TINY HABITS- The Small Changes That Change Everything
BJ Fogg
इंट्रोडक्शन
क्या आपको अपने रूटीन पर टिके रहने में परेशानी हो रही है? क्या आप बार-बार शुरुआत करने और कभी कुछ पूरा नहीं कर पाने से थक गए हैं?
हो सकता है कि आप सब कुछ गलत कर रहे हों! पता लगाइए कि आप इसे ठीक करने के लिए क्या कर सकते हैं और आदतें बनाने के लिए सच में क्या करना पड़ता है।
आदतें हमारे जीवन का अहम हिस्सा हैं। हम अपना जीवन कैसे जीते हैं यह हमारी आदतों पर डिपेंड करता है। ज्यादातर लोग नहीं जानते कि छोटी-छोटी आदतें ही अच्छा जीवन जीने का रास्ता है। जब आप छोटी शुरुआत करते हैं, तो आदतें ज्यादा इफेक्टिव और टिकाऊ हो जाती हैं।
यह समरी आपको बिहेवियर यानी व्यवहार के एलिमेंट्स की जानकारी देगी। यह आपको गहराई से समझाएगी कि कैसे उन्हें अपने फायदे के लिए यूज़ किया जाए। बिहेवियर को समझना और इसे कैसे डेवलप किया जाए यह आपके जीवन को बदलने का पहला स्टेप है। जब आप समझ जाते हैं कि कौन-कौन से फैक्टर्स इसके लिए इम्पोर्टेन्ट होते हैं तो आप आसानी से सिचुएशन को अपने हिसाब से डिजाइन कर सकते हैं, जिससे आपके लिए बदलाव करना आसान हो जाता है।
छोटी-छोटी आदतों का काम है जीवन बदलने वाली आदतों को बनाने में आपकी मदद करना। हर छोटी आदत एक इंपॉर्टेंट बदलाव की ओर ले जाती है। इस समरी में आप सीखेंगे की छोटी-छोटी आदतें कैसे develop करें और उन्हें अपने जीवन बदलने वाली आदतों में कैसे बदलें।
अच्छी आदतें डालने में फ़ेल हो जाना हमारी विलपावर की कमी की वजह से नहीं है बल्कि यह हमारे काम करने के तरीके से आता है। छोटी-छोटी आदतें ही सक्सेस की चाबी होती हैं। जब आप छोटी शुरुआत करते हैं और कामयाब होते हैं तो आपको अच्छा लगता है। जब आप अच्छा महसूस करते हैं तब आप अपने रूटीन को ठीक से फॉलो करने लगते हैं। छोटी-छोटी आदतों और उन्हें बनाने के तरीके के बारे में और जानें। छोटी शुरुआत करके अपने जीवन में बड़े और इम्पोर्टेन्ट बदलाव करें।
The Elements of Behavior
हम ये तो जानते हैं कि व्यवहार बदलने से आदतों को बदला जा सकता है। लेकिन, सिर्फ़ इस बात को जानने से कुछ भी नहीं बदलेगा। अगर आप इसे समझ ही नहीं पाएंगे तो आप कभी बदल भी नहीं पाएँगे।
इससे पहले कि आप अपना व्यवहार बदलने की कोशिश करें, आपको इसके बारे में सब कुछ जानना होगा। आपको इसके बैग्राउंड और यह कैसे काम करता है, यह जानने की जरूरत है। आप बिहेवियर के बारे में थोड़ा-बहुत तो जानते ही होंगे और आपको पता होगा कि यह आमतौर पर कैसे काम करता है। लेकिन, इस बार हम इसके एलिमेंट्स को गहराई से समझेंगे और इसे क्रिएट करने वाले ट्रिगर्स को जानेंगे।
इस बुक के ऑथर, बी जे फॉग ने ‘द फॉग बिहेवियर मॉडल’ नाम से एक बिहेवियर मॉडल बनाया है। यह व्यवहार को रिप्रजेंट करने वाले 3 एलिमेंट्स को दिखाता है। ये मॉडल है : "B=MAP"। बी का मतलब बिहेवियर यानी व्यवहार है और एमएपी का मतलब है मोटिवेशन, एबिलिट और प्रॉम्प्ट।
फॉग बिहेवियर मॉडल बताता है कि ये तीनों एलिमेंट्स तभी हेल्पफुल होते हैं जब वे एक साथ मिलते हैं। अगर उनमें से एक की भी कमी हो तब आपके लिए कुछ भी करना मुश्किल हो जाएगा।
आइए इसे एक example से समझते हैं। एक बार इस बुक के ऑथर बी.जे फॉग जिम में थे और अपना डेली वर्कआउट रूटीन कर रहे थे। जैसे ही वह अपना सेशन खत्म करने वाले थे, उन्हें रेड क्रॉस से एक मैसेज मिला जिसमें पूछा गया था कि क्या वह ब्लड डोनेशन के लिए तैयार हैं। फॉग राज़ी हो गए और उन्होंने हां में जवाब दिया।
अब, इस सिचुएशन को थोड़ा और एनालाइज़ करते हैं। फॉग का स्वभाव ऐसा था कि वह ब्लड डोनेट करने को तैयार हो गए इसलिए तीनों एलिमेंट्स वहां मौजूद रहे होंगे जिसके कारण उन्होंने कुछ अलग सा करने का फैसला लिया।
फॉग के बिहेवियर के पीछे ज़्यादा मोटिवेशन थी। ऐसा इसलिए था क्योंकि वह Haiti में हाल ही में आए भूकंप के बारे में लगातार न्यूज़ देख रहे थे। यह बात ध्यान देने वाली है कि यह घटना 2010 में हुई थी। यह उस साल की सबसे खराब घटनाओं में से एक थी और फॉग अपनी तरफ से हर संभव मदद करने के लिए motivated फील कर रहे थे।
फॉग की रेड क्रॉस से सहमत होने की एबिलिटी भी ज्यादा थी। ऐसा इसलिए था क्योंकि उनका फोन उनके पास ही था। उन्हें जवाब भेजने के लिए ज्यादा कुछ नहीं करना पड़ा। अगर रेड क्रॉस ने फॉग को दान करने और अपना क्रेडिट कार्ड नंबर देने के लिए कहा होता तो शायद वो राज़ी नहीं होते। ऐसा इसलिए नहीं था क्योंकि उनके पास मदद करने के लिए मोटिवेशन की कमी थी। ऐसा इसलिए था क्योंकि उनके पास उस वक़्त अपना कार्ड नंबर देने की एबिलिटी कम थी क्योंकि उनका कार्ड उनकी गाड़ी में था तो उन्हें अपना वर्कआउट बंद करके कार्ड लेने गाड़ी तक जाना पड़ता। गाड़ी तक जाने में उन्हें थोड़ी परेशानी होती।
आखिर में, फॉग को बिल्कुल सही टाइम पर prompt या इशारा मिला था। जब उनकी मोटिवेशन और एबिलिटी ज्यादा थी तब उन्हें एक मैसेज मिला जिसने उन्हें अपने दम पर एक्शन लेने में मदद की। अगर रेड क्रॉस ने उन्हें मैसेज की जगह ईमेल भेजा होता तो शायद उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया होता। ऐसा इसलिए क्योंकि वह अपने ई-मेल कभी-कभी ही पढ़ते हैं। मैसेज से contact करने पर फॉग को तुरंत एक्शन लेने के लिए मोटिवेट किया गया।
हमारे अंदर कुछ करने का मोटिवेशन और एबिलिटी हमेशा मौजूद रहती है। यह सच में कभी खत्म या गायब नहीं होती। लोगों को जैसे वह चाहते हैं वैसा व्यवहार करने में परेशानी होती है क्योंकि उनमें तीसरे एलिमेंट की कमी होती है। प्रॉम्प्ट, आपके लिए कुछ करने के लिए एक ट्रिगर की तरह होता है। यह हमें आखरी कदम उठाने और अपना काम काम करने के लिए मोटिवेट करता है।
इस example में, भले ही फॉग मदद करना चाहते थे और मदद कर सकते थे, इसका मतलब यह नहीं था कि वह कुछ भी कर सकते थे। लेकिन क्योंकि रेड क्रॉस ने उन्हें काम करने के लिए इंस्पायर किया तो फॉग ने इसे जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए एक इशारे के रूप में लिया।
मोटिवेशन और एबिलिटी के बारे में आपको एक और बात जानने की जरूरत है कि वह इनडायरेक्टली एक दूसरे को इंफ्लुएंस करते हैं। वे एक के कमी की भरपाई दूसरे को बढ़ाकर करते हैं। कुछ करने की आपकी एबिलिटी जितनी कम होगी, आपकी मोटिवेशन उतनी ही ज्यादा होनी चाहिए। बिना prompt या इशारे के कोई भी बिहेवियर पूरा नहीं होता है । पहले के दो एलिमेंट जितने इंपॉर्टेंट हैं वे ट्रिगर करने वाले हिंट के बिना बेकार हैं।
अब, आप इस नॉलेज को दो तरह से इस्तेमाल कर सकते हैं। आप अच्छा बिहेवियर डेवलप करने के लिए prompt बना सकते हैं या बुरे बिहेवियर से बचने के लिए prompt को हटा सकते हैं। सभी बिहेवियर एक जैसे हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप उन्हें कैसे क्लासिफाई करते हैं, उन सभी में बिहेवियर के तीन एलिमेंट्स शामिल होते हैं।
अगर आप एक अच्छी आदत डेवलप करना चाहते हैं तो आपको इसे लगातार करने के लिए खुद को मोटिवेट करना होगा। आप किसी काम को जितना लंबे टाइम तक करते हैं वह उतना ही आसान हो जाता है। इसलिए, आपको इसे हासिल करने के लिए सिर्फ पहले कुछ महीनों तक इस काम करते रहने की जरूरत है।
किसी बुरी आदत के लिए किसी प्रॉम्प्ट को हटाना ऐसा करने के लिए सभी मौकों से अपना हाथ पीछे खींचने जैसा है। विलपावर पर भरोसा करने के जगह, आप उन सभी पॉसिबिलिटीज को काट देते हैं जो आपको बुरा करने के लिए इंस्पायर कर सकती हैं। इस तरह, आप काफ़ी विलपावर बनाने के लिए स्ट्रगल किए बिना असरदार तरीके से इससे बच सकते हैं।
फॉग बिहेवियर मॉडल को अपने जीवन में अप्लाई करने के लिए आप दो छोटे-छोटे काम कर सकते हैं -
सबसे पहले, आप उन सभी आदतों जिनसे आप छुटकारा पाना चाहते हैं उन्हें पहचानकर डायरी में लिख सकते हैं।
दूसरा, आप फॉग बिहेवियर मॉडल के बारे में अपनी समझ को और बढ़ाने के लिए किसी दूसरे इंसान को ये मॉडल सिखा सकते हैं। किसी चीज़ को सीखने का सबसे अच्छा तरीका है उसे शेयर करना। इस तरह, जब आप किसी को कुछ पढ़ाते हैं तो आप चीज़ को और गहराई से समझने लगते हैं।
Motivation: Focus on Matching
आइए इस चैप्टर की शुरुआत एक कहानी से करते हैं।
सैंड्रा और एड्रियन की अभी-अभी शादी हुई है। एक शादीशुदा कपल के रूप में वह सबसे पहले जो काम करना चाहते थे, वह था अपना खुद का घर खरीदना। कुछ जगहों को देखने के बाद, सैंड्रा और एड्रियन को आखिरकार अपना परफेक्ट घर मिल गया। यह छोटा और कम्फ़र्टेबल था और वहाँ वो सब कुछ था जो वो अपने घर में चाहते थे। उस घर में बस एक प्रॉब्लम थी कि उसके पीछे जो जगह थी (बैकयार्ड) वहाँ बहुत गंदगी थी जिसे साफ़ करने में अच्छी-ख़ासी मेहनत लगती।
सैंड्रा और एड्रियन उस अस्त-व्यस्त घर को देखकर निराश नहीं हुए। उन्होंने उसे खरीदने और खुद डिजाइन करने के लिए खुद को और भी ज्यादा मोटिवेटेड महसूस किया। कुछ दिनों की बातचीत के बाद, सैंड्रा और एड्रियन ने आखिरकार डील फिक्स कर ली। अपने लिए नया घर लेकर, उन्होंने तुरंत किचन और लिविंग रूम को पहले से बेहतर बनाने के लिए उसकी मरम्मत शुरू कर दी।
कुछ हफ्तों के रेनोवेशन के बाद सैंड्रा और एड्रियन थकान महसूस करने लगे। अब वह उतने excited नहीं थे जैसे काम शुरू करते समय थे। इंटीरियर का काम खत्म करने के बाद एक आखरी काम बचा था जो था बैकयार्ड की सफाई। उस समय वे पहले से ही बेहद थका हुआ महसूस कर रहे थे। इस पॉइंट पर आकर सैंड्रा और एड्रियन को शक होने लगा कि क्या घर खरीदने का उनका फैसला सही था या नहीं।
यह कहानी मोटिवेशन पर भरोसा करने वाले लोगों का एक क्लासिक example है। अक्सर हम मोटिवेशन पर बहुत ज्यादा भरोसा कर लेते हैं और अपनी एबिलिटी को ज्यादा समझने लगते हैं। सैंड्रा और एड्रियन को पता नहीं था कि एक बैकयार्ड को कैसे डिजाइन करना है। लेकिन, प्रॉपर्टी खरीदते समय उन्होंने इस बारे में सोचा ही नहीं क्योंकि उस वक़्त वह बहुत मोटिवेटेड फील कर रहे थे। लेकिन अगर उन्होंने गहराई से सोचकर और लॉजिकल फैसला लिया होता, तो उन्हें पता होता कि सिर्फ मोटिवेशन के साथ वह काम को पूरा नहीं कर सकते थे क्योंकि इस तरह काम करने का कोई तरीका नहीं है।
आइए अब मोटिवेशन को डिफाइन करें और जानें कि हमारे ऊपर इसका असर कैसे पड़ता है। मोटिवेशन किसी काम को पूरा करने की हमारी इच्छा होती है। हम जो कुछ भी करते हैं उसके पीछे यही वजह है। हम काम करते हैं क्योंकि हम इसे करने के लिए मोटिवेटेड होते हैं। इसके बिना हम कुछ नहीं कर सकेंगे।
किसी भी इंसान को मोटिवेट करने के तीन कारण हो सकते हैं। वे खुद से, रिजल्ट से, अपने एनवायरमेंट या रहन सहन से मोटिवेट हो सकते हैं।
लोग अपनी खुद की इच्छाओं और जरूरतों के कारण खुद मोटिवेट हो सकते हैं। इसका एक टिपिकल example है आपकी हॉबी। हॉबी कोई ऐसा काम नहीं होता है जिसे करने के लिए आप मजबूर फील करते हैं बल्कि आप उसे इसलिए करते हैं क्योंकि वो आपको पसंद है और उसे करने में आपको मज़ा आता है। जब कोई चीज़ entertaining या मज़ेदार होती है तो आप उसे बार-बार करने के लिए मोटिवेट होते हैं।
Consequence या नतीजे या आउटकम भी लोगों को एक तरह से बिहेव करने के लिए भी मोटिवेट कर सकते हैं। कभी-कभी, यह उन्हें या तो नेगेटिव या पॉजिटिव रूप से काम करने के लिए कहता है, जो उनके द्वारा सामना किए जाने वाले नतीजों पर डिपेंड करता है। टैक्स भरना इसका एक example है। किसी को भी टैक्स के लिए पैसे भरना अच्छा नहीं लगता है लेकिन वो फ़िर भी टैक्स भरने के लिए वो मोटिवेट होते हैं क्योंकि ऐसा ना करने पर उन्हें सज़ा या fine जैसे नतीजे का सामना करना पड़ेगा।
किसी इंसान का एनवायरमेंट यानी माहौल भी उसे काम करने के लिए मोटिवेट कर सकता है। ज्यादातर लोग बिना किसी शक या सवाल के जो देखते हैं उसे फॉलो करते हैं। जैसे, जब आप किसी चैरिटी ऑक्शन में होते हैं और लोगों को एक नॉर्मल सी चीज़ के लिए हजारों डॉलर खर्च करते हुए देखते हैं, तो आप भी उस ऑर्गेनाइजेशन की मदद करने और ऑक्शन में भाग लेने के लिए भी मोटिवेट होंगे।
मोटिवेशन का नेगेटिव साइड यह है कि यह अनस्टेबल होता है यानी हमेशा एक जैसा नहीं रहता है। आप हमेशा इस पर भरोसा नहीं कर सकते क्योंकि यह आपके main मोटीवेटर्स के हिसाब से कम ज्यादा होता रहता है। जब आपमें मोटिवेशन की कमी होती है तब आप नॉर्मली वो काम या एक्टिविटी नहीं करते हैं। इस तरह का बिहेवियर रिस्की हो सकता है, खासकर तब जब, आपको जो काम करने की ज़रुरत है वो आपकी सक्सेस के लिए इम्पोर्टेन्ट हो।
क्या आपने कभी कोई न्यू ईयर रेजोल्यूशन बनाया है? क्या आपने नोटिस किया है कि आप हमेशा पूरा नहीं कर पाते हैं? ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आप इस प्रोसेस को पूरा करने के लिए पूरी तरह से सिर्फ़ मोटिवेशन पर भरोसा करते हैं। हाँ ये थोड़ा बहुत तो मदद करता है लेकिन यह काफी नहीं होता है।
छोटी-छोटी आदतें बनाते समय आपको अपने मोटिवेशन से आगे निकलना होगा। ऐसा कुछ करने की जगह जिसे आप आखिर में छोड़ देंगे, डेली रूटीन बनाने के लिए किकस्टार्ट के रूप में अपनी मोटिवेशन का इस्तेमाल करने की कोशिश करें। झूठे मोटिवेशन स्टार्टर पर काबू पाने के लिए आप 3 स्टेप्स का इस्तेमाल कर सकते हैं - आपको क्लियर गोल सेट करना होगा, ऑप्शन ढूंढने होंगे और अपने बिहेवियर को ख़ुद से मैच करना होगा।
क्लियर गोल्स सेट करने से आपको झूठी शुरुआत खत्म करने में मदद मिलती है। कभी-कभी, आप कुछ करने के लिए मोटिवेटेड होते हैं, इसलिए नहीं कि आप उसे करना चाहते हैं बल्कि इसलिए कि आपको लगता है कि इससे आपको बेहतर महसूस होगा। ज्यादातर मामलों में, ऐसा नहीं होता। क्लियर गोल्स सेट करने से, आप जो चाहते हैं उस पर फोकस कर पाएँगे। इस तरह आप अपने टाइम का ज्यादा अच्छे से इस्तेमाल करते हैं और टाइम बर्बाद करने से भी बचते हैं।
झूठे मोटीवेटर्स पर काबू पाने के लिए ऑप्शन ढूंढना इसका दूसरा स्टेप है। एक बार जब आप क्लियर गोल्स जान लेते हैं तो आपको उन्हें पाने के लिए ऑप्शन के बारे में सोचना होगा। Example के लिए, आप वेट कम करने का गोल बनाते हैं। सिर्फ एक्सरसाइज़ पर ध्यान देने की जगह आप हेल्दी डाइट और कैलरी गिनने जैसे तरीकों का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। कई ऑप्शन होने से आपको उनके बीच चुनने की सुविधा मिलती है। इसलिए, चाहे आप कुछ भी करें, आप किसी एक स्ट्रेटजी पर अटके बिना अपने मकसद पर काम कर सकते हैं।
आखिर में, आपको अपने ऑप्शन को अपने साथ मैच करना होगा। दूसरे स्टेप में, आपने कई बिहेवियर की लिस्ट बनाई होगी जिनका इस्तेमाल़ आपको अपने गोल को अचीव करने के लिए करना होगा। हालांकि, यह ध्यान रखना इंपॉर्टेंट है कि आपका चुना हुआ ऑप्शन आपकी पसंद से मैच करना चाहिए। अपने आपको कुछ ऐसा करने के लिए मजबूर करना जो आप नहीं चाहते हैं, थका देने वाला और अनस्टेबल होता है और आखिर में वह आपको फेलियर की ओर ले जाता है।
Ability: Easy Does It
क्या आपने कभी “Go big or go home” phrase सुना है जिसका मतलब होता है कुछ बड़ा करो या घर जाओ? क्या आपने कभी अपने जीवन में कुछ बदलने के लिए बड़े फैसले लेने की कोशिश की है? क्या होगा अगर हम आपसे कहें कि आपको अपने जीने के तरीके को बदलने के लिए सिर्फ कंटिन्यूटी की जरूरत है? क्या आप हम पर यकीन करेंगे?
ज्यादातर लोग सोचते हैं कि जीवन बदलने वाले फैसले बड़े बदलावों के साथ होते हैं। उनका मानना है कि बदलाव लाने के लिए उन्हें कई सैक्रिफाइस करने होंगे। हालांकि, जीवन हमेशा उतना मुश्किल नहीं होता है जितना आप इसे समझते हैं। कभी-कभी, आपको बस इतना करना होता है कि छोटी शुरुआत करें और उसे लगातार करते रहें। इससे आपको एहसास होगा कि आप जितना सैक्रिफाइस कर रहे हैं उसकी तुलना में ज्यादा हासिल कर रहे हैं।
हमें यकीन है कि आपने उस टैलेंटेड डांसर के बारे में सुना होगा, जिसने अपनी पूरी जिंदगी अपने स्किल में मास्टरी हासिल करने के लिए लगातार प्रैक्टिस की है। या एक टैलेंटेड आर्टिस्ट जिसने अपना मास्टरपीस बनाने के लिए सालों से कड़ी मेहनत की है। उन्हें सक्सेस रातों-रात हासिल नहीं हुई है। यह उनकी सालों की डिसिप्लिन्ड प्रैक्टिस का फल है। आपमें और उनमें सिर्फ कंसिस्टेंसी का ही फ़र्क है।
ज्यादातर लोगों को अपने प्लान पर टिके रहने में प्रॉब्लम होती है। वह छोटे लेकिन प्रोग्रेसिव कदम उठाने की जगह रिस्क उठाना पसंद करते हैं। आदतों को बनाने में जल्दबाजी करना और रिस्क भरे फैसले लेना टिकाऊ नहीं होता है। इसका नतीजा यह होता है कि आप उस प्रोग्रेस के आधे हिस्से तक पहुंचने से पहले ही हार मान लेते हैं।
सारिका उन लोगों में से है जिसे अपने रूटीन के साथ तालमेल बैठाने में प्रॉब्लम होती है। उसने एक हेल्दी फ्यूचर का शॉर्टकट पाने की कोशिश में अपनी जिंदगी से टॉक्सीसिटी हटाने के लिए खुद को दर्जनों आदतों के नीचे दबा दिया है। आखिर में, इसका उल्टा असर हुआ। आइए पहले सारिका की कहानी सुनें ताकि हम उन गलतियों से बचना सीख सकें जो उसने आदत डेवलप करते समय की थीं।
सारिका को बाइपोलर डिसऑर्डर था। ज्यादातर टाइम वह एक्सट्रीम इमोशंस महसूस करती थी जो हर दिन अलग होता था। डॉक्टर ने सलाह दी कि उसे ज्यादा फिजिकल एक्टिविटी करना चाहिए। उसके डॉक्टर ने यह भी कहा कि एक्सरसाइज़ करने से उसकी कंडीशन से होने वाले स्ट्रेस से डील करने में मदद मिलेगी।
सारिका ने वही किया जो डॉक्टर ने करने को कहा था। उसने योगा क्लास ज्वाइन की और रोज़ कम से कम 30 मिनट एक्सरसाइज़ करने का गोल बनाया। इसके आलावा, वह हेल्दी खाना भी शुरू करना चाहती थी इसलिए सारिका ने खाना पकाने को अपनी रूटीन में शामिल कर लिया और खुद के लिए रोज़ हेल्दी ब्रेकफास्ट बनाने लगी।
सारिका के लिए पहले कुछ दिन आसान रहे। उसने अपनी सभी काम को ठीक से फॉलो किया और अपने रूटीन वर्कआउट को 15 मिनट बढ़ा दिया। लेकिन, जैसे-जैसे दिन बीतते गए सारिका ज्यादा थकी हुई और चिड़चिड़ी होने लगी। उसे अपने काम से परेशानी होने लगी और जब भी वह कोई काम मिस कर देती तो उसे शर्मिंदगी महसूस होती।
तीन दिनों तक अपनी आदतों का फॉलो करने में फ़ेल होने के बाद सारिका ने हार मान ली। उसने अपने अंदर नेगेटिव इमोशंस को महसूस किया और अब वह पहले से भी बदतर महसूस कर रही थी।
सारिका की कहानी बताती है कि क्यों हमें हमेशा धीमी और आसान शुरुआत करनी चाहिए। कोई आदत बनाने के लिए आप तुरंत खुद को प्रोग्राम नहीं कर सकते। आपको एक स्लो प्रोसेस से गुज़रना होगा। किसी टिकाऊ प्रैक्टिस के लिए छोटी आदतें बनाना बेहद ज़रूरी है।
सारिका के मामले में, उसकी एक छोटी सी आदत होनी चाहिए थी कि वह सबसे पहले अपने एक्सरसाइज़ के कपड़े पहनकर किचन में जाए और लाइट जलाए। यह आपको शायद प्रोग्रेस की तरह नहीं लगेगा लेकिन इस तरह की छोटी-छोटी आदतें आपको उस रूटीन को पूरा करने के लिए मोटिवेट करेगी।
अगर सरिका ने सिर्फ कपड़े बदलने से शुरुआत की होती तो इससे उसका ब्रेन, वर्कआउट को खत्म करना एक मुश्किल टास्क की जगह एक ऐसे रूटीन के तौर पर देखता जिसका वो इंतजार करती है। अगर सारिका ने किचन की लाइट जलाकर शुरुआत की होती तो वह खाना पकाने से पहले धीरे-धीरे ingredients तैयार करने की दिशा में काम कर सकती थी।
छोटी-छोटी आदतों का मकसद तुरंत कुछ बड़ा अचीव करना नहीं होता है। इसके बजाय यह आपको अपने डेली रूटीन में लगातार टिके रहने का कॉन्फिडेंस देती है। जब आप इन छोटी-छोटी आदतों को अपनी रोज़ की जिंदगी में शामिल करते हैं तो वे धीरे-धीरे लंबे समय तक रहने वाले बिहेवियर बन जाते हैं।
आपकी छोटी आदत जितनी आसान होगी, उतनी ही ज्यादा पॉसिबिलिटी है कि आप उसे करेंगे। अपनी छोटी-छोटी आदतों को करने में आसान बनाने के लिए आप तीन चीज़ कर सकते हैं -
सबसे पहले, उस एक्टिविटी के बारे में और जानें। आपको किसी प्रोफेशनल से मदद लेनी चाहिए या आप जो हासिल करना चाहते हैं उस पर रिसर्च करना चाहिए। जितना ज्यादा आप उसके बारे में जानेंगे, आपके लिए यह उतना ही आसान होगा।
दूसरा, जरूरी रिसोर्सेज को इकट्ठा करें। कभी-कभी, हम एक आदत छोड़ देते हैं इसलिए नहीं कि उसे करना मुश्किल होता है बल्कि इसलिए क्योंकि हमें जरूरी चीजों को पाने में परेशानी होती है। याद कीजिए कि जब आप हेल्दी खाना खाना चाहते थे और नहीं खा सकते थे क्योंकि आपके पास सब्जियां नहीं थीं? खैर, यह एक example है कि अपनी आदत को पूरा करने के लिए आपके पास रिसोर्सेज का होना क्यों जरूरी है।
आखिर में, कहीं से बहुत ही बेसिक शुरुआत करें। यहां तक कि जब आप जानते हैं कि सब कुछ कैसे करना है तब भी सबसे आसान सबसे छोटे काम से शुरूआत करें। ऐसा करने से, आप अपने ब्रेन को इस बात के लिए train कर रहे होते हैं कि आप जिस आदत को बनाने की कोशिश कर रहे हैं वह एक आसान काम है। आखिरकार, आप अपने तरीके से काम करना शुरू कर देंगे और सब कुछ subconsciously होने लगेगा।
Prompts: The Power of After
हमने बिहेवियर के पहले दो एलिमेंट्स, मोटिवेशन और एबिलिटी पर डिस्कशन किया है। अब, हम तीसरे एलिमेंट, प्रॉम्प्ट की ओर बढ़ते हैं। प्रॉम्प्ट को आप ट्रिगर या क्यू भी कह सकते हैं।
कोई भी चीज़ करने से पहले प्रॉम्प्ट आता है। आपको उस चीज़ को करने की इच्छा(प्रॉम्प्ट) हुए बिना आप कोई भी चीज़ नहीं कर सकते। हो सकता है कि आपने इस पर उतना ध्यान न दिया हो, लेकिन प्रॉम्प्ट्स आपके डेली लाइफ में मौजूद हैं। जैसे-जैसे आपका दिन बीतता जाता है आप उनमें से सैकड़ों का सामना करते हैं।
प्रॉम्प्ट या तो नेचुरल होते हैं या डिज़ाइन किए जा सकते हैं। गाड़ी चलाते समय हरी बत्ती देखना आपके लिए चलना शुरू करने का एक नेचुरल प्रॉम्प्ट है, जबकि आग का अलार्म सुनना, उस जगह को खाली करने के लिए डिज़ाइन किया गया प्रॉम्प्ट है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन सा प्रॉम्प्ट आपको एक स्पेसफिक बिहेवियर की ओर ले जाता है। आप बाद में जो बिहेवियर करते हैं वह मायने रखता है। आइए तीन तरह के प्रॉम्प्ट के बारे में पता करते हैं और जानते हैं कि अच्छी आदतें बनाने के लिए एक अच्छा प्रॉम्प्ट कैसे डिज़ाइन किया जाए -
पहले तरह का प्रॉम्प्ट है पर्सन यानी एक इंसान। यह प्रॉम्प्ट आपके और आपके शरीर पर बहुत ज्यादा डिपेंड करता है। इंसान के प्रॉम्प्ट ऐसे ट्रिगर होते हैं जिन्हें आप अपने शरीर के अंदर महसूस करते हैं या अपने मन में सोचते हैं। जब आपको भूख लगती है तो आप कुछ खाते हैं। जब आप अपने ब्लैडर में प्रेशर महसूस करते हैं, तो आप यूरिन पास करते हैं। ये आसान प्रॉम्प्ट हैं जो आपको हर रोज़ मिलते हैं। वे असरदार हैं, लेकिन वे नई आदतें बनाने में मदद नहीं करते।
अक्सर, इंसान के प्रॉम्प्ट उसके सर्वाइवल इंस्टिंक्ट पर बेस्ड होते हैं। अगर आपकी नई आदत ज़िन्दा रहने के लिए इंपॉर्टेंट नहीं है तो बाकि के दो प्रॉम्प्ट अप्लाई होते हैं।
दूसरा प्रॉम्प्ट है context प्रॉम्प्ट। यह वह प्रॉम्प्ट है जो आप अपने एनवायरमेंट से पाते हैं। ध्यान दें कि जब भी आपका फोन बजता है तो आप कितनी जल्दी मैसेज देखते हैं या जब भी आप अलार्म सुनते हैं तो आप कैसे जाग जाते हैं. ये context प्रॉम्प्ट के example हैं। ये बाहरी ट्रिगर्स हैं जो आपको एक्शन लेने के लिए मोटिवेट करते हैं।
आपको ये भी देखना होगा कि context प्रॉम्प्ट कितना इफेक्टिव या असरदार है। सही टाइम पर सही तरह का प्रॉम्प्ट बनाना इंपॉर्टेंट है। अगर आप इसे सही टाइम पर देखने से चूक जाते हैं तो कुछ करने का नोटिफिकेशन मिलना बेकार हो जाएगा। जैसे, अगर आप अपने घर से मीलों दूर हैं और तभी पौधों को पानी देने का अलार्म बजता है तो वह अलार्म किसी काम का नहीं होगा।
आखरी तरह का प्रॉम्प्ट है, एक्शन प्रॉम्प्ट। यह आपके पास पहले से मौजूद आदतों से शुरू होता है। इमेजिन कीजिए कि आपका एक रूटीन है और आप जानते हैं कि किस एक्टिविटी के बाद क्या करना है। यह काम पर एक्शन लेने का प्रॉम्प्ट है। यह आपको एक एक्टिविटी से दूसरी एक्टिविटी करने की ओर ले जाता है।
सबसे बेस्ट प्रॉम्प्ट जो आप डिज़ाइन कर सकते है वह है एक्शन प्रॉम्प्ट। अपनी मौजूदा आदतों पर भरोसा करके, आपको ट्रिगर्स बनाने की जरूरत नहीं है। आपको सिर्फ अपने रूटीन को उस चीज़ से जोड़ना होगा जो आप पहले से कर रहे हैं। Example के लिए, आपका गोल है अपने दांतों को फ्लॉस करना। हर रात अलार्म सेट करने के बजाय अपने दांतों को ब्रश करने के ठीक बाद फ्लॉस करने की आदत डालें। इससे आप महसूस करेंगे कि किसी आदत को शुरू करना तब आसान होता है जब उसे करने के लिए खुद को लगातार याद दिलाने के बजाय आपके पास पहले से कोई ट्रिगर हो।
एक्शन प्रॉम्प्ट में पहले से मौजूद आदत को एंकर कहा जाता है। जब भी आप एक नई आदत बनाना चाहते हैं, तो एक ऐसा एंकर खोजने की कोशिश करें जिसे आप अपने मनचाहे रूटीन से जोड़ सकें। एक नई आदत बनाने के जगह आप जो पहले से कर रहे हैं, उसकी कंसिस्टेंसी पर भरोसा करें।
आइए एमी के example से इसे समझते हैं।
एमी ने अपने जीवन के सबसे डरावने दौर से गुजरने के बाद एक्शन प्रॉम्प्ट बनाए। तलाक लेने के बाद उसे ऐसा लगने लगा था कि उसके साथ कभी कुछ अच्छा नहीं हो सकता। हालांकि, एमी अपने दुख के जाल को तोड़ना चाहती थी और अपनी भावनाओं से ऊपर उठना चाहती थी। इसलिए, उसने अपने बारे में अच्छा महसूस करने और अपने ऊपर मंडरा रहे दुख को भूलने का फैसला किया।
एमी ने इस आदत की शुरुआत छोटे-छोटे बदलावों के साथ की। उसने तुरंत सेल्फ़-हेल्प रूटीन बनाने के बजाय हर सुबह छोटे छोटे पॉजिटिव नोट लिखना शुरू कर दिया। एमी ने अपनी इस आदत को अपने मॉर्निंग रूटीन में शामिल कर लिया था। इसलिए नाश्ता करने के बाद वह किचन टेबल पर बैठ जाती और हर दिन अपने बारे में एक अच्छी बात लिखती।
एमी के लिए ऐसा करना मुश्किल नहीं था। वह पहले भी नाश्ता करने के लिए टेबल पर बैठती थी इसलिए इस छोटी सी आदत को अपनाने में उसे कोई परेशानी नहीं हुई। पॉजिटिव नोट्स लिखने से एमी अपनी उदासी से आगे बढ़ने और अपने बारे मेंअच्छा महसूस करने के लिए ज्यादा मोटिवेटेड फील करने लगी।
अगर हम B=MAP मॉडल को देखें तो एमी को अपने तलाक से आगे बढ़ने की मोटिवेशन मिली। एमी के अपने किचन टेबल पर बैठकर और अपने हाथ में पेन और नोटबुक लेने की एबिलिटी थी। उसका प्रॉम्प्ट था रोज़ नाश्ता करने के बाद लिखना।
अपनी छोटी सी आदत की सक्सेस के लिए सही प्रॉम्प्ट को ढूंढना जरूरी है। एंकर की तलाश करते समय, जितना पॉसिबल हो उतना स्टेबिलिटी पाने के लिए ऐसा एंकर खोजें जो पूरी तरह से आपके सिस्टम में शामिल हो। याद रखें, पहले से मौजूदा आदत से जुड़े होने पर प्रॉम्प्ट ज्यादा ताकतवर होते हैं। एक ऐसा एंकर खोजें जो किसी बिहेवियर को तुरंत ट्रिगर करता हो।
Growing Your Habits from Tiny to Transformative
हम पहले ही बता चुके हैं कि छोटी-छोटी आदतें किसी नए बिहेवियर को किकस्टार्ट करने का सबसे अच्छा तरीका है। हालांकि, जब तक यह ग्रो नहीं करता है तब तक आप असल में इसके अंतर को देख नहीं पाएँगे। छोटी-छोटी आदतों की बात यह है कि वह टाइम के साथ मज़बूत होते जाते हैं। जैसे-जैसे आप इसे रोज़ अप्लाई करते हैं, आप हर रोज़ लगातार प्रोग्रेस करते जाते हैं।
सुकुमार ने इन छोटी-छोटी बातों से अपने अंदर एक अलग सी ताकत महसूस की। जहां वह एक पुशअप करने में स्ट्रगल करता था, अब वह हर दिन 20 पुशअप आसानी से कर पा रहा था। सुकुमार कई सालों से फिजिकली एक्टिव होने की कोशिश कर रहा था पर सक्सेसफुल नहीं हो पा रहा था। लेकिन जब उसने यह छोटी-छोटी आदतें अपनाना शुरू किया तब से उसने अपने अंदर प्रोग्रेस देखी और अपनी लिमिट को आगे तक पुश करने लगा।
सुकुमार सुबह 10 पुश-अप्स करके दिन की शुरुआत नहीं करता था। उसने अपने रूटीन को पहले से मौजूद रूटीन के साथ एडजस्ट किया। वो नहाने और कपड़े पहनने के बाद हमेशा 2 पुश-अप्स करता था। यह उसकी आदत को किकस्टार्ट करने और पुशअप्स करने के लिए टाइम निकालने का उसका तरीका था।
कुछ हफ्तों बाद सुकुमार अपनी आदत के लिए एक खास टाइम रखने लगा। अब, वह दिन में कम से कम 30 मिनट ट्रेडमिल पर और 40 मिनट जिम में वेट ट्रेनिंग करता था।
छोटी छोटी आदतें टिकाऊ होती हैं. यह आपको अपसेट किए बिना आप जो चाहते हैं उसे करने देती है। अपनी छोटी-छोटी आदतों के पूरे पोटेंशियल तक पहुंचने के लिए कोई टाइम लिमिट नहीं है। यह आपकी एबिलिटी और ग्रो करने की इच्छा पर डिपेंड करता है।
छोटी सी आदत दो तरह से बदल सकती है। या तो वो ग्रो कर सकती है या मल्टीप्लाई हो सकती है। जब एक छोटी सी आदत डेवलप होती है तो वह ज्यादा इंपॉर्टेंट और बड़ी हो जाती है। जैसे, आप रोज़ 10 मिनट से अपना टाइम बढ़ाकर 30 मिनट कर देते हैं। यानी आप सेम हैबिट को अब लंबे समय के लिए कर रहे हैं।
जब कोई आदत multiply करती है तो इसका मतलब है कि आप अपने रूटीन में कुछ और add कर रहे हैं। आप अपने दिन भर में एक रिपल इफेक्ट पैदा कर रहे हैं और उसे जहां तक पॉसिबल हो अच्छी आदतों से भर रहे हैं। Example के लिए, मॉर्निंग affirmations करने के बाद आप जर्नल लिखने और योग करने की आदत को add करते हैं। ये सभी प्रैक्टिस पॉजिटिव इमोशंस पैदा करती हैं। यह आपको पूरे दिन अच्छा महसूस करने में मदद करती हैं।
अपनी और अपने शरीर की सुनना एक छोटी सी आदत को डेवलप करने की चाबी है। यह तभी ग्रो करेगा जब आप चाहेंगे। स्लो प्रोग्रेस का मतलब है कि आप अपने आपको बहुत पुश नहीं करते हैं। अगर आपको कोई काम ज्यादा करने का मन नहीं करता, तो आप उसे करने के लिए ख़ुद को फोर्स नहीं करते हैं। अगर आप एक छोटी सी आदत को बड़ा करने की कोशिश करेंगे तो आप फेल हो जाएँगे और उसके बदलने से पहले ही हार मान लेंगे और बेशक आपने जितनी प्र्ग्रेस की है उससे पीछे नहीं जाना चाहेंगे।
ख़ुद को बदलना एक ऐसा स्किल है जिसे प्रैक्टिस करने की ज़रुरत होती है। जब आप इसकी बेसिक बातें सीख जाते हैं, तो आप एक बिहेवियर को दूसरे बिहेवियर में आसानी से बदल सकते हैं। बदलाव के स्किल्स को डेवलप करते समय आपको 5 फंडामेंटल बातों को समझना होगा। इसमें बिहेवियर क्राफ्टिंग, सेल्फ असेसमेंट, प्रोसेसिंग, context के बारे में सीखना और पॉजिटिव माइंडसेट डेवलप करना शामिल है।
पहला स्किल सेट है, बिहेवियर क्राफ्टिंग। इसका मतलब है ये जानना कि आप अपनी किन बातों को बदलना चाहते हैं। जब आप अपने आपको एक बेहतर version में बदलते हैं, तो आप अपनी बुरी आदतों को अच्छी आदतों से बदल रहे होते हैं। बिहेवियर क्राफ्टिंग का मतलब सिर्फ यह चुनना नहीं है कि किन आदतों को बदलना है बल्कि यह जानना भी है कि किस आदत को अपनाना है।
आदतों को बदलने का दूसरी स्किल है सेल्फ असेसमेंट। हम हमेशा दूसरों में जो देखते हैं उससे जल्दी इंप्रेस हो जाते हैं। हम बिना ये सोचे समझे दूसरों के बिहेवियर को फॉलो करते हैं कि उससे हमें फ़ायदा होगा भी या नहीं। सेल्फ असेसमेंट का स्किल आपको उन आदतों को अपनाने में मदद करता है जो असल में आपके लिए मायने रखती हैं। जब आप जानते हैं कि कौन सी प्रैक्टिस आपके लिए मीनिंगफुल है तो आप उन आदतों की तुलना में उन्हें जारी रखने के लिए ज्यादा मोटिवेटेड होते हैं जो आपके लिए ज्यादा मीनिंगफुल नहीं होती।
तीसरी स्किल है प्रोसेसिंग। यह आपको खुद को आगे पुश करने और अपनी आदतों को इम्प्रूव करना सिखाती है। प्रोसेसिंग के स्किल से आप जो चाहते हैं उसके प्रति सच्चे बने रहने और स्पेसिफिक सिनेरियो में एडजेस्ट होना सीखते हैं। इस स्किल के ज़रिए आप अपनी इच्छा और जरूरतों को प्रोसेस करते हैं और उन पर एक्शन लेते हैं।
चौथी स्किल है context के बारे में जानना। इसका मतलब यह जानना है कि अपने एनवायरनमेंट यानी माहौल को अपने लिए काम का कैसे बनाया जाए। जब आप बदलना चाहते हैं, तब आपका एनवायरमेंट आपके ऊपर बहुत मज़बूती से पकड़ रखता है। इसे एक फायदे के रूप में इस्तेमाल करना और खुद को मोटीवेटर्स के सामने expose करने से आपको फ्यूचर में और ज्यादा तेजी से एडजस्ट करने में मदद मिलती है.
आखिर स्किल है, पॉजिटिव माइंडसेट डेवलप करना। अगर आप बदलना ही नहीं चाहते हैं तो आप अपने आपको बदलने की उम्मीद नहीं कर सकते। अपने बदलाव के दौरान आप जो माइंड सेट डेवलप करते हैं वो इस बात पर असल डालता है कि वह आपके लिए कितना आसान होगा। जब आप किसी सिचुएशन को खुले दिमाग से देखते हैं, तो आपको बदलने में कम प्रॉब्लम होती है। हालांकि, जब आप बदलाव को resist करते हैं और अपनी पुरानी आदतों पर टिके रहते हैं, तो उन्हें बदलना और नई आदतों को अपनाना मुश्किल हो जाता है।
Conclusion
सबसे पहले, आपने बिहेवियर की बेसिक बातों के बारे में जाना। बिहेवियर को ट्रिगर करने के लिए आपको तीन चीजों की जरूरत होती है: मोटिवेशन, एबिलिटी और प्रॉम्प्ट। ये सभी एलिमेंट एक ही टाइम में मौजूद होने चाहिए। इसके बिना आप कोई आदत शुरू नहीं कर सकते। मोटिवेशन और एबिलिटी इनडायरेक्ट रूप से एक दूसरे के बराबर होते हैं, जबकि प्रॉम्प्ट एक्शन लेने के लिए ट्रिगर की तरह काम करता है।
दूसरा, आपने पहले एलिमेंट मोटिवेशन के बारे में जाना। मोटिवेशन का मतलब है कुछ हासिल करने की आपकी इच्छा। सिर्फ उस पर डिपेंड रहने से आपको सक्सेस नहीं मिलेगी। आपके जीवन में तीन मेन मोटीवेटर्स होते हैं - आप खुद, आपके नतीजे और आपका एनवायरमेंट। आप क्लियर गोल सेट करके, ऑप्शन ढूंढकर और जो आप करना चाहते हैं उसके साथ अपने ऑप्शन को मैच करके अपनी मोटिवेशन को बढ़ा सकते हैं।
तीसरा, आपने दूसरे एलिमेंट एबिलिटी के बारे में समझा। आपकी आदतें जितनी आसान होगीं, उतनी ही ज्यादा पॉसिबिलिटी है कि आप उसे करेंगे। छोटी-छोटी आदतें आपके जीवन में बदलाव लाने की चाबी हैं। किसी चीज़ को डेवलप करने के लिए या आदत बनाने के लिए आपको सबसे आसान काम करके उसे शुरू करना चाहिए। स्किल्स को अपनाकर, सही रिसोर्स को इकट्ठा करके और छोटी शुरुआत करके आप आदतें बनाने की अपनी एबिलिटी को बढ़ा सकते हैं।
चौथा, आपने तीसरे एलिमेंट प्रॉम्प्ट के बारे में समझा। हम जो कुछ भी करते हैं उससे पहले एक प्रॉम्प्ट होता है। आपका जीवन प्रॉम्प्ट से भरा हुआ है, फिर भी आप उसे नोटिस नहीं कर सकते। प्रॉम्प्ट तीन तरह के होते हैं: पर्सन, context और एक्शन। आदत बनाते समय एक असरदार प्रॉम्प्ट बनाना इंपॉर्टेंट है जो आपको एक्शन लेने के लिए ट्रिगर करे।
आखिर में, आपने सीखा कि अपनी छोटी आदतों को बड़ी आदतों में कैसे बदलना है। छोटी-छोटी प्रैक्टिस का मकसद है बदलाव के लिए आपके सफर को किकस्टार्ट करना। यह आखरी गोल नहीं बल्कि स्टार्टिंग पॉइंट है। अपने बिहेवियर में असली बदलाव देखने के लिए अपनी छोटी आदतों को बड़ी आदतों में बदलना सीखना ज़रूरी है।
बदलाव के प्रोसेस में स्ट्रगल का सामना करना होता रहेगा, लेकिन छोटी-छोटी आदतों का आइडिया आपके फेल होने के रिस्क को कम कर देता है। एक बार में सब कुछ पाने की जगह, आप छोटे-छोटे कदम उठाकर लगातार प्रोग्रेस करते हैं। छोटी-छोटी जीत और कलेक्टिव प्रोग्रेस, छोटी-छोटी आदतों का एसेंस है। अगर आप कोई आदत शुरू करना चाहते हैं, तो छोटी शुरुआत करें। यह आपकी उमीदों के हिसाब से जल्दी दिखने वाले नतीजे नहीं देगा। लेकिन यह आपको कामयाब होने के लिए ज्यादा एबिलिटी और सेल्फ कॉन्फिडेंस देगा।