Bechne Ka Sabse Alag Tareeka Book

Bechne Ka Sabse Alag Tareeka

How to Sell Without Selling (Hindi)
आपके बिज़नेस को एक नया और अनोखा दृष्टिकोण देने वाली बुक।

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THE ROAD TO CHARACTER in Hindi



THE ROAD TO CHARACTER

David Brooks

इंट्रोडक्शन

ज़्यादातर सक्सेसफुल लोग  ख़ुश नहीं हैं।
ये बहुत ही शॉकिंग बात है, लेकिन सच भी है। ज़्यादातर ओवरअचीवर्स अपने गोल्स पर फोकस करते हैं। वो पावरफुल कंपनियां बनाने, बेहतर जॉब ढूँढने, प्रमोशन पाने या ज़्यादा मंहगी गाड़ी खरीदने के लिए लड़ते रहते हैं। ये सभी कोशिशें बहुत सेल्फिश हैं। इससे आपको कुछ हासिल नहीं होगा क्योंकि इसमें ना तो आप दूसरों की मदद करते हैं और ना ही किसी बड़े मकसद  के लिए काम करते हैं।  

हमारे यहाँ हार्ड वर्क करने और सक्सेसफुल होने का कल्चर रहा है, लेकिन सक्सेस  इंटर्नल  हो सकती है या फिर एक्सटर्नल। आप अपनी इनर ग्रोथ को नज़रंदाज़ नहीं कर सकते। अगर आप इनर पीस यानी मन की शांति और फुल्फिल्मेंट यानी संतुष्टि पाने की कोशिश नहीं करेंगे तो आप कभी किसी चीज़ को एन्जॉय नहीं कर पाएंगे। 

ये समरी, अपने इनर साइड से दोबारा कनेक्ट करने के लिए एक वेक-अप कॉल यानी warning है।

 
अगर आप एक्सटर्नल वर्ल्ड में अचीवमेंट ढूँढ़ते हैं तो ये समरी आपका माइंड बदल देगी। आप अपनी ह्युमिलिटी यानी विनम्रता, पर्पस और डिग्निटी को दोबारा ढूँढना सीखेंगे। आप ये भी सीखेंगे कि हेल्दी रिलेशनशिप कैसे बनाएं और अपने इमोशंस को कंट्रोल कैसे करें। 
तो क्या आप अपने मन के दुश्मनों से लड़ने के लिए तैयार हैं?

The Shift


ह्युमिलिटी का मतलब क्या है?
ह्युमिलिटी का मतलब है हंबल यानी विनर्म होना। जब आप डाउन टू अर्थ होते हैं और खुद को दुनिया का सबसे इम्पोर्टेन्ट इंसान नहीं मानते तो इसका मतलब है कि आप हंबल हैं। इसका मतलब ये समझना भी है कि सभी लोग equal यानी समान हैं. 

हम सभी में अपनी-अपनी ताकत और कमजोरियां होती हैं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि आप खुद को दूसरों से कम समझें। इसका मतलब सिर्फ़ ये है कि आपको अपनी insecurity को कुछ सीखने, फ़ीडबैक लेने और दूसरों की मदद करने से रोकने नहीं देना चाहिए। 

सेकंड वर्ल्ड वॉर के वक़्त की जनरेशन को ह्यूमिलिटी की इम्पोर्टेंस समझ में आई थी। जंग जीतने के बाद भी लोगों ने अपनी जीत का दिखावा नहीं किया बल्कि वो इस बात के लिए शुक्रगुज़ार थे कि वो जिंदा और भले-चंगे थे।   

1945 में, US में कमांड परफॉरमेंस रेडियो प्रोग्राम ब्रॉडकास्ट किया गया था, लेकिन उसके होस्ट ने जापान पर अपनी जीत का कोई दिखावा नहीं किया। लोगों को बधाईयाँ देने के बजाए वो इस बात के लिए ज़्यादा शुक्रगुज़ार थे कि जंग ख़त्म हो गई थी। उन्होंने उस कलेक्टिव पावर और एकजुट होकर किए गए एफर्ट्स की बात की जिनकी वजह से उन्हें ये जीत मिली थी।  

लोगों ने जंग की वजह से हंबल होना नहीं सीखा था। ये वैल्यूज़ उनके कल्चर में पहले से ही रचा-बसा हुआ था। उस समय की सोसाइटी, विनम्र, एक-दूसरे की मदद करने वाली और एक दूसरे से जुड़ी हुई हुआ करती थी। उस वक़्त लोग पर्सनल सक्सेस के पीछे नहीं भागते थे। जंग ख़त्म होने के बाद के रिएक्शन में इन वैल्यूज़ की झलक साफ़-साफ़ नज़र आ रही थी।     

आज, सोसाइटी और वैल्यूज़ दोनों ही बदल गए हैं। अब लोगों को किसी कम्युनिटी से जुड़े रहने की ज़रुरत महसूस नहीं होती है। इसके बजाय, वो पर्सनल सक्सेस और खुद के पीछे कुछ ज़्यादा ही भागने लगे हैं। हर इंसान को लगता है कि वो यूनीक और सुपीरियर है और बेस्ट से बेस्ट चीज़ deserve करता है।  

ये चेंज सोशल मीडिया पर साफ़ दिखाई देता है। लोग सच्ची और सिंपल  ज़िंदगी जीने के बजाय फेम पाने में ज़्यादा दिलचस्पी रखने लगे हैं। अगर आप खुद को प्रमोट नहीं करेंगे तो इस मॉडर्न लाइफ से आपको कुछ अच्छा नहीं मिलेगा। 

1950 में, हाई स्कूल के 12% स्टूडेंट्स को लगता था कि वो इम्पोर्टेन्ट थे, लेकिन 2005 में हाई स्कूल के 80% स्टूडेंट्स का मानना था कि वो यूनीक और एक्स्ट्राऑर्डिनरी हैं। इस स्टडी से अलग-अलग नज़रिए का पता चलता है। आजकल लोग बहुत सेल्फ़िश और बस “मैं और मेरा” करने वाले हो गए हैं।   

इस चेंज ने एक ऐसी narcissist सोसाइटी बना दी है जो सिर्फ खुद के बारे में सोचती है। हम में से ज़्यादातर लोग अपनी  इच्छा  को सबसे पहले रखते हैं, फ़िर भले ही हमें इसकी कोई भी कीमत क्यों ना चुकानी पड़े। हम अब दूसरों की मदद करने की परवाह नहीं करते क्योंकि हम बस अपने पर्सनल गोल्स पर ही फोकस करने लगे हैं। 

बड़े सपने देखना और अपने पोटेंशियल को जानना अच्छी बात है, लेकिन जब आप अपने स्किल्स को प्रमोट करने के लिए हद से ज़्यादा फोकस करने लगते हैं और दूसरों को भूल जाते हैं, तो आप अपनी ह्यूमिलिटी यानी विनम्रता खो देते हैं।  

ह्यूमिल्टी आपको समझदार बनाता है। जब आप एक साधारण इंसान की तरह रहते हैं तो अपनी कमियों को देख पाते हैं और उन्हें इम्प्रूव करने के लिए उन पर काम कर पाते हैं। इसमें आप mentors की मदद लेने की कोशिश करते हैं और लाइफ को लेकर क्यूरियस भी रहते हैं। ये क्यूरोसिटी आपको नए एक्सपीरियंस ट्राई करने के लिए पुश करती है। इससे आप दिखावा करके नहीं बल्कि सक्सेसफुल होते हुए भी हंबल होकर ग्रो करेंगे और दूसरों को इंस्पायर भी करेंगे।  

ह्यूमिलिटी से बेहतर कम्युनिटी भी बनती है। जब सभी लोग मॉडेस्ट और काइंड होते हैं तो लोग आपस में सच्चे और गहरे रिश्ते बना सकते हैं।  

खुद के गुरूर से ज़्यादा कम्युनिटी की भलाई पर ध्यान देने से, हमारी एकता और मकसद  की भावना और मज़बूत हो सकती है। दूसरों के कॉन्ट्रिब्यूशन को appreciate करके और gratitude और ह्यूमिलिटी के साथ जीकर, हमें ह्यूमिलिटी की वैल्यू को याद रखना चाहिए।    

सच्ची संतुष्टि खुद को सेलिब्रेट करके नहीं बल्कि सक्सेस के पीछे किए हुए कलेक्टिव एफर्ट को पहचानने से मिलती है। अपने गोल्स को पाने का प्लान बनाइए, लेकिन दूसरों की मदद करना मत भूलिए। 


The Summoned Self


क्या आपको कभी ऐसा महसूस हुआ है कि आपको किसी काम के लिए summon किया जा रहा है? Summon का मतलब है बुलाना। 

ज़्यादातर लोगों की  ज़िंदगी में कोई मकसद  नहीं होता है। वो बोरिंग जॉब करते रहते हैं, अपनी फैमिली शुरू करते हैं क्योंकि दूसरे भी ऐसा ही करते हैं और बिना कोई मीनिंगफुल काम किए ऐसे ही दुनिया से चले जाते हैं। जब आपका करियर और आपके सपने एवरेज होते हैं, तो ऐसा ही होता है।     

दूसरी तरफ, कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपनी calling को ढूँढ़ लेते हैं। वो रोज़ पूरी एनर्जी के साथ उठते हैं और अपनी   ज़िंदगी को बदलने के लिए तैयार रहते हैं। ये लोग पावरफुल होते हैं क्योंकि लाइफ में उनके मकसद  की कोई लिमिट ही नहीं  होती है।     

एक जॉब ढूँढने और एक vocation ढूँढने में फर्क है। जॉब एक opportunity यानी एक मौका है। जब आपको  अपनी जॉब अच्छी नहीं लगती है तो आप नई जॉब ढूँढने लगते हैं। जब आप प्रमोशन पाना चाहते हैं तो आप ज़्यादा सैलरी के लिए ज़्यादा मेहनत करते हैं।    

दूसरी तरफ, आप खुद एक vocation को नहीं चुन सकते बल्कि वो आपको चुनता है। जब एक बड़ा मकसद  आपको अपनी तरफ खींचता है तो आप अपनी calling को फॉलो करने से खुद को रोक नहीं पाते हैं। आप अपने vocation को बदल नहीं सकते क्योंकि ये आपकी  ज़िंदगी का मकसद  है। इसके बिना आपकी लाइफ मीनिंगलेस यानी बेमतलब की है। इससे पता चलता है कि आगे आने वाली  ज़िंदगी में आप क्या करने वाले हैं।   

मॉडर्न लाइफ ने अब रूल्स बदल दिए हैं। अब मीनिंग ढूँढने के बजाय हम ऐसा करियर ढूँढ़ते हैं जो हमें ज़्यादा से ज़्यादा सैलरी दे सके। जैसे, कमेंसमेंट सेलिब्रेशन में स्पीकर ग्रेजुएट्स को अपना पैशन ढूँढने के बारे में सिखाते हैं। लेकिन, वो स्टूडेंट्स को ख़ुद को समझने की इम्पोर्टेंस सिखाना भूल जाते हैं। आप अपने पैशन को तभी ढूँढ सकते हैं जब आप ये समझेंगे कि आप कौन हैं और ऐसा क्या है जो आपको  ख़ुश और संतुष्ट करता है।  

हम एक individualistic सोसाइटी बन गए हैं। हम सिर्फ़ अपनी इच्छा और ज़रूरतों पर फोकस करने लगे हैं और दूसरों को भूल गए हैं। यंग एडल्ट्स को खुद को जानने के लिए कहा जाता है ताकि वो ये जान सकें कि उन्हें क्या चीज़ satisfy करती है। ये रास्ता आपकी पर्सनल चॉइस पर डिपेंड करता है, लेकिन कभी-कभी लाइफ इतनी भी प्रेडिक्टेबल नहीं होती है। एक इवेंट, शायद आपकी  ज़िंदगी को हमेशा के लिए बदल सकती है।  

   
खुद से बाहर निकलकर देखिए, आपको अपनी calling मिल सकती है। आपको जितना ज़्यादा एक्सपीरियंस होगा, आप अपने असली मकसद  को ढूँढने के उतने ही करीब होंगे।    

जैसे, फ्रांसेस पर्किंस को अपनी calling तब मिली थी जब वो एक दिन कॉलेज में थीं। फ्रांसेस अपने दोस्तों के साथ चाय पी रही थीं कि तभी उन्हें बाहर शोर सुनाई दिया। बटलर ने उन्हें बताया कि पास के एक कपडे की फैक्ट्री में आग लग गई थी।  

उस दिन, फ्रांसेस और उनके दोस्तों ने अमेरिकन हिस्ट्री का आग का जुड़ा सबसे भयानक हादसा देखा जिसे ‘ट्रायंगल शर्टवेस्ट फैक्ट्री फायर’ के नाम से जाना जाता है। फैक्ट्री के तीन फ्लोर धूं-धूं कर जल रहे थे और फैक्ट्री के वर्कर्स खिड़कियों के पास इकट्ठा होकर मदद की गुहार लगा रहे थे।   

जैसे-जैसे आग बढ़ने लगी और वर्कर्स के और करीब आने लगी तो वो खिड़कियों से नीचे कूदने लगे। जो लोग कूदे, वो नीचे फूटपाथ पर गिरते ही मर गए। कुल मिलाकर, 47 वर्कर्स ने ख़ुद को बचाने की कोशिश में अपनी जान गंवा दी।   

ये आग तब लगी थी जब एक वर्कर की सिगरेट कपड़े के टुकड़े पर गिर गई थी। फैक्ट्री के मैनेजर सैमुअल बर्नस्टीन ने जब  आग को देखा तो एक गलत फैसला लिया। लोगों को फैक्ट्री से बाहर निकालने के बजाय वो आग पर पानी डालने लगे, लेकिन आग की लपटें उनकी कोशिश से कहीं ज़्यादा ताकतवर थीं और इस एक गलती की वजह से 146 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी।   

आग में लिपटे ज़िन्दा लोगों का शरीर और फूटपाथ पर पड़ी लोगों की लाशों का मंज़र बहुत खौफ़नाक था। फ्रांसेस सोसाइटी की एक एक्टिव मेंबर थी, लेकिन इस एक्सपीरियंस ने उन्हें अपनी calling को पहचानने में मदद की। उन्होंने अपनी लाइफ को वर्कर्स के अधिकारों और वर्कप्लेस सेफ्टी के लिए आवाज़ उठाने में लगा दिया।   

आखिरकार, फ्रांसेस लेबर यूनियन की सेक्रेटरी बन गई और US Presidential कैबिनेट में काम करने वाली पहली औरत भी बनीं।  

फ्रांसेस की कहानी से ये साबित होता है कि जब हम अपना vocation ढूँढ़ लेते हैं तो लाइफ ज़्यादा मीनिंगफुल या सार्थक हो जाता है। अपने लिए बेस्ट जॉब ढूँढने के लिए आपको अलग-अलग जॉब ट्राई करने की कोई ज़रुरत नहीं है। बस घर से बाहर निकलिए और लाइफ को एक्सपीरियंस कीजिए। आपकी calling इस बात का इंतज़ार कर रही है कि आप उसे ढूँढें। इसलिए, आज ही एक्शन लीजिए और दूसरों की मदद कीजिए।    

 

Self-Conquest


खुद को जीतने का क्या मतलब है?
इसका मतलब है, सेल्फ-कंट्रोल सीखना, अपने डिसिप्लिन को इम्प्रूव करना और पॉज़िटिव हैबिट अपनाना। 

सबसे पहले, सेल्फ कंट्रोल का मतलब है, गुस्से, डर और लालच के पलों में अपने इमोशंस को कंट्रोल करना। सेल्फ कंट्रोल एक मसल की तरह है। अगर आप इसे ज़्यादा यूज़ करेंगे तो आप थक जाएँगे और अपने impulse को कंट्रोल नहीं कर पाएँगे। अपने लालच से लड़ने से बेहतर है कि आप इन्हें खुद से दूर कर दें।  

दूसरा, डिसिप्लिन लाइफ के अनप्रेडिक्टेबल चैलेंजेज़ के खिलाफ आपका हथियार है। डेली रूटीन सेट करके और हर कीमत पर उन्हें फॉलो करके ज़्यादा disciplined हो सकते हैं। अपने लिए एक छोटा गोल सेट कीजिए और लंबे समय तक उसे फॉलो कीजिए। अगर आप अपने बोरडम और रेजिस्टेंस से लड़ने में कामयाब हो जाते हैं, तो आप अपने डिसिप्लिन को बढ़ा पाएँगे। 

साफ़-सुथरा एनवायरनमेंट रखने से भी मदद मिलती है। जब आपका एनवायरनमेंट क्लीन होता है तो आपका माइंड फोकस्ड और ज़्यादा पक्के इरादे वाला होता है। जब आप गंदे या बिखरे हुए जगह में रहते हैं तो आप ज़्यादातर distracted रहते हैं। शायद आप पहली distraction को कंट्रोल कर लेंगे, लेकिन आखिर में फेल हो जाएंगे। 

तीसरा, आपकी सभी डेली हैबिट्स को मिलाकर आपका कैरेक्टर बनता है। अगर आपकी हैबिट्स अच्छी हैं तो आपका  कैरेक्टर अच्छा बन जाता है। अगर आपकी हैबिट्स अनप्रोडक्टिव और अनहेल्दी हैं तो आप फेल होने के रास्ते पर चल पड़ेंगे और अपने impulses को फॉलो करेंगे। impulse का मतलब है बिना सोचे-समझे अचानक कुछ करना.  ये कमज़ोर कैरेक्टर की निशानी है।   

आप धीरे-धीरे अच्छी हैबिट्स अपना सकते हैं। साइकोलोजिस्ट विलियम जेम्स का मानना है कि एक स्ट्रोंग स्टार्ट से आप चेंज के प्रति अपने रेजिस्टेंस को कंट्रोल कर सकते हैं। आपको अपने नर्वस सिस्टम के खिलाफ जाकर काम करने की ज़रुरत नहीं है क्योंकि इससे नेगेटिव इफ़ेक्ट होगा और ये ज़्यादातर फेल भी हो जाता है।  

इसके बजाय, सबसे पहले नई शुरुआत को सेलिब्रेट कीजिए। जैसे, अगर आप हमेशा सच बोलना शुरू करना चाहते हैं तो एक इवेंट क्रिएट कीजिए और इसे कहिए, “द लास्ट लाई आई विल एवर टेल” यानी वो आखरी झूठ जो मैं बोलूँगा. 

ये इवेंट आपको आगे बढ़ने के लिए मोटीवेट करेगा, तब भी जब आपको ऐसा करने का मन नहीं होगा। अगर आपका  सेल्फ कंट्रोल कमज़ोर पड़ जाएगा तो आप अपनी पुरानी हैबिट पर वापस लौट आएँगे। याद रखिए कि आप एक स्ट्रोंग कैरेक्टर बना रहे हैं इसलिए हर दिन एक ऐसी लड़ाई होगी जो आपको जीतनी ही होगी।   

सेल्फ कंट्रोल का मतलब ये नहीं है कि आपको हर वक़्त disciplined और स्ट्रिक्ट रहना है। आपको प्यार और स्ट्रिक्ट होने में बैलेंस बनाना सीखना होगा। जब आप नई हैबिट्स अपनाते हैं और नए स्टैंडर्ड सेट करते हैं, तब आप डिसिप्लिन का इस्तेमाल करते हैं। जब आप अपना या दूसरों की परवाह करते हैं,तो आप लविंग और काइंड बन जाते हैं।  

इडा स्टोवर एक ऐसी स्ट्रोंग माँ का एग्ज़ाम्पल हैं, जिन्होंने अपना और अपने बच्चों का पेट भरने के लिए बहुत मुश्किलों का सामना किया है। जब वो पांच साल की थीं तब उनकी माँ चल बसी और जब वो ग्यारह साल की थीं तो उनके पिता भी नहीं रहे। इसलिए, वो अलग-अलग रिश्तेदारों के साथ रहीं थीं, जो बहुत conservative और स्ट्रिक्ट थे। 

अपनी limitation के बावजूद, Ida ने एक स्ट्रोंग कैरेक्टर बनाकर इन हालातों का डटकर सामना किया। उन्होंने डेविड आइज़नहावर से शादी की और उनके पांच बच्चे हुए। शुरुआत में, उन्हें फाइनेंशियली काफी स्ट्रगल करना पड़ा क्योंकि डेविड को स्टेबल जॉब नहीं मिल पा रही थी। इस मुश्किल दौर में, इडा स्ट्रोंग बनी रहीं और अपने हस्बैंड को सपोर्ट करने की उन्होंने पूरी कोशिश की और अपने बच्चों को स्ट्रोंग और इंडिपेंडेंट बनाया।  

Kansas वापस जाने के बाद, डेविड एक क्रीम की दूकान में काम करने लगे और उनकी फाइनेंशियल सिचुएशन पहले से बेहतर होने लगी। वो एक छोटे और सिंपल से घर में रहते थे।  

इडा स्ट्रिक्ट और लविंग दोनों थीं। वो इस बात को बखूबी समझती थीं कि लाइफ में चैलेंजेज़ का सामना करने के लिए उन्हें अपने बच्चों को disciplined बनाना होगा। उन्होंने अपने बच्चों को अच्छे से तैयार होना, चर्च जाना और डिनर टेबल के एटिकेट जैसे रूल्स फॉलो करना सिखाया। 

इडा की स्माइल बहुत खूबसूरत थी। वो बहुत प्यार और मज़ेदार तरीकों का इस्तेमाल करके अपने बच्चों को सेल्फ-कंट्रोल का स्किल सिखाती थीं। वो उन्हें बाहर जाकर दुनिया को एक्सप्लोर करने का मौका भी देती थीं। वो उन्हें डिसिप्लिन में रखती थीं लेकिन कभी उनकी आज़ादी पर पाबंदी नहीं लगाती थीं। 

इडा ने अपने बच्चों को जो सबसे इम्पोर्टेन्ट लेसन सिखाया था वो था सेल्फ़ कंट्रोल। हेलोवीन के दिन, ड्वाइट अपने भाई के साथ ट्रिक या ट्रीट के लिए बाहर जाना चाहता था, लेकिन इडा ने ऐसा करने से मना कर दिया क्योंकि वो अभी बहुत छोटा था। इसलिए, ड्वाइट बाहर भाग गया और सेब के पेड़ को अपने हाथों से तब तक मारता रहा जब तक उनसे खून नहीं निकल आया। ये देखकर उसके पिता गुस्सा हो गए और उसे छड़ी से मारने लगे।  

जब ड्वाइट अपने कमरे में गया तब इडा ने उसके चोट को साफ़ किया और उसे अपने इमोशंस को कंट्रोल करने की इम्पोर्टेंस को समझाया। ड्वाइट आइज़नहावर इस सबक  को कभी नहीं भूले, तब भी नहीं जब वो यूनाइटेड स्टेट्स के 34th प्रेसिडेंट बने। 

ये कहानी हमें सिखाती है कि अपनी limitation को जीतने का मतलब ये नहीं है कि हमें हमेशा स्ट्रिक्ट रहना चाहिए। हमें अपनी कमज़ोरियों को एक्सेप्ट करना और दूसरों की कमियों को अपनाना सीखना होगा। कभी-कभी, हम सभी आलसी और बेसब्र महसूस करते हैं। अपनी कमज़ोरियों के बारे में जानने से हमें इनसे लड़ने में और ख़ुद को इम्प्रूव करने में मदद मिलती है।   

 

Dignity


डिग्निटी का मतलब है, इज्ज़त के साथ और ईमानदारी से जीवन जीना। इसकी शुरुआत होती है, हाई स्टैंडर्ड सेट करने से, इसके बाद उन्हें रोज़ फॉलो करें और चैलेंजेज़ का सामना करते हुए भी डटे रहें। अगर आप मुश्किल वक़्त में अपने वैल्यूज़ को भूल जाते हैं तो आपमें सेल्फ-कंट्रोल की कमी है. जब आप अपनी फीलिंग्स को कंट्रोल करने में मास्टर हो जाते हैं तो कोई भी इंसान या सिचुएशन आपको हिला नहीं पाएगा।   

ग्रेट लीडर बनने के लिए, सेल्फ-मास्टरी, moral इंटीग्रिटी, charisma और एक बड़े मकसद की ज़रुरत होती है। सबसे पहले, आपको अपने impulses को कंट्रोल करना होगा। जैसा कि हमें पिछले चैप्टर में सीखा था, रोज़ सेल्फ डिसिप्लिन प्रैक्टिस करने से आप अपने इमोशंस को कंट्रोल कर सकते हैं।   

सबसे पहले ये पहचानिए कि ऐसी क्या चीज़ है जो आपको कमज़ोर बनाती है और फिर उसे ट्रिगर करने वाली चीज़ों को दूर कर दीजिए। सेल्फ-मास्टरी एक ऐसा मसल है, जो ख़ुद को strong बनाने के लिए चैलेंज करने से ग्रो करता है।   

दूसरा, moral इंटीग्रिटी का मतलब है करप्शन से दूर रहना या गलत काम करने से बचना। इसका मतलब है कि जब कोई आपसे हायर पोजीशन वाला शख्स भी आपको झूठ बोलने या धोखा देने के लिए कहे तो आपको ना कहना होगा। कोई भी महान लीडर कभी अपनी जेब भरने या दूसरों को नुक्सान पहुंचाकर  ज़्यादा पावरफुल बनने की कोशिश नहीं करता है। 

तीसरा, आप जिस तरह खुद को present करते हैं, उसमें आपका charisma झलकता है। आपको कॉन्फिडेंस, अथॉरिटी और सेल्फ-कंट्रोल दिखाना होगा। जब आप charismatic होते हैं तो आप दूसरों को आपको फॉलो करने के लिए इंसपायर करते हैं। तब लोग आपकी बात को सुनेंगे, इसलिए नहीं कि आप उनसे सुपीरियर हैं बल्कि इसलिए क्योंकि वो आपको पसंद करते हैं। 

आखिर में, आपको पर्सनल फायदे को छोड़कर एक बड़े मकसद  के लिए काम करना होगा। आप अपनी कम्युनिटी को चैलेंजेज़ से बाहर निकलने में मदद कर सकते हैं या अपनी ख़ुद की कंपनी शुरू कर सकते हैं। सिर्फ पैसे के लिए काम मत कीजिए बल्कि लीडर इसलिए बनिए क्योंकि आप सच में लोगों की ज़िंदगी बदलना चाहते हैं।   

फिलिप रैन्डोल्फ, सिविल राइट्स के लीडर थे। उनका जन्म 1899 में फ्लोरिडा के जैक्सनविले के पास हुआ था. वो एक ऐसे परिवार में पले-बढे थे जहाँ उन्हें डिसिप्लिन, डिग्निटी और सेल्फ-कंट्रोल जैसे गुण सिखाए गए थे। 

रैन्डोल्फ के पिता एक चर्च में मिनिस्टर थे जो एक दर्जी और कसाई के तौर पर काम करते थे. उनकी माँ कपड़े सिलने का काम करती थीं। वैसे तो वो पैसों की तंगी से जूझ रहे थे, लेकिन वो हमेशा सच्चाई और ईमानदारी के उसूलों पर चलते रहे और उन्होंने रैन्डोल्फ को एक अच्छा और सभ्य इंसान बनना भी सिखाया। 

बचपन में रैन्डोल्फ के पिता उन्हें अक्सर चर्च ले जाया करते थे। वहां, रैन्डोल्फ कई महान ब्लैक लीडर्स से मिले, जहाँ उन्हें ब्लैक लोगों के संघर्ष और उनकी हिस्ट्री के बारे में पता चला। यहीं से, रेशियल equality यानी नस्ल के आधार पर समानता में रैन्डोल्फ का विश्वास शुरू हुआ। 
1911 में, रैन्डोल्फ ने लेबर मूवमेंट जॉइन किया। उनका काम था यूनियन को organize करना। यहाँ वो ब्लैक, ज़्यादा काम कराए गए और कम पैसे दिए गए दुखी वर्कर्स को यूनियन बनाने और अपने हक़ के लिए लड़ने में मदद करते थे।

 
इन वर्कर्स ने, रैन्डोल्फ की लीडरशिप में सालों तक लड़ाई की। इस दौरान, उन्हें नौकरी से निकाला गया, मारा-पीटा गया,  डराया-धमकाया गया, लेकिन क्योंकि रैन्डोल्फ एक कमाल के लीडर थे तो सभी लोग तब तक लड़ते रहे जब तक वो जीत नहीं गए।   

12 साल बाद, US गवर्नमेंट ने इस यूनियन को recongnize किया और उनके काम करने के कंडीशन को बेहतर बनाया। इस अचीवमेंट से रैन्डोल्फ को भेदभाव के खिलाफ लड़ने वाले महान लीडर्स में गिना जाने लगे। 

महान लीडर होने के बावजूद, रैन्डोल्फ  नेबहुत ही सादगी भरा और इज्ज़तदार जीवन जीया। उन्होंने अपने काम के लिए कभी पैसा नहीं लिया क्योंकि वो आज़ादी के लिए लड़ रहे थे नाकि दौलत और शोहरत के लिए। उनकी गरीबी और विनम्रता  के बावजूद, उनकी ईमानदारी और कमाल के लीडरशिप स्टाइल से लोग उन्हें फॉलो करने के लिए इंसपायर होते थे। 

एक इज्ज़तदार लीडर बनने के लिए अमीर होने की नहीं बल्कि एक स्ट्रोंग कैरेक्टर की ज़रुरत है। आप एक इंसपायरिंग लाइफ तभी जी सकते हैं जब आप अपने impulses को कंट्रोल कर पाएँ, अपने लालच को दूर कर पाएँ और एक बड़े मकसद  पर फोकस करें। उसके बाद, कोई आपका बाल भी बांका नहीं कर पाएगा क्योंकि आपने अपने अंदर की ताकत को मास्टर कर लिया है। 

 

Love


क्या आपको अपने इमोशंस को मैनेज करने में प्रॉब्लम होती है?
अगर ऐसा है तो आपके अंदर बहुत सारा गुस्सा, एंग्ज़ायटी और frustration भी होगी। जब आप ऐसी सिचुएशन का सामना करते हैं जिन्हें आप कंट्रोल नहीं कर सकते, तो आप ये समझ नहीं पाते हैं कि क्या सही है और क्या गलत। आप बिना सोचे-समझे रियेक्ट करते हैं या फिर बिना लड़े हार मान लेते हैं।   

जब तक आप रिलेशनशिप बनाना शुरू नहीं करते, तब तक आप अपने इमोशनल स्ट्रगल्स को शायद नहीं जान पाएँगे। आप शायद बचपन में लगे किसी ट्रॉमा यानी सदमा के कारण suffer कर रहे हों, आपमें इमोशनल maturity की कमी हो या आपमें अटैचमेंट इशूज़ भी हो सकते हैं। अगर बचपन में, आपके पेरेंट्सने आपकी इमोशनल ज़रूरतों को पूरा नहीं किया है तो आपको बड़े होने पर रिलेशनशिप में प्रॉब्लम का सामना करना पड़ सकता है। 

शायद आपको अपने पार्टनर पर विश्वास करने में परेशानी होगी। आप शायद किसी को प्यार तो कर लेंगे लेकिन अटैचमेंट इशूज़ की वजह से उससे गहरा bond नहीं बना पाएंगे। अगर आपका कोई रिलेशनशिप होगा भी तो आप उसे बरकरार नहीं रख पाएंगे क्योंकि आप अपने इमोशंस को कंट्रोल नहीं कर सकते। आप शायद गलत पार्टनर चुनने की आदत भी डेवलप कर सकते हैं। टॉक्सिक रिलेशनशिप में रहने से आप कभी भी इमोशनली mature नहीं हो पाएँगे।    

जब आपका पार्टनर आपको हर्ट करता है या धोखा देता है तो आप किसी तरह के रिलेशनशिप के बजाय अकेले रहना चुन लेते हैं। आपमें दूसरों से जुड़ने की एबिलिटी और इच्छा ख़त्म हो जाती है। फ़िर आपको नई फ्रेंडशिप बनाने या प्यार ढूँढने में भी बहुत मुश्किलें आएंगी। 

जब आप इमोशनली अन्स्टेबल होते हैं तो आप अपना कॉन्फिडेंस खो देते हैं और इमोशनल होने के लिए खुद को दोष देने लगते हैं। आप अपने मूड को कंट्रोल नहीं कर पाते। एक दिन आपको ख़ुशी महसूस होती है तो अगले दिन उदासी। ये  अनप्रेडिक्टेबल मूड स्विंग्स आपको ओवर-ड्रामेटिक बना दते हैं और आप पर भरोसा करना भी मुश्किल हो जाता है।   

इन problems को दूर करने के लिए आपको इमोशनली ग्रो करना होगा। सबसे पहले, आपको प्यार के नेचर को समझना होगा। प्यार का मतलब एक्सट्रीम इमोशंस नहीं है। प्यार शांत करने वाला और comfort देने वाला भी हो सकता है। अगर आपने बड़े होते हुए ये सीखा है कि प्यार का मतलब दर्द और तकलीफ तो आपको इन नेगेटिव बातों को भूलकर आगे निकलना होगा। सबसे पहले अपने इमोशनल पैटर्न्स को समझिए और फिर उन्हें कंट्रोल करने की कोशिश कीजिए।  

इस बात को पहचानिए कि आपके इमोशंस को क्या ट्रिगर करता है और इसके बाद उसे बदलने के लिए प्लान बनाइए। अगर आपके पास्ट एक्सपीरियंस आपके रिएक्शन को कंट्रोल करते हैं तो आपको खुद को उनसे आज़ाद करना होगा। अपने पुराने ज़ख्मों को हील कीजिए और एक अलग present को गले लगाइए। 

अपनी इमोशनल स्टेबिलिटी को बढ़ाने के लिए आप माइंडफुलनेस को प्रैक्टिस कर सकते हैं। ये आपके इमोशंस को बेहतर तरीके से मैनेज करने में मदद करेगा और आप ज़्यादा शांत होने लगेंगे और चैलेंजेज़ की तरफ अपने रिएक्शन को और अच्छे से जान पाएंगे। 

आपको vulnerability को भी अपनाना होगा। ये थोड़ा अनकम्फ़र्टेबल हो सकता है क्योंकि इसमें आपको दूसरों पर भरोसा करना होता है। लेकिन, अगर आप अपने पुराने ज़ख्मों को फिर से खोलेंगे तो आप बेहतर महसूस करने के साथ-साथ अपने फ्रेंड्स और पार्टनर्स के और करीब भी महसूस करेंगे। अपने ट्रॉमा के बारे में बातें करने से आपको अपने अनसुलझे problems को ठीक करने में और उनसे बाहर निकलने में मदद मिलेगी। 

जॉर्ज एलियट अपने पास्ट एक्सपीरियंस की वजह से इमोशनली स्ट्रगल कर रही थीं। उन्हें लगता था कि वो किसी काम की नहीं हैं और ये उनके रिलेशनशिप में साफ़ नज़र आता था। जॉर्ज कभी भी एक पार्टनर के साथ टिक नहीं पाती थीं क्योंकि वो अपने इमोशंस को कंट्रोल नहीं कर पाती थीं। वो एक पल में पैशनेट हो जाती और अगले ही पल एकदम रूखी। इन अनहेल्दी पैटर्न्स की वजह से उन्हें ये लगने लगा कि प्यार हमेशा अपने साथ दर्द लेकर आता है। वो एक के बाद एक टॉक्सिक पार्टनर के साथ रिलेशन बनाने लगी।   

जॉर्ज को डर लगता था कि सब लोग उन्हें छोड़ देंगे और वो अकेली हो जाएंगी, इसलिए वो अपने पार्टनर के साथ तब भी चिपकी रहती थीं जब वो उनसे इमोशनली attach नहीं होते थे। इससे उनमें कॉन्फिडेंस की कमी आ गई थी और उन्हें लगता था कि कोई उन्हें प्यार नहीं करता है। इसके बजाए, उन्हें अकेलापन महसूस होता था और वो हर चीज़ के लिए ख़ुद को दोष देती थी।  

लेकिन जब जॉर्ज की मुलाक़ात लूइस से हुई तो सब कुछ बदल गया। लूइस में बहुत सब्र था. वो बहुत काइंड थे और जॉर्ज के लिए इमोशनली मौजूद भी रहते थे। उन्होंने इमोशनली ग्रो करने के लिए जॉर्ज को स्पेस दिया। उन्होंने कभी उन्हें  manipulate नहीं किया और नाही उनका साथ छोड़ा। वो हमेशा उनके अच्छे और बुरे वक़्त में साथ खड़े रहे।  

लूइस के साथ ने जॉर्ज को प्यार का असली मतलब समझाया। जॉर्ज ने जाना कि प्यार बहुत ही कोमल और सुकून देने वाला एहसास है। लूइस ने उनकी लिमिट को रिस्पेक्ट किया और उनकी हीलिंग की जर्नी में उन्हें पूरा सपोर्ट किया। क्योंकि इस रिश्ते में जॉर्ज को सेफ महसूस हो रहा था तो उन्हें अपने ट्रिगर समझ में आने लगे और अब वो उन्हें कंट्रोल कर पा रही थीं । 

लूइस ने भी जॉर्ज को सेल्फ-लव की इम्पोर्टेंस भी समझाई। उन्होंने सीखा कि प्यार की शुरुआत खुद का खयाल रखने से होती है। ये एक ऐसे हेल्दी रिलेशनशिप की शुरुआत थी जिसने स्टेबिलिटी और इमोशनल हीलिंग को बढ़ाया। 

जॉर्ज की जर्नी challenging थी, लेकिन वो अपनी सभी परेशानियों से लड़ी और उन्होंने अपनी लव लाइफ को बदल दिया। अगर आप भी जॉर्ज की तरह स्ट्रगल कर रहे हैं तो आपको एक ऐसा बेहतर पार्टनर ढूँढना होगा जो आपकी बाउंड्रीज़ को समझे और आपको हील होने के लिए पूरा स्पेस दे। 

अपना ख़याल रखना बहुत ज़रूरी है। अगर आप खुद को प्यार नहीं करेंगे तो कभी किसी और से प्यार नहीं कर पाएँगे। एक विक्टिम माइंडसेट के बजाए अपनी कमज़ोरियों को एक्सेप्ट कीजिए और ग्रोथ मेंटेलिटी को अपनाइए। अपनी वैल्यू जानने के लिए आपको किसी और की ज़रुरत नहीं है। आप खुद से प्यार करके इसकी शुरुआत कर सकते हैं और ऐसा करने के बाद आप देखेंगे कि आप दूसरों को भी प्यार कर पाएंगे।   


Self-Examination


लाइफ अनफेयर है और कुछ लोगों की जिंदगी दूसरों से कहीं ज़्यादा मुश्किल होती है। संघर्ष करने वाले लोग खुद को अनलकी मानते हैं और खुशहाल लोगों से जलते हैं। लेकिन वो ये नहीं जानते कि ये मुश्किल सिचुएशन ही उन्हें उनकी limitation से आगे बढ़ने के लिए पुश करता है।  

जब आपके पास चैलेंजेज़ का सामना करने के अलावा कोई और चारा नहीं होता है तो जीतने के लिए आपको अपने कम्फर्ट ज़ोन से बाहर निकलना ही पड़ता है। अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो आप अपने हालात के शिकार बन जाएंगे और  हमेशा दुखी रहेंगे।  

चाहे कुछ भी हो जाए आपको आगे बढ़ते रहना होगा। ये पक्का इरादा आपको flexible और इंडिपेंडेंट बनना सिखाएगा। लाइफ की मुश्किलों से बाहर निकलने के लिए आप सिर्फ़ खुद पर ही डिपेंड कर सकते हैं। आपके ग्रोथ माइंडसेट के अलावा आपको कोई नहीं बचा सकता है।  

अगर आपके वैल्यूज़ को टेस्ट किया जाता है तो आप देखेंगे कि आप moral स्ट्रगल का सामना कर रहे हैं। आप अपने स्टैंडर्ड पर खरे उतरने, प्रेशर के सामने हार जाने और कुछ गलत करने के बीच उलझे रहेंगे। आपके अंदर की ये जंग आपको हर तरफ से चैलेंज करेगी।   

सही फैसले लेने के लिए आपको अपने कोर वैल्यूज़ को अच्छे से समझना होगा। इससे आपको अपना सेल्फ अवेयरनेस बढ़ाने में मदद मिलेगी ताकि आप अपनी गलतियों को पहचान सकें और उनका सामना कर सकें। 

हर एक्सपीरियंस आपको खुद के और दुनिया के बारे में कुछ नया सिखाएगा। अगर आप दिल से इन लेसंस को सीखेंगे तो आप हर चैलेंज के साथ ग्रो करते जाएँगे। अगर आपने ऐसा नहीं किया तो आप पीछे चले जाएंगे और खुद से और दूसरों से नफरत करने लगेंगे।   

ग्रोथ एक ऐसी जर्नी है जो कभी ख़त्म नहीं होती है और जिसमें डिसिप्लिन और कंसिस्टेंट एफर्ट्स की ज़रुरत होती है। अपनी कमियों को दूर करने  के लिए आपको रोज़ प्रैक्टिस करनी होगी। अपने बिलीफ्स को अपडेट कीजिए और लर्निंग को गले लगाइए। ऐसी डेली एक्टिविटीज़ को अपनाइए जो आपके डिसिप्लिन को बढ़ाए और आपके स्किल्स को इम्प्रूव करे।   

आइए, सैमुअल जॉनसन का एग्ज़ाम्पल देखते हैं। जॉनसन का बचपन काफी मुश्किल भरा था। वो गरीब, बीमार और बदसूरत था। वो अजीब तरह से बिहेव करता था और कोई उसे पसंद नहीं करता था। एक जीनियस होने के बावजूद, वो फिक्स्ड और रेगुलर इनकम कमाने में स्ट्रगल कर रहा था, जिससे उसका डिप्रेशन बढ़ गया था। 

जॉनसन को लिखना बहुत पसंद था, लेकिन उसके इस टैलेंट को तब तक लोगों ने नहीं पहचाना जब तक उसने एक इंग्लिश डिक्शनरी नहीं लिखी। ये प्रोजेक्ट बोरिंग होने के साथ-साथ काफी मेहनत वाला था और जिसमें उन फाइनेंशियल रिसोर्सेज़ की ज़रुरत थी जो उसके पास नहीं थे। इन मुश्किलों के बावजूद, जॉनसन अपने काम में लगा रहा और अपने गोल में पूरा  विश्वास रखा। वो इंग्लिश लैंग्वेज को इम्प्रूव करने में हेल्प करके अपनी सोसाइटी को कुछ देना चाहता था। 

जॉनसन की वाइफ बहुत ड्रिंक करती थी। उसकी हेल्थ खराब रहती थी और एक दिन वो उसे अकेला छोड़कर चल बसी। अपनी वाइफ को खोने के बाद भी जॉनसन ने राइटिंग पर अपना फोकस बरकरार रखा। उसने अपने मुश्किल सिचुएशन  को अपने एक्शन पर हावी नहीं होने दिया। इसके बजाय, उसने हमेशा  ज़िंदगी से सीखने और दूसरों की मदद करने की कोशिश की।   

इंग्लिश लैंग्वेज की डिक्शनरी लिखने के बाद जॉनसन बहुत फ़ेमस और फाइनेंशियली सिक्योर हो गया। अपनी सक्सेस के बाद भी वो इस बात को कभी नहीं भूला कि गरीबी ने उसे कितना परेशान किया था। इसलिए, जॉनसन ने अपनी  ज़िंदगी  बदकिस्मत लोगों की मदद करने में लगा दिया। उसने गरीब लोगों को अपने घर में रहने के लिए भी बुलाया।  

अगर जॉनसन ने मुश्किल हालातों का सामना नहीं किया होता तो उसके मन में गरीबों के लिए हमदर्दी कभी नहीं आती। कुछ सालों बाद, वक़्त ने उसकी एक बार फिर परीक्षा ली। जॉनसन बहुत बीमार हो गया और उसका दर्द सहना बर्दाश्त से बाहर था। फिर भी, वो डटा रहा और अपनी कमज़ोरी से बाहर निकला। 

आप लाइफ के चैलेंजेज़ से नहीं भाग सकते, लेकिन आप उन्हें ग्रो करने और अपना कैरेक्टर develop करने के लिए यूज़ ज़रूर कर सकते हैं। जो लोग स्ट्रगल करते हैं, वो आमतौर पर सबसे स्मार्ट और disciplined होते हैं। वो औरों के प्रति ज़्यादा हमदर्दी रखते हैं और दूसरों की तकलीफ को समझते भी हैं।  

अपनी कमज़ोरियों को समझने की कोशिश कीजिए और उन्हें दूर करने के लिए डेली एक्शन लीजिए। हमेशा सीखते रहिए और अपने डिसिशन-मेकिंग स्किल्स को डेवलप कीजिए। अगर आप लाइफ के चैलेंजेज़ के साथ-साथ हिम्मत को भी गले लगाएंगे तो आप हर दिन और मज़बूत बनते जाएंगे।  


The Big Me 


जब आप कोई गलती करते हैं तो कैसे रियेक्ट करते हैं?
क्या आप खुद को ब्लेम करते हैं, दूसरों को ब्लेम करते हैं, उस दर्द को इग्नोर करते हैं या फिर आगे बढ़ जाते हैं? चैलेंजेज़ की तरफ आपका जो रिएक्शन होता है वो आपके कैरेक्टर को दिखाता है। अगर आप हंबल हैं तो आप चैलेंजेज़ को खुद को और बेहतर समझने की एक opportunity के रूप में देखेंगे। 

आप ये जानेंगे कि जब आप अपनी limitations को पहचानते हैं तो आप खुद के सबसे बड़े दुश्मन बन जाते हैं। अगर आप अपनी कमज़ोरियों से जीत जाते हैं तो आप खुद का बेटर version बन जाते हैं। 
आपको अपनी लड़ाई अकेले लड़ने की ज़रुरत नहीं है। आपको सपोर्टर्स की एक कम्युनिटी की ज़रुरत है। अगर हम सभी अपनी limitation से लड़ने में एक दूसरे की मदद करेंगे तो हम बेहतर सोसाइटी बना सकते हैं। एक दूसरे से जुड़े रहना,  ख़ुश रहने का बहुत बड़ा ज़रिया है। ये आपको एक ऐसी  ज़िंदगी की तरफ ले जाता है जिसमें आपके पास दूसरों की मदद करने और दूसरों से मदद लेने का एक बड़ा मकसद  होता है। यहाँ सभी ग्रेटफुल, काइंड और इंसपायरिंग होते हैं।   

लेकिन हकीकत इससे बहुत अलग है। ज़्यादातर लोग अकेले ही स्ट्रगल करते रहते हैं। उनकी शुरुआत बहुत सारी limitation से होती है। अगर वो ग्रोथ के लिए खुले हैं और बदलाव के प्रति हंबल रहेंगे तो हर एक्सपीरियंस के साथ ग्रो करेंगे। अगर वो अपने घमंड को अपने एक्शन पर कंट्रोल करने देंगे तो हमेशा गलत काम करते रहेंगे और ख़ुशी पाने के अपने चांस को भी गँवा देंगे।    

आप जितना ज़्यादा खुद पर काम करेंगे, आप उतने की कम गलत काम करेंगे। अपनी limitation को दूर निकलना, शुरू में मुश्किल लग सकता है, लेकिन जब आप पॉज़िटिव चेंज के रिज़ल्ट देखेंगे तो कभी भी संघर्ष करना बंद नहीं करेंगे।  

मॉडर्न कल्चर ने हमें सक्सेस की इम्पोर्टेंस सिखाई है। बचपन से ही, हमने ये सीखा है कि अगर हम academically सक्सेसफुल होंगे तो सभी हमें प्यार करेंगे। अगर हम स्कूल में फेल हो गए तो हमें दोष भी दिया जाएगा और सज़ा भी, खासकर हमारे पेरेंट्स की तरफ से। इस नज़रिया ने हमें “द बिग मी” पर फोकस करने के लिए तैयार किया। ऐसा तब होता है जब हम सिर्फ खुद पर और अपने सपनों पर पूरी तरह फोकस करने लगते हैं।    

दो तरह के लोग होते हैं: एडम 1 और एडम 2. 
एडम 1, आपके एक्सटर्नल पार्ट को दिखाता है। ये वो पार्ट है जो बड़े सपने देखता है और रिकग्निशन और अचीवमेंट पाना चाहता है। जब आप अपने करियर ग्रोथ, सोशल स्टेटस और मटेरियल  गोल्स पर फोकस करते हैं, तो आप एडम 1 बनकर काम कर रहे होते हैं। 

एडम 2, आपका इनर पार्ट है। ये पार्ट आपके वैल्यूज़, स्टैंडर्ड, मॉरल्स और कैरेक्टर को दिखाता है। जब आप हंबल होते हैं और दूसरों की मदद करने की कोशिश करते हैं, तो आप एडम 2 बनकर काम कर रहे होते हैं। 

एक मीनिंगफुल और हैप्पी लाइफ जीने के लिए आपको इसमें बैलेंस ढूँढना होगा। ऐसे गोल्स सेट कीजिए जो आपके  एक्सटर्नल और  इंटर्नल ज़रूरतों को पूरा कर सके। 

हम सभी अलग-अलग तरह से स्ट्रगल करते हैं। कुछ लोग अपनी प्रॉब्लम का डटकर सामना करते हैं। वो अपने आसपास के माहौल में डायरेक्टली changes कर देते हैं। वो तेज़ी से होने वाले चेंज पर ज़्यादा फोकस करते हैं और ओपन और हिम्मतवाले होते हैं। दूसरे लोग इतने ओपन नहीं होते। वो रिज़र्व्ड होते हैं और अपने अंदर की लड़ाई को जीतने पर फोकस करते हैं।  

जैसे Augustine एक एम्बिशियस इंसान था। उसके कोई गोल्स नहीं थे और वो ज़्यादातर वक़्त खोया हुआ महसूस करता था। जब वो यंग था तब उसने अपनी एक्सटर्नल ज़रूरतों पर फोकस किया। वो ऐसे गोल्स को पूरा करने में लग गया जिनकी वजह से उसे अकेलेपन के अलावा कुछ नहीं मिला। 

Augustine को अपना बैलेंस ढूँढने में काफी स्ट्रगल करना पड़ा। उसे  ज़िंदगी के मज़े में खो जाना पसंद था, लेकिन कुछ तो था जो उसे परेशान कर रहा था। उसके अंदर की आवाज़ उसे कहती थी कि कुछ तो मिसिंग है और उसे वो ढूँढना होगा। सक्सेस पाने के बावजूद, वो मन की शांति नहीं ढूँढ पा रहा था। उसे ऐसी चीज़ की ज़रुरत थी जो और ज़्यादा मीनिंगफुल हो।    

फ़िर Augustine ने अपने अंदर झाँकने का फैसला किया। उसने अपने अंदर के दुश्मनों को एनालाइज किया ताकि वो जो खालीपन महसूस कर रहा था, उसे समझ सके। एक दुश्मन जिससे वो लड़ रहा था, वो था लस्ट यानी वासना। Augustine फिजिकल pleasure पाने के लिए बार-बार अपने रिलेशनशिप बदलता था। इसमें प्रॉब्लम ये थी एक रिलेशनशिप को ख़त्म करने के बाद उसे खालीपन और गिल्ट महसूस होता था।   

Augustine ने अपने विश्वास को दोबारा पहचानने की कोशिश की। Pleasure ढूँढने के बजाए उसने मन की शांति पाने पर ज़्यादा फोकस किया। उसने हार मानकर अपनी limitations को एक्सेप्ट किया। आखिर वो एक ऑर्डिनरी इंसान ही था। वो पावरलेस था और उसे भगवान् के सामने खुद को हंबल बनाना ही पड़ा। 

डोरोथी डे इसकी बिल्कुल opposite थी। उसे रिलेशनशिप बनाने में मुश्किल होती थी। एक बार वो pregnant हो गई थी  और उसे एबॉर्शन कराना पड़ा था। ये इतना दर्दनाक एक्सपीरियंस था जो उसे सालों तक परेशान करता रहा। डोरोथी एक एक्टिविस्ट थी और उसे लोगों की मदद करना बहुत पसंद था। उसे पॉलिटिक्स में दिलचस्पी थी और वो वर्किंग क्लास के लिए आवाज़ उठाती थी।  

अपनी सोशल और एक्टिव लाइफ के बावजूद डोरोथी को अपने अंदर एक खालीपन का एहसास होता था। उसे एक बड़े मकसद  की तलाश थी, जो आखिरकार उसे भगवान् में मिला। उसे चर्च जाना पसंद था और वहां उसे बहुत सुकून और हल्का महसूस होता था। उसे गरीबों की मदद करना बहुत अच्छा लगता था और वो दूसरों की  ज़िंदगी को बेहतर बनाने के लिए, हमेशा volunteer करती थी।    

Augustine और डोरोथी के बीच फर्क ये था कि मीनिंग ढूँढने के लिए उन दोनों की अप्रोच अलग-अलग थी। Augustine ने अपने अंदर के स्ट्रगल से लड़ने के लिए खुद के अंदर झाँका। डोरोथी ने अपनी calling ढूँढने के लिए अपने एक्सटर्नल सिचुएशन को बदला। उसने चर्च जॉइन किया और पॉलिटिक्स में काम करने के बजाय इंसानियत के लिए काम करना और भगवान् की सेवा करना शुरू किया। 

अगर आप भी एक खालीपन महसूस कर रहे हैं तो आपको अपने मकसद  को फिर से ढूँढना होगा। अपने एक्सटर्नल और  इंटर्नल  गोल्स को बैलेंस कीजिए और अपनी limitation पर हमेशा सवाल उठाइए। जब आप समझ जाएँगे कि आप कौन हैं तो आप किसी भी मुश्किल से बाहर निकल सकते हैं।  


Conclusion


लाइफ का final गोल है संतुष्टि और मीनिंग ढूँढना। बचपन से लेकर बड़े होने तक की जर्नी हमें अपनी calling ढूँढने के लिए ही मिली है। कुछ लोग एक्सटर्नल गोल्स पर फोकस करते हैं तो कुछ अपनी इनर ग्रोथ पर फोकस करना पसंद करते हैं। ये समरी, दोनों अप्रोच को एक साथ मिलाती है। 

सबसे पहले, आपने सीखा कि फुल्फिल्मेंट पाने का सबसे पहला रास्ता है, ह्यूमिलिटी यानी विनम्र होना। जब आप हंबल होते हैं तो आप दूसरों की कमियों को एक्सेप्ट कर पाते हैं। आप ज़्यादा हेल्दी सोशल लाइफ बना सकते हैं क्योंकि आप पहले से ज़्यादा समझदार और हमदर्दी रखने वाले बन जाते हैं।  

निकलकर और इस दुनिया को एक्सपीरियंस करके अपने vocation को ढूँढ़ते हैं। अपनी calling ढूँढने के बाद आपकी  ज़िंदगी बदल जाती है। आप ज़्यादा  ख़ुश और संतुष्ट हो जाते हैं।    

तीसरा, आपने सीखा कि खुद को जीतने का मतलब हमेशा स्ट्रिक्ट होना नहीं होता। इसके लिए आप डिसिप्लिन और काइंडनेस को मिक्स कर सकते हैं। खुद के और दूसरों के प्रति काइंड रहें। इससे आपको मुश्किलों का सामना करने की ताकत मिलेगी।   

चौथा, आपने सीखा कि डिग्निटी का मतलब है हर कीमत पर अपने हाई स्टैंडर्ड्स के साथ जीना। आप एक महान लीडर तब बनते हैं जब आप अपने इमोशंस को कंट्रोल करना सीख जाते हैं, ख़ुद को लालच से दूर कर लेते हैं और एक बड़े और सही मकसद  के लिए लड़ते हैं।    

पांचवा, आपने सीखा कि प्यार काइंड, शांत और हमदर्दी रखने वाला होता है। सही पार्टनर ढूँढकर और अपने इनर के दुश्मनों को हील करके आप टॉक्सिक रिलेशनशिप से बाहर निकल सकते हैं। खुद का ख़याल रखकर इसकी शुरुआत कीजिए और आप देखेंगे कि आपकी लव लाइफ बेहतर हो जाएगी।

छठा, आपने सीखा कि कोई भी बुक या mentor आपको इतनी तेज़ी से मदद नहीं कर सकता जितना स्ट्रगल कर सकता  है। अगर आप अपने मुश्किलों का हिम्मत से सामना करेंगे तो आप हार कर भी जीत जाएँगे। हर एक्सपीरियंस में एक लेसन छुपा होता है। आपको सिर्फ लर्निंग को अपनाना होगा और आगे बढ़ते रहना होगा।      

आखिर में, आपने सीखा कि आपको अपनी  इंटर्नल  और एक्सटर्नल ज़रूरतों को बैलेंस करना होगा। अपने नादर की इच्छाओं को examine करने या अपने एक्सटर्नल सिचुएशन को बदलकर, आप एक मीनिंग ढूँढ सकते हैं। अगर इनमें से एक पार्ट भी मिसिंग होगा तो आप  ख़ुश नहीं रहेंगे। इसलिए, दोनों को पाने का प्लान बनाइए और आपको शांति ज़रूर मिलेगी।    

अब वक़्त आ गया है कि आप बाहर निकलें और लाइफ को पूरी तरह एक्सपीरियंस करें। अपने कम्फर्ट ज़ोन से बाहर निकलने से डरिए मत। शायद आपको अपने box के बाहर निकलकर अपनी calling मिल जाए। 

अपनी limitation को स्टडी कीजिए, उन्हें ख़त्म करने का प्लान बनाइए और दूसरों की मदद करने में संतुष्टि ढूँढिए। जो जवाब आप ढूँढ रहे हैं वो आपही के अंदर मौजूद हैं। आपको सिर्फ बदलने का कमिटमेंट करने और अपना मीनिंगफुल मिशन ढूँढने की ज़रुरत है। 

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