जा सकता था।
गवर्नमेंट ने सोचा कि छोटे bomb का इस्तेमाल ज़्यादा जिम्मेदाराना तरीके से और इंसानियत को मददेनज़र रखते हुए किया जा सकता था। लेकिन, इससे सिर्फ दोनों तरफ बदले की भावना और बढ़ जाती और आखिरकार उन्हें बड़े न्यूकलियर bomb का इस्तेमाल करना ही पड़ता। इसलिए, छोटे रिस्क से बड़े रिस्क ट्रिगर होते हैं।
ऐसे छोटे रिस्क जो वक़्त के साथ बड़े बन जाते हैं, उन्हें नज़रंदाज़ करना आसान होता है। 1929 में, किसी ने भी द ग्रेट डिप्रेशन के होने की प्रेडिक्शन नहीं की थी। किसी को भी ये अंदाज़ा नहीं था कि स्टॉक मार्केट में 90% की गिरावट आएग और अनएम्प्लॉयमेंट रेट 25% हो जाएगा।
1920 के दशक के आखिर में, स्टॉक मार्केट overvalued था यानी उसकी वैल्यू ज़रुरत से ज़्यादा थी। इसके अलावा, खेतों की खराब मेंटेनेंस और रियल एस्टेट की सट्टेबाजी का मुद्दा भी चल रहा था। फिर भी, किसी को पता नहीं लगा कि द ग्रेट डिप्रेशन का दौर आने वाला है।
1929 में, स्टॉक की कीमत अचानक से गिर गई। ऐसे आंत्रप्रेंयूर्स जो अपना मॉर्गेज नहीं चुका पाए थे उनका पैसा डूब गया और उन्होंने लोगों को अपनी कंपनी से निकाल दिया। बैंक दिवालिया हो गए, और लोगों की सारी सेविंग्स डूब गई। लोगों ने पैसा खर्च करना बंद कर दिया और सारे बिज़नस फेल हो गए। इस तरह, पूरी इकॉनमी नीचे चली गई।
COVID-19 महामारी के दौरान भी ऐसा ही हुआ था। जानवरों से आए एक नए वायरस में म्युटेशन यानी बदलाव होकर इंसानों को इंफेक्ट करना एक आम बात है। लेकिन, कोरोनावायरस बहुत तेज़ी से फ़ैल रहा था, खासकर मॉडर्न ट्रांसपोर्टेशन के कारण।
इस बुरी खबर पर कंट्रोल पा लिया गया और लोगों को फ़िक्र ना करने के लिए कहा गया। गवर्नमेंट ने सोचा था कि वो इस वायरस को फैलने से रोक लेंगे इसलिए उन्होंने तुरंत कुछ नहीं किया। लोगों को इसके लिए तैयार नहीं किया गया और बाद में लॉकडाउन लगाना पड़ा। हम तब घबरा गए जब बहुत देर हो चुकी थी और वायरस पहले से ही फ़ैल चुका था।
ये मान लेना ही बेहतर होगा कि ऐसे वर्ल्ड डिज़ास्टर, हर दशक में एक बार तो ज़रूर होगा। हिस्ट्री में ऐसा पैटर्न देखा गया है। लेकिन, ये डिज़ास्टर हमें इतनी कम प्रोबबिलिटी के इवेंट लगते हैं कि हम सोचते हैं कि ये कभी नहीं होंगे।
लेकिन ये हो जाते हैं और हम इसके लिए तैयार नहीं होते क्योंकि असल में ये छोटे और हाई-प्रोबबिलिटी वाले इवेंट हैं जो वक़्त के साथ बढ़ते जाते हैं। इसलिए, हमें छोटे रिस्क को अंडरएस्टीमेट करके नज़रंदाज़ नहीं करना चाहिए।
Compounding का एक और अच्छा एग्ज़ाम्पल है, evolution। इंसान, करोड़ों सालों में एक सिंगल-सेल वाले organism यानी जीव से धीरे-धीरे एक ऐसा कॉम्प्लेक्स जीव बन गया है जो आज स्मार्टफोन बना सकता है।
Evolution, पिच्च्ले 3.8 billion सालों से हो रहा है, लेकिन हम नेचुरल सिलेक्शन के इफ़ेक्ट को नोटिस नहीं कर पाए क्योंकि ये एक स्लो प्रोसेस है जिसमें बहुत लम्बा समय लगता है।
अगर आप इसी बात को इंवेस्टमेंट में अप्लाई करेंगे तो आपको short टर्म और हाई return के पीछे नहीं जाना चाहिए। आपको इतने रिटर्न पर फोकस करना चाहिए जो आपको कई दशकों तक लगातार मिलता रहे। Compounding का जादू, ऐसे ही काम करता है।
Elation and Despair
ज़िन्दा रहने के लिए pessimism का होना ज़रूरी है, यानी किसी भी चीज़ के नेगेटिव साइड को देखने की tendency होना या ये सोचना की बुरा ही होगा। ये कोई दुर्घटना होने से पहले हमें उसके लिए तैयार करता है।
Optimism यानी आशावादी होना भी ज़रूरी है यानी फ्यूचर को लेकर पॉजिटिव सोच या उम्मीद रखना। लॉन्ग-टर्म रिलेशनशिप या इंवेस्टमेंट को बनाए रखने के लिए हमें इस बात पर विश्वास करने की ज़रुरत है कि भले ही चैलेंजेज़ कैसे भी हों लेकिन आखिर में जाकर हमारी सिचुएशन बेहतर हो जाएगी।
प्रोग्रेस करने के लिए optimism और pessimism, दोनों की ज़रुरत होती है। ये माइंडसेट एक दूसरे से बिल्कुल उल्टे हैं, लेकिन दोनों के बीच बैलेंस ढूँढना, एक इम्पोर्टेन्ट लाइफ स्किल है।
बेस्ट फाइनेंसियल प्लान वो है जिसमें आप ऑपटिमिस्ट की तरह इंवेस्ट करते हैं और pessimist की तरह पैसे सेव करते हैं। ज़िंदगी के दूसरे एरिया में भी, optimism और pessimism के बीच बैलेंस बनाने की ज़रुरत होती है।
वियतनाम की जंग के हाईएस्ट रैंकिंग वाले अमेरिकन कैदी, एडमिरल जिम स्टॉकडेल, ने अपना एक्सपीरियंस शेयर करते हुए बताया था कि उन्हें रोज़ टॉर्चर किया जाता था और एक बार तो जिम ने खुद को मारने की कोशिश भी की यही क्योंकि उन्हें डर था कि वो अपने दुश्मनों के सामने मिलिट्री की हाई लेवल information उगल देंगे।
उसके सालों बाद, जिम का इंटरव्यू लिया गया और उनसे पूछा गया कि उस जंग के एक कैदी के रूप में उनकी जिंदगी कितनी depressing रही होगी। लेकिन, जिम ने कहा कि उन्हें कभी डिप्रेस्ड महसूस नहीं हुआ। जिम ने ये उम्मीद नहीं खोई थी कि एक दिन वो आज़ाद हो जाएँगे और अपने घरवालों से फिर से मिल पाएंगे।
उससे ये भी पूछा गया कि ऐसा कौन था जिसका जेल में सबसे बुरा एक्सपीरियंस रहा था। जिम ने कहा कि उन optimists का जो मानते ये थे कि जल्द ही सब ठीक हो जाएगा। वो लोग मानते थे कि क्रिसमस से पहले वो आज़ाद हो जाएंगे, लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो उनका दिल टूट गया और उनमें जीने की इच्छा ही मर गई क्योंकि क्रिसमस आकर चला गया था और वो अभी भी जेल में ही थे।
जिम की तरह आपको भी optimistic बनना होगा कि बुरा वक़्त आखिरकार ज़रूर ख़त्म होगा। आपको एक रीयलिस्टिक pessimist बनना होगा, जो रोज़ चैलेंजेज़ को एक्सेप्ट करके उनका सामना करता है। आपको एक pessimist की तरह प्लानिंग करनी चाहिए और एक optimistic की तरह सपने देखने चाहिए।
1931 में, जेम्स ट्रस्लो एडम्स ने अपनी बुक “द एपिक ऑफ़ अमेरिका” में ‘अमेरिकन ड्रीम’ phrase को introduce किया था। ये, द ग्रेट डिप्रेशन का दौर था।
इसमें जेम्स ने लिखा था कि अगर एक एवरेज आदमी के पास कुछ ख़ास स्किल्स हों तो वो काम कर सकता है, पैसा कमा सकता है और अपनी फैमिली को लो से मिडिल क्लास के लेवल तक पहुँचा सकता है। उस वक़्त, अनएम्प्लॉयमेंट रेट 25% था और अमीर और गरीब लोगों के बीच का फर्क, अमेरिकन हिस्ट्री में सबसे ज़्यादा था।
जेम्स ने सभी नागरिकों के लिए बेहतर, अमीर और खुशहाल ज़िंदगी के “अमेरिकन ड्रीम’ के बारे में भी लिखा था, लेकिन उस वक़्त पूरे देश में खाने को लेकर बहुत दंगे हो रहे थे।
जेम्स ने ये भी लिखा कि अमेरिकन आदमी और औरत, अपने फुल पोटेंशियल तक पहुँच सकते थे। उन्होंने स्कूल और दूसरी पब्लिक जगहों पर, लोगों को उनके रंग के हिसाब से अलग-अलग करने के बावजूद भी, इस बारे में बात की।
1930 का द ग्रेट डिप्रेशन, अमेरिकन हिस्ट्री का वो वक़्त था, जब ऐसा लग रहा था कि अमेरिका का ये सपना नामुमकिन है और उनकी पहुँच से बाहर है। लेकिन, जेम्स की बुक फिर भी बेस्ट सेलर साबित हुई और “अमेरिकन ड्रीम” का phrase पॉपुलर हो गया।
उस समय, हर चार लोगों में से एक के पास जॉब नहीं थी और स्टॉक मार्केट में 89% की गिरावट आई थी। फिर भी, लोग अमेरिकन ड्रीम में विश्वास करते रहे क्योंकि वो उम्मीद का दामन थामकर बेहतर महसूस करना चाहते थे। अमेरिकन ड्रीम के आईडिया ने, ग्रेट डिप्रेशन से निकलने में लोगों की बहुत मदद की।
साइकोलॉजी में, “depressive realism” नाम का एक कॉन्सेप्ट है। इसका मतलब है कि डिप्रेस्ड लोग दुनिया को ज़्यादा सही नज़रिए से देखते हैं क्योंकि वो ज़िंदगी की परेशानियों को करीब से समझते हैं या बहुत रीयलिस्टिक होते हैं।
इसका opposite कॉन्सेप्ट है “blissfully unaware”। ऐसा माइंडसेट, कई लोगों का है। लेकिन, इससे उन पर कोई असर नहीं होता है क्योंकि उन्हें ठीक महसूस होता है। सिचुएशन कितनी भी मुश्किल क्यों ना हो, लेकिन blissfully unaware रहने से लोगों को आगे बढ़ते रहने में मदद मिलती है।
1984 में, जब बिल गेट्स 28 साल के थे तो उनका इंटरव्यू लिया गया था। इंटरव्यू लेने वाले ने कहा, “कई लोग कहते हैं कि आप एक जीनियस हैं। ये आपके लिए embarrassing हो सकता है, लेकिन.....”
ये सुनकर बिल गेट्स ने रियेक्ट नहीं किया। उनका चेहरा बिल्कुल ब्लैंक था और उन्होंने ना कोई जवाब दिया और ना कोई इमोशन दिखाया। बिल गेट्स जानते थे कि वो एक जीनियस हैं और उन्हें अपने स्किल्स पर पूरा कॉन्फिडेंस था। उनके को-फाउंडर, पॉल एलेन का कहना था कि बिल गेट्स, स्मार्ट, competitive और पक्के इरादे वाले शख्स थे।
लेकिन, इस strong कॉन्फिडेंस के बावजूद, वो सनकी किस्म के थे। बिल गेट्स, optimistic और pessimistic दोनों हैं। वो इस बात का हमेशा ध्यान रखते थे कि माइक्रोसॉफ्ट के बैंक अकाउंट में इतना पैसा तो हो कि वो बारह महीने बिना पैसा कमाए भी आराम से कंपनी को चला सकें।
1995 में, बिल गेट्स ने कहा था कि टेक्नोलॉजी इतनी तेज़ी से बदलती है कि माइक्रोसॉफ्ट के फ्यूचर की कोई गारंटी नहीं है। उन्होंने उन एम्प्लोयीज़ के बारे में भी सोचा जो उम्र में उनसे बड़े थे और अपनी फैमिलीज़ के लिए पैसा कमा रहे थे। बिल गेट्स, हमेशा इस बात की फ़िक्र किया करते थे कि “अगर कंपनी के पास अपने एम्प्लोयीज़ की सैलरी देने के लिए पैसा नहीं बचा तो क्या होगा?”
इसी वजह से, बिल गेट्स हमेशा अपने बैंक में एक साल के जितना इमरजेंसी फंड रखा करते थे। वो इस बात को बखूबी समझते थे कि लॉन्ग टर्म के लिए optimism ज़रूरी था और शोर्ट-रन में टिके रहने के लिए pessimism ज़रूरी था।
दूसरा इम्पोर्टेन्ट आईडिया ये है कि optimism और pessimism एक ही स्पेक्ट्रम पर होते हैं। एक तरफ, वो pure optimists हैं जो मानते हैं कि सब कुछ हमेशा बढ़िया रहेगा। वो इतने कॉंफिडेंट हैं कि कुछ भी गलत नहीं होगा।
दूसरी तरफ, वो pessimist हैं जो मानते हैं कि हर चीज़ उनके लिए कोई न कोई मुसीबत लेकर आएगी। वो इतने होपलैस है कि सोचते हैं कि कुछ भी ठीक नहीं होगा। दोनों ही सोच, रियलिटी यानी हकीकत से कोसों दूर है और साथ ही खतरनाक भी है।
आपको बीच में होना चाहिए। सबसे अच्छी जगह वो है, जहाँ आप रैशनल optimists को देख सकते हैं। इसका मतलब ऐसे लोग है जो इस बात को मानते हैं कि ज़िंदगी में problems और चैलेंजेज़ आते रहते हैं। लेकिन, वो ये भी जानते हैं कि चीज़ें हमेशा मुश्किल नहीं रहतीं हैं। वो मुश्किलों से बाहर निकलते हैं और हमेशा आगे बढ़ने के बारे में सोचते हैं।
सक्सेसफुल करियर, रिलेशनशिप, बिज़नस, इंवेस्टिंग जैसी चीज़ों को पाने का एक ही रास्ता है, रैशनल optimist बनना। आपको शोर्ट-टर्म चैलेंजेज़ में सर्वाइव करना है और लॉन्ग-टर्म ग्रोथ का रिवॉर्ड पाने के लिए लंबे समय तक टिके रहना होगा।
It’s Supposed to Be Hard
1846 में, नई शुरुआत और बेहतर ज़िंदगी की उम्मीद के साथ 87 लोग इलेनॉइस स्प्रिंगफील्ड से पैदल ही कैलिफ़ोर्निया जाने के लिए निकल पड़े। उन्हें डोनर फैमिली लीड कर रही थी, जिन्हें हिस्ट्री में डोनर पार्टी के नाम से जाना जाता है।
ये सफ़र बहुत खतरनाक था। उन पर नेटिव अमेरिकंस की नाराजगी, बीमारियों और खराब मौसम का खतरा मंडराता रहता था। कुछ महीनों में, डोनर पार्टी ने आधा रास्ता तय कर लिया था।
रास्ते में उनकी मुलाक़ात ऑहियो के एक explorer लैंसफोर्ड हेस्टिंग्स से हुई जिसने उन्हें बताया कि एक शॉर्टकट रास्ता है जो उन्हें तीन दिन पहले अपनी मंज़िल तक पहुँचा सकता है। ये शॉर्टकट Utah से था, जो southern इडाहो से आपको बचाते हुए निकलता था और जो आजकल काफी पॉपुलर है।
डोनर पार्टी उसकी बात मानकर शॉर्टकट रास्ते पर चल पड़ी, लेकिन जल्द ही उन्हें इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ा। वो शॉर्टकट रास्ता ज़्यादा लंबा था और मुश्किल भी था। उन्हें भयंकर गर्मी में, ग्रेट salt लेक डेज़र्ट से होकर गुज़रना पड़ा।
डोनर पार्टी के पास पानी ख़त्म हो गया था और चिलचिलाती गर्मी में उनके ज़्यादातर बैल मर गए थे। इस शॉर्टकट की वजह से, उन्हें अपने सफ़र को पूरा करने में एक महीना ज़्यादा लगा और इससे उनकी हालत और ख़राब हो गई थी।
डोनर पार्टी को, सर्दियों के मौसम में सिएरा Nevada की पहाड़ियों को पार करना पड़ा। वो अपने original प्लान के हिसाब से autumn के मौसम में वहाँ नहीं पहुँच पाए थे। 1847 की सर्दियाँ, हिस्ट्री की सबसे ठंडी सर्दियों में से एक थी। डोनर पार्टी को 20 फीट ऊंची बर्फ़बारी का सामना करना पड़ा।
उस पार्टी में ज़्यादातर लोग 18 साल से कम उम्र के थे। उन्होंने एक कैंप बनाने का फैसला किया और सर्दियाँ निकलने का इंतज़ार किया। लेकिन, डोनर पार्टी जल्द ही भूख से तड़पने लगी और दिन गुज़रते-गुज़रते, उनके कई लोग मारे लगे।
बाकी बचे लोगों ने, जिंदा रहने के लिए जो हो सका वो किया। वो मरे हुए लोगों का माँस खाने लगे। डोनर पार्टी ने डेड बॉडीज़ पर नाम लगा दिए ताकि वो अपने ही रिश्तेदारों को ना खाएं। उनके पास और कोई चारा नहीं था। उन्होंने इंसान का माँस खाया क्योंकि इनके अलावा उनके पास कुछ भी नहीं था।
उनके साथ ये सब इसलिए हुआ था क्योंकि डोनर पार्टी ने शॉर्टकट लेना चुना था। सबसे इम्पोर्टेन्ट लाइफ स्किल ये है कि आप आसान रास्ता खोजने के बजाए दर्द को सहन सीखें। ज़िंदगी भले ही मुश्किल है, लेकिन मेहनत हमेशा रंग लाती है।
मान लीजिए कि आपने हैशटैग्स, थ्रेडिंग पोस्ट और ट्विटर पर पोस्ट करने का बेस्ट टाइम सिखाने वाले तीन घंटे के सेशन के लिए एक सोशल मीडिया कंसलटेंट को हायर किया है। वैसे तो सब कुछ अच्छा रहा, लेकिन उस कंसलटेंट ने आपको सबसे वैल्युएबल सोशल मीडिया टिप नहीं सिखाई, जो था अच्छा कंटेंट बनाते रहना।
कंटेंट क्रिएटर बनने में वक़्त और एफर्ट लगता है, इसलिए आपको कंसिस्टेंट, यूनीक और क्रिएटिव बनना होगा। ये सारा एफर्ट, ज़रूर रंग लाता है। हाई quality कंटेंट, आपको एक सक्सेसफुल सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर बनाता है।
ऐसा ही हेल्थ, फिटनेस, पर्सनल फाइनेंस, मार्केटिंग जैसी फील्ड में भी होता है। सभी शॉर्टकट या फिर इंस्टेंट solution चाहते हैं, लेकिन ये लोग इसलिए फेल हो जाते हैं क्योंकि सक्सेस पाने के लिए आपको मेहनत करनी ही पड़ती है।
मुश्किल रास्ता ही हमेशा सही रास्ता होता है। अगर आप सक्सेसफुल होना चाहते हैं तो आपको अपने एफर्ट को डबल करना होगा और मुश्किलों को सहना होगा। आपको ऐसी चीज़ें करनी होंगी जो आपको पसंद नहीं है क्योंकि ये इस प्रोसेस का ही हिस्सा है। आपको सभी मुश्किलों, चैलेंजेज़ और ख़राब चीज़ों का डटकर सामना करना होगा।
आपके सामने गलत लोग, ऑफिस पॉलिटिक्स, ब्यूरोक्रेसी, अनसर्टेनिटी, फेलियर जैसी चीज़ें आ सकती हैं, लेकिन अगर आप अपनी जॉब या बिज़नस में सक्सेसफुल होना चाहते हैं तो आपको इन चीज़ों को पार करना होगा।
वो कहते हैं ना, “नो पेन, नो गेन,” इसलिए आपको मुश्किलों और इनएफिशिएंसी को अपने डेली रूटीन का हिस्सा मानकर उन्हें अपनाना होगा। आपको फ्यूचर में अच्छे रिज़ल्ट पाने के लिए सब्र रखना होगा और अपना बेस्ट देते रहना होगा।
Conclusion
सबसे पहले, आपने ये जाना कि सबसे बड़ी ट्रेजेडी वो होती है जिनकी भविष्यवाणी हम कभी नहीं कर सकते। इसलिए, हमें पहले से तैयारी कर लेनी चाहिए, खासकर उन रिस्क्स के लिए जिनके बारे में हम सोच भी नहीं सकते।
दूसरा, आपने जाना कि रीयलिस्टिक उम्मीदें रखने से ही आप खुश रह सकते हैं। आपके पास जो कुछ भी है आपको उसमें खुश रहना चाहिए और खुद को दूसरों से compare नहीं करना चाहिए।
तीसरा, आपने जाना कि प्रोग्रेस धीरे-धीरे होती है, लेकिन डिक्लाइन पलक झपकते ही हो जाता है। आपको प्रोग्रेस को appreciate करना चाहिए और डिक्लाइन के लिए खुद को तैयार करना चाहिए।
चौथा, आपने जाना कि लोग छोटे-छोटे रिस्क को आसानी से नज़रंदाज़ कर देते हैं। लेकिन, अगर वो ऐसे ही इकट्ठी होती रहे तो इनकी वजह से आपको बड़ी प्रॉब्लम का सामना करना पड़ सकता है। दूसरी तरफ, अगर आप लंबे समय तक कंसिस्टेंट एफर्ट्स करते रहे तो आप बड़े रिज़ल्ट अचीव कर सकते हैं।
पांचवा, आपने optimist और pessimist के बारे में जाना। आपको एक ऐसा रैशनल optimist बनना होगा, जो डेली चैलेंजेज़ को एक्सेप्ट करता है और बेहतर फ्यूचर के लिए हमेशा आगे बढ़ता रहता है।
छठा, आपने सीखा कि सक्सेसफुल होने के लिए आपको मेहनत करनी होगी और चैलेंजेज़ को पार करना होगा। प्रॉब्लम तो इस जर्नी का एक हिस्सा है। ये आपको और मज़बूत और सख्त बनाता है।
अनसर्टेनिटी हमें परेशानी करती है और डराती है। हम में से कई लोग ज़्यादा information लेकर और ज़्यादा एक्यूरेट फोरकास्ट के ज़रिए इससे लड़ने की कोशिश करते हैं, लेकिन पास्ट से सीखना और बड़े पैटर्न्स को देखना ज़्यादा असरदार होता है।
हिस्ट्री की बुक्स पढ़िए, बड़े-बड़े डिज़ास्टर्स के बारे में जानिए और ह्यूमन बिहेवियर को समझिए। इस समरी में दी गई हमेशा काम आने वाली नॉलेज, आपको अनसर्टेनिटी से बचाएगी और किसी भी चीज़ का सामना करने लिए आपको तैयार करेगी।